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लड़ाई का मुद्दा बनतीं परियोजनाएं

जागरण मेहमान कोना
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कुडनकुलम न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम द्वारा दी गई हरी झंडी के बावजूद आम लोगों का समर्थन नहीं मिल पा रहा। पूर्व ऊर्जा सचिव और योजना आयोग के ऊर्जा सलाहकार रह चुके ईएएस सरमा ने भी कुडनकुलम में लग रहे परमाणु ऊर्जा संयत्र का विरोध किया है। गौरतलब है कि भारत अपनी ऊर्जा समस्या के लिए परमाणु बिजली संयत्रों के जरिये जो ऊर्जा हासिल करना चाहता है उसके लिए कई न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाए जाने हैं। इसके लिए अमेरिका के साथ बड़े पैमाने पर भारत ने परमाणु संधि किया है। पहले जैतपुर फिर हरिपुर और अब कुडनकुलम में लगाए जा रहे परमाणु परियोजनाओं का जबरदस्त विरोध हो रहा है। जैतपुर महाराष्ट्र में है जहां कांग्रेस की सरकार है। हरिपुर पश्चिम बंगाल में स्थित है जहां कांग्रेस की सहयोगी तृणमूल कांग्रेस की सरकार है और कुडनकुलम परियोजना तमिलनाडु में है जहां हाल तक कांग्रेस की ही सरकार थी और अब कांग्रेस से स्वाभाविक नजदीकी रखने वाली जयललिता की सरकार है। फिर भी वहां इस पावर प्रोजेक्ट का विरोध हो रहा है। कहने का मतलब यह कि अगर कांग्रेस यह कहती है कि ये राजनीतिक विरोध हैं तो यह सही नहीं होगा, क्योंकि जहां जहां भी ये विरोध हो रहे हैं वहां-वहां या तो कांग्रेस की सरकारें हैं या कांग्रेस के सहयोगी दलों की सरकारें सत्ता संभाल रही हैं। असली बात यह है कि परमाणु ऊर्जा को लेकर पूरी दुनिया में एक किस्म का असुरक्षाबोध व्याप्त है और यह असुरक्षाबोध अस्वाभाविक भी नहीं है। जिस तरह जापान में इस साल आए भीषण सुनामी के चलते फुकुयामा परमाणु संयत्र तहस-नहस हुआ उससे पूरी दुनिया का हिलना स्वाभाविक है।


गौरतलब है कि फुकुयामा परमाणु ऊर्जा परियोजना को भूकंप की आशंका को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया था और उसकी रिक्टर स्केल पर 11 अंक तक भूकंप प्रतिरोध की क्षमता थी, लेकिन जिस किस्म की भीषण सुनामी आई उसकी तो कभी कल्पना ही नहीं की गई थी। इसलिए संबंधित राज्यों के स्थानीय लोगों को वहां की सरकार और सुरक्षा विशेषज्ञों द्वारा दिए जा रहे तमाम तरह के आश्वासन भी संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं कि भविष्य में ये परमाणु ऊर्जा संयत्र अनिवार्य रूप से सुरक्षित ही रहेंगे। केंद्र सरकार ने बहुत होशियारी से इन संस्थानों की सुरक्षा संबंधी जांच समिति का मुखिया पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को बनाया था। सरकार के दिल दिमाग में निश्चित रूप से यही कामना रही होगी कि डॉ. कलाम का देश में जो सम्मान है और उनके द्वारा कहे गए बातों की जो विश्वसनीयता है उसके आगे तमाम विरोध स्वत: ही पस्त हो जाएंगे और सरकार बिना किसी बाधा के अपनी रूपरेखा को अंजाम दे सकेगी। मगर ऐसा व्यवहार में नहीं हुआ। लोग राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का सम्मान तो करते हैं, लेकिन वह यह सम्मान अपनी सुरक्षा की कीमत पर नहीं करते। यही वजह है कि लोगों ने साफतौर पर उन सुरक्षा मानकों पर यकीन करने से इंकार कर दिया जिन सुरक्षा मानकों की पुष्टि डॉ. कलाम ने की है और जिसके तहत उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि ये संस्थान भूकंप की स्थिति में भी सुरक्षित रहेंगे।


