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बेटी को दें जीने का अवसर

जागरण मेहमान कोना
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भारतीय संस्कृति में स्त्री को शक्ति, ज्ञान एवं समृद्धि का स्वरूप मान कर उसकी पूजा की जाती है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो झूठे मान-सम्मान की खातिर अपनी बेटी को मौत के घाट उतार डालते हैं। पिछले दिनों ऐसी ही एक घटना रायबरेली में हुई, जहां 17 साल की लड़की को उसके पिता ने मार डाला। लड़की ने अपनी मर्जी से शादी कर ली थी। लगभग इसी समय मुंबई की सड़क पर एक महिला ने एक कन्या को जन्म दिया और नवजात शिशु का जीवन बचाने के लिए कुछ भी नहीं किया गया। जब मैं सायना नेहवाल, दीपिका कुमारी, कृष्णा पूनिया, इंदिरा नूयी, लता मंगेशकर आदि को विविध मंचों से भारत का प्रतिनिधित्व करते देख गर्व का अनुभव करता हूं, तब मैं इस विचार से शर्मिंदगी का भी अनुभव करता हूं कि बहुत से अभिभावक अपनी अजन्मी कन्या को जीने का अवसर न देने का निर्णय ले रहे हैं। एक समाज के रूप में हम अपने व्यवहार के इस विरोधाभास को पहचान नहीं रहे हैं जिसमें हम देवी का पूजन करते हैं एवं पुत्रियों की हत्या कर देते हैं? क्या हम नहीं जानते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या के निराशाजनक आंकडे़ महज संख्या नहीं, बल्कि वे लड़कियां हैं जिन्हें स्वयं को प्रमाणित करने का अवसर मिलने से पहले ही मार डाला गया।


2011 की जनगणना के अनुसार देश में पुरुष महिला अनुपात 1000:914 रह गया है। यह अनुपात आजादी के बाद से निम्नतम है। 2001 की जनगणना में अनुपात 1000:927 था। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने एवं परिवारों को कन्या को जन्म देने के लिए प्रोत्साहन देने के बावजूद हम अपने सामाजिक व्यवहार में सुधार लाने में असमर्थ रहे हैं एवं हमारी चेतना मानो विकृत हो चुकी है। जब लड़कियों एवं महिलाओं ने विविध क्षेत्रों में स्वयं को प्रमाणित किया है, हमारे जीवन में उनके स्थान को प्रमाणित किया है, तो फिर हम क्यों निरर्थक तर्काधार से बंधे हुए हैं? यदि आज भी कन्याएं बोझ के रूप में देखी जाती हैं, तो केवल इसलिए क्योंकि समाज में अभी भी उनके स्थान का अतिक्रमण किया जाना जारी है। कन्या के विवाह के समय दिए जाने वाले दहेज के लिए कौन जिम्मेदार है? लड़कियां अपने घर के बाहर सुरक्षित नहीं हैं इस कड़वे सच के लिए कौन जिम्मेदार है? और इन सारी सामाजिक बुराइयों का हल क्या है? क्या हम सबके एकत्रित प्रयास इसका अंत कर सकते हैं? भारत सरकार ने कन्याओं के जन्म को प्रोत्साहन देने के लिए नगद एवं सेवाओं के रूप में बहुत सारी योजनाओं की शुरुआत की है। धनलक्ष्मी, परिवारों को कन्या भ्रूण का वहन करने के लिए दिया जानेवाला एक परीक्षणात्मक आर्थिक प्रोत्साहन है। सबला जैसी अन्य योजनाएं किशोरावस्था प्राप्त कन्याओं का सशक्तीकरण करती हैं।


हरियाणा सरकार ने लाड़ली एवं शगुन जैसी योजनाएं आरंभ कर दी हैं, जो कन्याओं की शिक्षा, पोषण एवं विवाह के लिए नगद प्रोत्साहन देती हैं। भ्रूण हत्या रोकने के लिए विशेष तौर पर कन्याओं के लिए शिक्षा, रोजगार आदि की व्यवस्था करनी होगी। महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के बढ़ते मामले देखते हुए मानवता एवं संवेदना तथा आदर एवं सम्मान की भावना को कायम करना होगा। हमें यह जानना होगा कि हमारे देश की कन्याएं एवं महिलाए अत्यंत सक्षम हैं। उन्हें जरूरत है तो बस उचित अवसर की। यदि हम लड़कियों को विकास करने का अवसर नहीं दे रहे, उन्हें जीवन जीने का अवसर प्रदान नहीं कर रहे हैं तो हम उन स्थितियों को जन्म दे रहे हैं जिनमें लड़कियों को जन्म से पहले या जन्म लेने के बाद मार दिया जाता है। अपनी बेटियों को सपने देखने का, अभिलाषा रखने का तथा जीवन जीने का अवसर दें। आइए, हम सभी ये छोटे कदम उठाएं और स्वाभिमानी अभिभावक, स्वाभिमानी नेता एवं भारत के स्वाभिमानी नागरिक कहलाएं।


लेखक लोकसभा के सदस्य नवीन जिंदल हैं


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