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परमाणु संयंत्र पर राजनीति

जागरण मेहमान कोना
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तमिलनाडु के कुडनकुलम में बनने वाले परमाणु ऊर्जा सयंत्र को लेकर सरकार और वहां के स्थानीय लोगों में काफी मतभेद है। कुडनकुलम परमाणु विद्युत ऊर्जा संयंत्र का विरोध तमिलनाडु में बढ़ता ही जा रहा है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के चेतावनी भरे पत्र के बावजूद राज्य सरकार आंदोलनकारियों के साथ खड़ी है। मुख्यमंत्री जयललिता का कहना है कि उनकी सरकार लोगों की भावनाएं समझती है और उनका सम्मान करेगी। जयललिता ने तूतीकोरन में निकाय चुनाव के लिए आयोजित एक प्रचार सभा में कहा कुडनकुलम जिले के इदिंथकराई गांव में परमाणु ऊर्जा परियोजना के मुद्दे पर मैं आंदोलनकारियों के साथ हूं। उनका यह बयान बेहद अहम है, क्योंकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पिछले दिनों ही उन्हें पत्र लिखकर कुडनकुलम संयंत्र के विरोध को गलत बताया था। प्रधानमंत्री ने जया से समर्थन मांगते हुए पत्र में कहा था कि भारत रूस के सहयोग से शुरू होने वाली इस परियोजना के विरोध में चल रहे आंदोलन से राज्य और देश का विकास बाधित होगा। इस मुद्दे पर जमकर राजनीति की जा रही है। किसी को इस बात की परवाह नहीं है कि इस संयंत्र के बंद होने पर इतने बड़े पैमाने पर हुए नुकसान कि भरपाई कौन करेगा? पिछले दिनों रूस के सहयोग से 15 हजार करोड़ की लागत से बनने वाले इस सयंत्र के खिलाफ स्थानीय लोगो ने आंदोलन और आमरण अनशन भी किया। बाद में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के अनुरोध और प्रधानमंत्री कार्यालय के हस्तक्षेप के बाद 127 परिवार के लोगों का आमरण अनशन तोड़ा गया।


खास बात यह है कि यह आंदोलन तब शुरू हुआ जब इसका 90 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। जिस तरह से कुडनकुलम के स्थानीय लोग इस संयंत्र से डरे हुए है उसको देखकर लगता नहीं कि यह संयंत्र जल्दी शुरू हो पाएगा। यह बात शायद कई लोगों को अजीब लग रही होगी कि जापान में आए भूकंप के कारण परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में हुए विस्फोटों के बाद भी दुनिया में बड़े पैमाने पर नए परमाणु सयंत्रों का निर्माण करने की बात की जा रही है। निश्चित रूप से इस काम में हमेशा से ही जोखिम रहा है, लेकिन भारत, चीन, तुर्की, पाकिस्तान, वियतनाम और दुनिया के कई ऐसे देश क्या करें जिनके पास प्राकृतिक ऊर्जा संसाधन बहुत कम है। यह देश परमाणु उर्जा पैदा करके ही बिजली के क्षेत्र में अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते हैं।। परमाणु ऊर्जा शांतिपूर्ण और कल्याणकारी भी हो सकते है। जापान उन देशों के बीच अगुवा रहा है जिन्होंने 1970 वाले दशक के तेल संकट की रामबाण दवा के तौर पर परमाणु ऊर्जा को राष्ट्रीय प्राथमिकता देने की पहल की। आज उसके पास कुल 55 परमाणु बिजली घर हैं। देश की एक तिहाई बिजली इन्हीं से पैदा होता है। मित्सुबिशी, तोसीबा और हिताची जैसी जापानी कंपनियां दुनियाभर में परमाणु बिजली घर बनाती हैं।


