- 1877 Posts
- 341 Comments
इस बात से भला कौन इन्कार करेगा कि आइपीएल में तमाम विसंगतियां हैं। पिछले चार साल की तरह इस बार भी आइपीएल के दौरान तमाम विवाद हुए, लेकिन कोलकाता नाइट राइडर्स को मिली जीत के बाद पश्चिम बंगाल सरकार की तरफ से किए गए सम्मान समारोह को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सिर्फ राजनीतिक फायदे भर से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। इस सम्मान समारोह में सरकारी अमले के दुरुपयोग की भी बातें हो रही हैं। इस चर्चा को सिरे से खारिज करना भी ठीक नहीं है, लेकिन कोलकाता की जीत के जश्न को राजनीतिक हथकंडा बता देना भी एक तरफा नजरिया है। पहले तो यह समझने की जरूरत है कि कोलकाता में क्रिकेट की दीवानगी क्या है? जिस कोलकाता ने इस टूर्नामेंट में हमेशा अपनी टीम को खस्ता हाल देखा हो, उसे टीम की जीत पर खुशी मनाने का अधिकार क्यों नहीं है? अगर कोलकाता के क्रिकेट प्रशंसक सौरव गांगुली के समर्थन में सड़कों पर आ सकते हैं, पूर्व कोच ग्रेग चैपल का पुतला फूंक सकते हैं तो फिर अपनी टीम की जीत पर ईडन गार्डेन में नाच क्यों नहीं सकते? गौतम गंभीर भले ही कोलकाता के न हों, लेकिन टीम में जूनियर दादा के नाम से मशहूर मनोज तिवारी सहित कई खिलाड़ी कोलकाता के ही हैं।
2011 में भारत ने जब विश्वकप जीता था तो कोच गैरी कर्स्टन को खिलाडि़यों ने कंधे पर बिठा लिया, उस वक्त तो किसी ने नहीं पूछा कि गैरी तो दक्षिण अफ्रीका के रहने वाले हैं। ऐसा नहीं है कि यह सवाल टीम के मालिक शाहरुख खान से नहीं पूछा गया। उन्होंने इसे सीधे तौर पर जीत की खुशी से जोड़ दिया। कॉमनवेल्थ खेलों के बाद हरियाणा के मुख्यमंत्री ने भी सम्मान समारोह का आयोजन किया था। एक बड़े से मैदान में भव्य मंच लगाकर पूरी राजनीतिक रैली की गई थी, लेकिन वहां उस मौके पर नाचने के लिए शाहरुख खान नहीं थे, जूही चावला नहीं थीं। कार्यक्रम न तो ज्यादा सुर्खियों में आया, न ही कोई विवाद हुआ। किसी ने भी सरकारी खजाने, सरकारी मशीनरी या किसी और दुरुपयोग की बात तक नहीं की, लेकिन जब टीवी चैनल पर लगातार शाहरुख खान की डांस करती तस्वीरें और ममता बनर्जी के हाथ में माइक दिखा तो लोगों को आपत्ति होने लगी। लगे हाथ एक और बिंदु पर बात कर लेते हैं।
क्रिकेट या फिर किसी भी दूसरे खेल में जब भारतीय टीम को कोई बड़ी कामयाबी मिलती है तो प्रधानमंत्री-राष्ट्रपति कार्यालय से शुभकामना संदेश क्यों भेजे जाते हैं? खिलाडि़यों को सम्मान क्यों किया जाता है? इसीलिए न कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करके जब घर लौटते हैं तो उनकी खुशी में शामिल हुआ जाए। अब कोलकाता की टीम के सम्मान समारोह को कठघरे में खड़ा करने वालों का तर्क होगा कि कोलकाता तो एक घरेलू टूर्नामेंट जीती है। और वह तो एक क्लब टीम जैसी है। इसका भी जवाब है। सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग या फिर महेंद्र सिंह धौनी भी भारत के लिए खेलते हैं। 2004 में हुए टीवी प्रसारण विवाद में बीसीसीआइ ने यह बात बाकायदा अदालत में कही थी किवह एक स्वतंत्र बॉडी है। दरअसल, यह बात समझने की जरूरत है कि हमारे देश में क्रिकेट को धर्म का दर्जा प्राप्त है। इसलिए उसे लेकर लोगों की भावनाएं भी अलग-अलग हैं। अगर क्लब टीम होने के नाते कोलकाता की टीम को सम्मानित नहीं किया जाना चाहिए तो फिर बीसीसीआइ की टीम होने की वजह से क्रिकेट खिलाडि़यों को राष्ट्रीय खेल पुरस्कार भी नहीं मिलना चाहिए।
आइपीएल की विसंगतियों की वकालत करना गलत होगा, लेकिन गड़बड़ी हर जगह है। क्रिकेट में फिक्सिंग से लेकर मारपीट तक सब कुछ हो चुका है, लेकिन इसे लेकर लोगों की दीवानगी कम नहीं हुई। वैसे ही भारतीयों के पास मनोरंजन के साधन बड़े ही सीमित हैं, आइपीएल को बंद किए जाने जैसी बात भी क्रिकेट प्रशंसकों के लिए जायज नहीं है। रही बात कोलकाता के सम्मान समारोह की तो ज्यादातर भारतीय मनोवैज्ञानिक तौर पर एक्सट्रीम में रहते हैं। किसी मुद्दे पर तमाम दूसरी बातें भले ही नजरअंदाज कर दी जाएं, लेकिन सम्मान समारोह आंखों को चुभ गया तो चुभ गया। अगर यही खिताब चेन्नई की टीम जीतती, बेंगलूर या मुंबई इंडियंस आइपीएल चैंपियन बनते तो क्या गारंटी है कि जश्न नहीं होते। बल्कि इससे भव्य और बड़े पैमाने पर आयोजन होते। यह बात और है कि यह सब किसी स्टेडियम के बजाय आलीशान होटलों की रंग-बिरंगी रोशनियों में होता।
लेखक शिवेंद्र कुमार सिंह खेल पत्रकार हैं
हिन्दी ब्लॉग, बेस्ट ब्लॉग, बेहतर ब्लॉग, चर्चित ब्लॉग, ब्लॉग, ब्लॉग लेखन, लेखक ब्लॉग, Hindi blog, best blog, celebrity blog, famous blog, blog writing, popular blogs, blogger, blog sites, make a blog, best blog sites, creating a blog, google blog, write blog
Read Comments