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महाराष्ट्र मूल के एक आइपीएस अधिकारी इंटरव्यू देने दिल्ली आए थे। बीच में दो दिन के अवकाश में उन्होंने हरिद्वार घूमने का निर्णय लिया। हरिद्वार के नजदीक आने के साथ उनका मन अनायास ही रोमांचित होने लगा। जैसे-जैसे वे गंगा के किनारे घाट पर पहुंचने लगे उनका रोमांच बढ़ता गया। इसी प्रकार विदेशी नागरिक बताते हैं कि गंगा के किनारे बैठकर उनका ध्यान सहज ही लग जाता है। इस प्रकार के अनुभव गंगा की मनोवैज्ञानिक शक्ति की देन हैं। पानी का विशेष गुण है कि वह विचार और भावनाओं को अपने अंदर जमा कर लेता है। जैसे आप अपनी डायरी में विचारों को डालते हैं और पुन: उन्हें निकाल लेते हैं इसी प्रकार पानी विचारों को लेता और देता है। पानी की इस अद्भुत मानसिक शक्ति को सभी धर्म मानते हैं। मुसलमान भाई काबा से लाए गए जमजम जल को इसी प्रकार का महत्व देते हैं। इसाइयों द्वारा जल से बैप्टिज्म किया जाता है। गंगा और यमुना पहाड़ों से शुभ विचार लेकर नीचे आती हैं। कुंभ में करोड़ों लोग भी शुभ विचार लेकर आते हैं। ये विचार गंगा के जल में प्रवेश करते हैं। इन विचारों से लबालब पानी में डुबकी लगाने से व्यक्ति का मानस शुद्ध हो जाता है। उसे ऐसा प्रतीत होता है कि उसका कायाकल्प हो गया है। उसकी ऊर्जा में वृद्धि होती है। घर वापस जाकर उसका मन कार्य में केंद्रित हो जाता है। इसीलिए करोड़ों लोग कुंभ की एक डुबकी के लिए अपनी जमा पूंजी को खर्च करने में नहीं हिचकिचाते हैं। एक दुकानदार सुस्त बैठा रहता है।
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उसका मन अशांत है। ग्राहक नहीं हैं अथवा टैक्स चुकाना है। ऐसे में वह कुंभ नहाकर आया तो उसकी उलझन समाप्त हो गई और वह चुस्त हो गया। इससे आर्थिक विकास को गति मिली। गंगा से मिलने वाली इस शक्ति का आकलन करने के लिए मैंने देवप्रयाग, ऋषिकेश और हरिद्वार में दोबारा आने वाले तीर्थ यात्रियों का सर्वेक्षण कराया। इनमें 77 प्रतिशत ने कहा कि गंगा में स्नान करने से उन्हें मानसिक शांति मिली। 26 प्रतिशत ने कहा कि उन्हें स्वास्थ्य लाभ हुआ, 14 प्रतिशत को धंधे में, 12 प्रतिशत को संतान प्रप्ति में, 12 प्रतिशत को नौकरी में एवं 9 प्रतिशत को परीक्षा में लाभ हुआ है। इन आंकड़ों से प्रमाणित होता है कि गंगाजल की मानसिक शक्ति को कायम रखने से आर्थिक विकास हासिल होता है। सरकार की नीति है कि गंगा के पानी का उपयोग सिंचाई, उद्योग एवं हाइड्रोपावर के लिए किया जाए। सही है कि इनसे आर्थिक विकास होता है। समस्या है कि इन आर्थिक विकास को हासिल करने के लिए नदी की मानसिक शक्ति का Oास होता है। फलस्वरूप गंगा से मिलने वाला मानसिक लाभ बहुत कम हो गया है। गंगा के पानी का अविरल बहाव न होने से उसमें निहित मानसिक शक्ति का जो Oास होता उसका आकलन करने का मैंने प्रयास किया है। देवप्रयाग, ऋषिकेश और हरिद्वार में यात्रियों से पूछा गया कि स्नान से जो लाभ मिला उसका वे कितना मूल्य अंाकते हैं? औसत में यह रकम 51,000 रुपये बैठी। इसके बाद उनसे पूछा गया कि टिहरी बांध बनने के बाद स्नान से मिलने वाले लाभ में कितना अंतर पड़ा? 