सरकार और आम लोगों के बीच अविश्वास की संभवत: सबसे बड़ी वजह यह है कि सरकार आम लोगों को विश्वास में लेकर आगे नहीं बढ़ रही है जिसकी कि फिलहाल बहुत आवश्यकता है। तमिलनाडु के कुडनकुलम परियोजना के लिए यह विरोध आज की तारीख में सबसे ज्यादा है। बावजूद इसके कि इस संयत्र के 16 किलोमीटर के दायरे में परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड जोनिंग सिस्टम लागू कर चुका है, लेकिन यह बहुत ही दुर्भाग्य की बात है कि इन सबसे भी स्थानीय निवासियों को बिल्कुल अनजान रखा जा रहा है। इस 16 किलोमीटर के दायरे में आपात स्थितियों जैसे परीक्षण भी किए जा रहे हैं, लेकिन स्थानीय लोगों को कुछ भी नहीं पता कि वहां आखिर हो क्या रहा है और इन सबका मतलब क्या है? यह बात ध्यान दिए जाने योग्य है कि कुडनकुलम में जो न्यूक्लियर पार्क बनने जा रहा है, वह जापान के फुकुयामा संयत्र से भी बड़ा संयत्र होगा और इसी वजह से माना जा रहा है कि बड़े पैमाने पर तामिलनाडु की ऊर्जा संबंधी जरूरतों को इससे पूरा किया जा सकेगा। लेकिन इतने बड़े संयत्र के लिए सरकार न तो मानसिक तौर पर पूरी तरह से वहां रह रहे स्थानीय निवासियों को अपने साथ जोड़ना चाहती है और न ही व्यावहारिक रूप से ही। शायद इसी कारण लोगों में गुस्सा है कि उन्होंने सम्मानित पूर्व राष्ट्रपति कलाम को भी इससे हाथ खींच लेने को कहा है।


कुडनकुलम परमाणु परियोजना का विरोध करने वालो में शामिल ईएएस सरमा ने सार्वजनिक रूप से पूर्व राष्ट्रपति की आलोचना करते हुए कहा कि उन्हें किसी भी तरह सौ फीसदी सुरक्षित परमाणु संयत्र का सर्टीफिकेट नहीं देना चाहिए। अगर सब कुछ वाकई इतना ही सुरक्षित है तो फिर डॉ. कलाम की दस सूत्रीय योजना से ऐसा क्यों लग रहा है कि वह भी इस सबके सुरक्षित होने को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं हैं? मसलन कुडनकुलम परमाणु परियोजना को हरी झंडी दिखाते समय डॉ. कलाम ने जो 10 सूत्रीय योजना पेश की है वह इसी आशंका को घनीभूत करती है। इस 10 सूत्रीय योजना में कहा गया है कि इस परियोजना के पूर्ण होने पर यहां 10 हजार लोगों को नौकरियां मिलेंगी। डॉ. कलाम ने सुझाव दिया है कि 200 करोड़ रुपये का एक फंड बनाया जाए और उससे इस क्षेत्र का समेकित विकास किया जाए। इसके तहत 30 किलोमीटर दायरे के सभी इलाकों को 4 लाइन से जोड़ने वाले हाईवे की मौजूदगी, 500 बिस्तरों का एक उच्चस्तरीय अस्पताल और इलाके के लोगों को नौकरी के साथ-साथ पेयजल की सुविधा उपलब्ध कराने को भी कहा गया है।


भाकपा इसका विरोध करते हुए कहती है हम इस योजना का हर हाल में विरोध करेंगे। चूंकि एपीजे अब्दुल कलाम का पुराना नाता परमाणु ऊर्जा क्षेत्र से रहा है तो भला वह इसकी वकालत क्यों नहीं करेंगे? कुडनकुलम परमाणु परियोजना धीरे-धीरे अब विरोधियों और इसके पक्षधरों के बीच तर्क-वितर्क से आगे बढ़कर लड़ाई का एक वैचारिक मुद्दा बनती जा रही है। यह अच्छी बात नहीं है। इसलिए सही तरीका यही होगा कि सरकार चोरी छुपे लोगों की भलाई करने के लिए बिजली उत्पादन की बजाय लोगों के साथ सारी सही सूचनाओं को साझा करे और उन्हें बताए कि इससे आने वाले समय में किस तरह के संकट खड़े हो सकते हैं और इससे लोगों को किस तरह की सहूलियतें मिलेंगी। इसके बाद ही लोग तय करेंगे कि उन्हें ये सुविधाएं चाहिए या नहीं? एक बात बिल्कुल शीशे की तरह साफ है कि जो कुछ भी कहा जा रहा है उसमें न तो पूरी तरह से सरकार सही है और न ही पूरी तरह से विरोधी। इसलिए बेहतर यही होगा कि इस पर पूरी बहस कराई जाए और लोगों को संतुष्ट किया जाए अन्यथा सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना खटाई में पड़ जाएगी।


लेखक लोकमित्र स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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