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कहां गया आइपीएल का जलवा

जागरण मेहमान कोना
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आइपीएल के आकाओं के लिए बुरी खबर है। क्रिकेट के दूसरे फॉर्मेट को छोड़कर आइपीएल के पीछे सारी ताकत झोंकने वाले भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के लिए बुरी खबर है। आइपीएल को टेलीविजन पर देखने वाले दर्शकों की तादाद में पिछले सालों के मुकाबले कमी आई है यानी आइपीएल की टीआरपी घटी है। चैनलों की टीआरपी का हिसाब-किताब रखने वाली संस्था टेलीविजन ऑडियंस मेजरमेंट यानी टैम के मुताबिक आइपीएल-5 के शुरुआती मैचों में करीब 19 फीसद की गिरावट आई है। आइपीएल के पिछले सीजन की औसत रेटिंग 4.63 के मुकाबले इस बार रेटिंग सिर्फ 3.76 दर्ज की गई है। आपको याद ही होगा कि इस साल आइपीएल की ओपनिंग सेरेमनी को तड़क-भड़क से लैस करने के लिए काफी मेहनत की गई थी। सलमान खान, प्रियंका चोपड़ा, करीना कपूर से लेकर कैटी पेरी तक की परफॉरमेंस हुई, इसके बावजूद रेटिंग सिर्फ 1.16 तक ही पहुंची। आइपीएल के पांच साल के इतिहास में दर्शकों की तादाद में आई गिरावट का यह एक किस्म का रिकॉर्ड है, जिसे बोर्ड के तमाम अधिकारी शायद ही याद रखना चाहेंगे। हालांकि टीआरपी के ये आंकड़े आइपीएल के पहले हफ्ते के मुकाबलों के हैं, लेकिन आगे कोई बहुत बड़ा बदलाव होगा, इसकी उम्मीद कम ही है।


टेलीविजन रेटिंग के आंकड़ों के साथ आइपीएल की लोकप्रियता में आई गिरावट पर ललित मोदी सोशल नेटवर्किग साइट ट्विटर पर जानकारी तक दे चुके हैं। आइपीएल के खिलाफ इस नकारात्मक जानकारी को देने के लिए पीछे उनका गुस्सा स्वाभाविक है। इस टूर्नामेंट को लोकप्रियता के शिखर तक पहुंचाने में ललित मोदी का बड़ा योगदान था, लेकिन आज वही ललित मोदी तमाम मुकदमों के डर से भारत लौटने तक की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। दुनिया के तमाम क्रिकेट सितारों के मैदान में उतरने के बाद भी टीआरपी में आई इस गिरावट के पीछे दरअसल ललित मोदी एक बड़ी वजह माने जा सकते हैं। आइपीएल की शुरुआत से लेकर जब तक ललित मोदी उससे जुड़े हुए थे, आइपीएल का प्रचार और उसकी मार्केटिंग जबरदस्त तरीके से की जाती थी।


मैच के बाद होने वाली देर रात पार्टियों में आए दिन विवाद होते थे। कभी कुछ होता था तो कभी कुछ। दक्षिण अफ्रीका में खेले गए आइपीएल में तो लोगों की दिलचस्पी का बड़ा मुद्दा फेक ब्लॉगर बन गया था, जो कोलकाता नाइट राइडर्स की टीम की अंदरूनी खबरें दिया करता था। ऐसे ही तमाम दूसरे कारणों से आइपीएल लगातार चर्चा में बना रहता था। ऐसा भी नहीं था कि ललित मोदी यह सब कुछ जान बूझकर कराते थे, लेकिन आइपीएल का मसाला फैक्टर हमेशा छाया रहता था। बाजार के जानकार यहां तक कहते हैं कि इस मसाले के बाद भी आइपीएल की मार्केटिंग क्रिकेट टूर्नामेंट के तौर पर ही होती थी, लेकिन अब आइपीएल की छवि ऐसी हो गई है, जिसे सिर्फ मनोरंजन के तौर पर ही देखा जा रहा है। इसके अलावा भारतीय क्रिकेट टीम के हालिया प्रदर्शन के खराब होने का असर भी आइपीएल की लोकप्रियता पर पड़ा है। पिछले साल विश्वकप में जीत के बाद भारतीय सूरमा ऐसे गिरे कि रेंगते नजर आए। पहले इंग्लैड और फिर ऑस्ट्रेलिया में भारतीय टीम लगातार आठ टेस्ट मैचों में हारी। इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में भारतीय टीम ने आठ टेस्ट मैचों की 16 पारियों में सिर्फ दो बार 300 रनों का आंकड़ा पार किया। सिर्फ एक बार भारतीय टीम 100 ओवर से ज्यादा देर तक क्रीज पर टिक पाई।