जलवायु परिवर्तन को थामने के लिए कार्बनडाई आक्साइड उत्सर्जन घटाने का तर्क परमाणु ऊर्जा के पक्ष में एक नया नारा बन गया है। इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कोयले पर आधारित थर्मल पावर की जगह परमाणु ऊर्जा ज्यादा साफ-सुथरी नजर आती है। तमिलनाडु के कुडनकुलम परमाणु परियोजना को लेकर चल रहे विवाद के बीच परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व प्रमुख एमआर श्रीनिवासन ने कहा है कि इस परियोजना के खिलाफ चलाए जा रहे दुष्प्रचार अभियान को रोकने के लिए एक सशक्त जनसंपर्क की जरूरत है। भारतीय परमाणु उर्जा एजेंसी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल काकोदकर कुडनकुलम, जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना को जरूरी ठहरा रहें हैं। उनके मुताबिक देश की ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति करने के लिए परमाणु ऊर्जा बेहतर विकल्प है। आधुनिक टेक्नोलॉजी काफी विकसित और सुरक्षित होती जा रही है। इसकी बदौलत परमाणु बिजली घरों में दुर्घटनाओं के जोखिम बहुत कम हो गए हैं जो भविष्य में और भी कम हो जाएंगे। रूस के प्रधानमंत्री ब्लादिमीर पुतिन ने इसी बात की ओर ध्यान आकर्षित किया है। उन्होंने कहा कि जापान के फुकुशिमा रिएक्टर बहुत पुरानी तकनीक और डिजाइन के थे और भविष्य में एहतियात बरतते हुए ऐसे न्यूक्लियर प्लांट बनाए जा सकते हैं जो भूकंपों और सुनामी को झेल सकें।


आजकल दुनियाभर में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए अलग-अलग चरणों में 62 परमाणु रिएक्टरों का निर्माण किया जा रहा है। इसके अलावा भविष्य में 300 से ज्यादा नए रिएक्टरों के निर्माण के लिए परियोजनाओं पर चर्चा हो रही है। रूस, चीन, भारत और दुनिया के कुछ अन्य देशों में राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा व्यवस्था के आधुनिकीकरण के कार्यक्रमों को अमलीजामा पहनाया जा रहा है। भारत, वियतनाम, तुर्की और बुल्गारिया में जो परमाणु बिजली घर बनाए जा रहे हैं रूस उनके निर्माण में सहायता कर रहा है। चीन और रूस जैसे अग्रणी देशों ने इस बात की स्पष्ट रूप से घोषणा की है कि वे जापान में घटी दुर्घटना के बावजूद नई पीढ़ी के परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण के अपने कार्यक्रमों का त्याग नहीं करेंगे। देश में ऊर्जा की बढ़ती मांग के हिसाब से उत्पादन का बढ़ना भी जरूरी हो गया है। जहां सन 2000-01 में भारत में प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत 374 किलोवाट प्रतिवर्ष थी वहीं वर्तमान में खपत 652 किलोवाट हो गई है। हमारे योजनाकार वर्ष 2013 तक प्रति व्यक्ति ऊर्जा की खपत एक हजार किलोवाट का अनुमान कर रहे हैं। विकसित देशों में प्रति व्यक्ति लगभग 10 हजार किलोवाट ऊर्जा की वार्षिक खपत है। विकास का जो मॉडल हम अपना रहे हैं उस दृष्टि से प्रत्येक पंचवर्षीय योजना में हमें ऊर्जा उत्पादन को लगभग दो गुना करना होगा। योजना आयोग ने 2006 में समग्र ऊर्जा नीति प्रकाशित की थी। इस नीति में कोयले से उत्पन्न ऊर्जा को सबसे खराब बताया गया, क्योंकि इस प्रक्रिया में जहरीली गैसें, राख व गंदा पानी निकलता है।


जंगल व वनस्पति की हानि होती है और खनन के कारण विस्थापन भी होता है। परमाणु ऊर्जा इसकी तुलना में श्रेष्ठतम है। देश में वर्तमान ऊर्जा की स्थिति देखने से पता चलता है कि थर्मल पावर कुल ऊर्जा उत्पादन में 64.6 प्रतिशत का योगदान देता है, जल विद्युत 24.6 प्रतिशत, परमाणु ऊर्जा 2.8 प्रतिशत और पवन ऊर्जा का मात्र एक प्रतिशत योगदान है। देश में उत्पादित कुल ऊर्जा का 23 प्रतिशत वितरण में नष्ट हो जाता है। फिलहाल भारत में 14 परमाणु बिजलीघर हैं जिनसे 2550 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन हो रहा है। नौ अन्य रिएक्टर निर्माणाधीन है, जिनसे 4092 मेगावाट ऊर्जा का उत्पादन होगा। ऊर्जा आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर हमें एक व्यापक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। अत्यधिक उपभोग और बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए देश की ऊर्जा जरूरतों की पूर्ति के लिए कुडनकुलम, जैतापुर जैसी परियोजनाएं जरूरी हैं। हां, इतना अवश्य है कि इनमें उच्चस्तर के सुरक्षा मानकों का कड़ाई से पालन हो, ताकि भविष्य में किसी भी तरह की आपदा को रोका जा सके।


लेखक शशांक द्विवेदी स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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