80 प्रतिशत तीर्थयात्रियों ने बताया कि पूर्व में पानी ज्यादा अच्छा था, जबकि 20 प्रतिशत ने बताया कि पानी अब ज्यादा अच्छा है, क्योंकि जाड़े एवं गर्मी में पानी अब अधिक रहता है। इन यात्रियों द्वारा बताए गए लाभ-हानि का समग्र आकलन करने पर मैंने पाया कि औसत में प्रत्येक तीर्थ यात्री को टिहरी बांध बनने से 13,000 रुपये का नुकसान हुआ है। इसी प्रकार कुंभ में डुबकी लगाने वाले को पूर्व की तुलना में मानसिक लाभ कम मिल रहा है। नरोरा में गंगा और हथिनीपुर में यमुना का प्राय: पूरा जल निकाल लिया जाता है। आगरा एवं कानपुर में इन पवित्र नदियों में प्रदूषण डाला जा रहा है। दोनों नदियों पर तमाम हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बनाए जा रहे हैं। फलस्वरूप कुंभ में डुबकी लगाने वाले उपरोक्त से अनभिज्ञ यात्री को कम से कम 13,000 रुपये का घाटा हो रहा है, ऐसा मानने में मुझे कोई संकोच नहीं है।
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पांच करोड़ यात्रियों को होने वाला कुल घाटा 65,000 करोड़ रुपये बैठता है। प्रश्न है कि सरकार गंगा को सिंचाई, प्रदूषण और हाइड्रोपावर से मुक्त क्यों नहीं कर रही है? टिहरी, हरिद्वार, नरोरा और बिठूर के बैराज हटा दिए जाएं तो लोगों की मानसिक शक्ति तथा देश की आर्थिक विकास दर अवश्य बढ़ेगी। दुर्भाग्यवश सरकार को यह मान्य नहीं है। बात यह है कि स्नान से मिलने वाला लाभ आम जनता को मिलता है, जबकि सिंचाई, प्रदूषण तथा हाइड्रोपावर से होने वाले लाभ में मंत्रियों, अधिकारियों एवं उद्यमियों का हिस्सा है। किसान को पानी पहुंचाने के लिए नहर के निर्माण एवं चलाने में कमीशन मिलता है। उद्यमियों द्वारा प्रदूषण को नदी में बहाने से उसकी लागत कम आती है। टिहरी बांध बनाने में ठेके मिले और अब बनी बिजली से कमीशन मिलता है। गंगा के पानी को प्रदूषण मुक्त करने में सरकार के नीति-नियंताओं को मिलने वाले लाभ समाप्त हो जाएंगे। निष्कर्ष यह है कि गंगा को नहरों, प्रदूषण एवं बांधों से मुक्त करके कुंभ में स्वच्छ जल उपलब्ध कराने से देश के आर्थिक विकास में गति आएगी। इस आर्थिक विकास का लाभ आम आदमी को मिलेगा। नेता, अधिकारी और उद्यमी वंचित रह जाएंगे। अतएव सरकार द्वारा जनता को कहा जा रहा है कि आर्थिक विकास के लिए गंगा का पूरा पानी सिंचाई के लिए निकालना, प्रदूषण को नदी में बहाना और बिजली के लिए बांध बनाना जरूरी है। ऐसे में खंडित और प्रदूषित जल में कुंभ स्नान संपन्न हो रहा है। सरकारी अर्थशास्ति्रयों एवं संवेदनशील मंत्रियों तथा अधिकारियों को चाहिए कि कुंभ की सूक्ष्म शक्ति का भारत की संप्रभुता तथा आर्थिक विकास पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन कराएं।
लेखक डॉ. भरत झुनझुनवाला आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं
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