आइपीएल के मैच देखते वक्त क्रिकेट प्रेमी इन आंकड़ों को दिमाग से निकाल नहीं पाए। उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फ्लॉप खिलाडि़यों का आइपीएल में चमकना रास नहीं आया। शायद रिमोट पर चैनल बदलने की एक बड़ी वजह यह भी बनी। टेस्ट सीरीज में बुरी तरह पिटने के बाद कैप्टन कूल माही का एकदिवसीय क्रिकेट में भी कोई जादू नहीं चला। विश्वकप की चैंपियन टीम एशिया कप में बांग्लादेश से हारी और फाइनल की रेस से बाहर हो गई। भारतीय टीम यह समझने और समझाने में नाकाम रही कि विश्व चैंपियन बनने के बाद उससे विश्व चैंपियन खिलाडि़यों की तरह प्रदर्शन की उम्मीद भी की जाती है। जब भारतीय क्रिकेट प्रेमी इन यादों को भूलने की कोशिश करने में और हार के सदमे से उबरने में लगे हुए थे, तभी आइपीएल आ गया। शायद भारतीय फैंस इसे पचा नहीं पाए। जरूरत से कहीं ज्यादा क्रिकेट भी आइपीएल के लिए नुकसान का सौदा साबित हो रहा है। भारतीय क्रिकेट प्रेमियों को आइपीएल में अब एक और कमी साफ तौर पर दिखने लगी है। आइपीएल में अब नए सितारों का सामने आना लगभग खत्म हो चुका है।


फिलहाल आइपीएल की उपयोगिता सिर्फ इतनी रह गई है कि बड़े-बड़े नाम इसके जरिये टीम में वापसी का रास्ता तलाश रहे हैं। कुछ गिने-चुने नए नाम अगर सामने आए भी हों तो उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मौका मिलेगा, इसकी संभावना फिलहाल नहीं के बराबर है। आइपीएल में आइकन प्लेयर की परंपरा भी खत्म ही हो गई। पिछले साल और इस साल में दिल्ली और मुंबई को छोड़ दिया जाए तो किसी भी टीम ने अपने बड़े आइकन प्लेयर को रीटेन नहीं किया। मुंबई ने सचिन तेंदुलकर और दिल्ली ने वीरेंद्र सहवाग को अपनी अपनी फ्रेंचाइजी के साथ बनाए रखा। आइकन प्लेयर से हुए मोहभंग के पीछे बाजार का मानना यह है कि आइपीएल अब पूरी तरह बाप बड़ा ना भैया, सबसे बड़ा रुपैया की तर्ज पर खेला जा रहा है। फ्रेंचाइजी के मालिकों को लगता है कि वे पहले अपनी टीम के नुकसान को पूरा करें, उसके बाद ही कुछ और सोचेंगे। इसके चलते एक बड़ा बदलाव यह दिखाई देता है कि कुछ टीमें तो क्रिकेट सितारों से भरपूर हैं, जबकि कुछ टीमों में इक्का-दुक्का चेहरों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर नाम बिल्कुल नए हैं।


आखिर में एक और बेहद अहम बात। एक वक्त था, जब फिल्म निर्माता आइपीएल के दौरान अपनी फिल्मों को रिलीज करने से परहेज करते थे, लेकिन इस बार आइपीएल की घटती लोकप्रियता की भनक मायानगरी तक भी पहुंच चुकी थी। फिल्म निर्माताओं ने इस बार आइपीएल की परवाह किए बिना फिल्में रिलीज की। साजिद खान की फिल्म हाउसफुल-2 आइपीएल शुरू होने से ठीक दो दिन बाद थिएटर में थी। इसके अलावा तेज और जन्नत-2 जैसी फिल्में भी आइपीएल के दौरान ही रिलीज होने वाली हैं। प्रेस को दिए इंटरव्यू में साजिद खान ने यहां तक कहा कि उनकी फिल्म को आइपीएल से कोई नुकसान नहीं है। आइपीएल के आयोजन को लेकर बीसीसीआइ को हमेशा कठघरे में खड़ा किया गया है। टेस्ट क्रिकेट में भारतीय टीम के खराब प्रदर्शन से लेकर खिलाडि़यों की फिटनेस के लिए आइपीएल को दोषी ठहराया जाता रहा है। बावजूद इसके बोर्ड हमेशा आइपीएल के साथ खड़ा रहा है, लेकिन हालात अब बदल रहे हैं। बोर्ड को आइपीएल के भविष्य को लेकर कुछ सोचने की जरूरत है। वरना, दर्शक के हाथ में सबसे बड़ा हथियार रिमोट तो है ही।


लेखक शिवेंद्र कुमार सिंह खेल पत्रकार हैं

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