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भ्रष्टाचार के खिलाफ गांव-गांव अलख जगा रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी का दो टूक कहना है कि उनकी इस यात्रा का प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से कोई सीधा संबंध नहीं है। उनकी अपनी प्रधानमंत्री बनने की कोई ख्वाहिश भी नहीं है, लेकिन इस तरह की ख्वाहिश रखना गलत नहीं है। इस बारे में बार-बार पूछे जा रहे सवालों से आडवाणी बेहद खिन्न हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि फैसला पार्टी को करना है तो वह क्यों इंकार करें। आडवाणी ने अपनी जनचेतना यात्रा के दौरान विशेष संवाददाता रामनारायण श्रीवास्तव के साथ विभिन्न मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की। पेश हैं प्रमुख अंश-
भ्रष्टाचार व काले धन के मुद्दे पर जनचेतना यात्रा के जरिए आप गांव-गांव जा रहे हैं, क्या आपको लगता है कि लोगों को यह मुद्दा समझ में आ रहा है और वह मौजूदा सरकार के खिलाफ वोट के रूप में सामने आएगा?
देखिए, लोग सब समझते हैं। भारत का औसत आदमी अशिक्षित होते हुए भी राजनीतिक समझ रखता है। मैं जब बोलता हूं कि कितने लोग जेल में गए हैं, तिहाड़ में भी कैबिनेट की बैठक होगी, तब यह लोगों के दिमाग में बात बैठती है। लाखों करोड़ रुपये का हिसाब न समझते हुए भी लोग मूल मुद्दा समझते हैं। पढ़े-लिखे लोगों को समझ में आता है कि कर चोरी काला धन है या बेईमानी से कमाया धन काला धन है। जो धन विदेशी बैंकों में पड़ा हुआ है वह काला धन है। लोग आंकड़े भले न समझते हों, लेकिन मूल सवाल समझते हैं कि यह सब भ्रष्टाचार की कमाई है।
1990 की राम रथयात्रा और अब 2011 के जनचेतना यात्रा के आडवाणी में क्या अंतर है?
21 साल के समय का अंतर है। इससे राजनीतिक अनुभव बढ़ता है। उस समय मुद्दा दूसरा था। जिसने देश की राजनीति में असली पंथनिरपेक्षता पर बहस शुरू की थी। किसी भी स्टेज पर पंथनिरपेक्षता को गलत नहीं माना। असली पंथनिरपेक्षता यह है कि किसी भी धर्म का अनुयायी हो, उसका आदर करना चाहिए। यह पंथनिरपेक्षता इस देश की परंपरा है।
इस बार की यात्रा भाजपा के मूल मुद्दों के बजाय राजग के मुद्दों व पंथनिरपेक्षता पर ज्यादा केंद्रित है, क्या आपने हिंदुत्व के मुद्दे को छोड़ दिया है?
हिंदुत्व के बारे में यह दृष्टिकोण कि धर्म को मानना गलत है, देश की परंपराओं के खिलाफ है। धर्म व धार्मिकता एक सच्चाई है, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में धर्म का नाम लेते हैं तो दंगे याद आते हैं। जबसे जनसंघ बना और खासकर जब दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के अध्यक्ष रहे तो उन्होंने भी हमेशा कहा राष्ट्रवाद व हिंदुत्व भारतीयता के पर्यायवाची हैं। हम यही मानते हैं। हिंदुत्व का मुद्दा खत्म हुआ, यह सही नहीं है।
आप कह रहे हैं कि यात्रा को नीतीश कुमार ने हरी झंडी दिखाई और नरेंद्र मोदी ने ब्लाग लिखकर समर्थन दिया है। तो क्या यह माना जाए कि दोनों के बीच मतभेद खत्म हो गए हैं और अगले चुनाव में मोदी बिहार में व नीतीश गुजरात में प्रचार करते नजर आएंगे?
जब चुनाव होंगे, तब निर्णय करेंगे।
आपने कहा था कि यात्रा का प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से कोई संबंध नहीं है, क्या आप प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं?
मैंने तो कहा था कि मैं प्रधानमंत्री पद की दौड़ में नहीं हूं। फिर भी यात्रा को प्रधानमंत्री पद से क्यों जोड़ रहे हैं?
मैं भी इसको जोड़ नहीं रहा हूं, लेकिन क्या प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश रखना गलत है?
मैं नहीं मानता कि ख्वाहिश रखना गलत है। मैंने कहा है कि मेरी कोई ख्वाइश नहीं है। 2009 के चुनाव में जब मुझे प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीदवार चुना गया था तब भी यह निर्णय पार्टी ने लिया था। इसके बावजूद भी कि पाकिस्तान में मेरे वक्तव्य के बाद पार्टी में नाराजगी थी, जब पार्टी ने कहा कि अध्यक्ष बनो तो मैं बना। जब सरकार बनी थी और वाजपेयीजी ने उप प्रधानमंत्री बनने को कहा था तो वह भी बना।
अगले लोकसभा चुनाव में अगर पार्टी आपको कहे तो क्या आप प्रधानमंत्री बनना चाहेंगे?
मैं क्यों इंकार करूंगा, लेकिन कई बातें हैं। मसलन मेरा स्वास्थ्य कैसा रहता है। अगर कोई घटना या दुर्घटना घट जाए। अभी तो कोई चुनाव भी नहीं हैं, पर हम लोग चुनाव के लिए तैयार हैं।
आपने 1995 में अटल बिहारी वाजपेयी का नाम प्रधानमंत्री पद के लिए घोषित किया। लेकिन इस बार आप किसी का नाम घोषित क्यों नहीं कर रहे हैं?
क्योंकि अब मैं पार्टी अध्यक्ष नहीं हूं। तब था तो घोषित किया था। तब भी पार्टी ने निर्णय किया था और अभी भी पार्टी निर्णय करेगी।
भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले किसी को प्रधानमंत्री के रूप में पेश नहीं किया जाएगा? क्या आप मानते हैं कि चुनाव में बगैर चेहरे के जाना चाहिए?
जब संसदीय बोर्ड में चर्चा होगी तो मैं अपनी राय रखूंगा। मैं हमेशा इस मत का रहा हूं कि लोगों को अपना नेता पता होना चाहिए। भारत में और दुनिया भर में लोग जानना चाहते हैं कि उनका नेता कौन हो? चुनाव चाहे प्रदेश का हो या केंद्र का, चेहरा स्पष्ट होना चाहिए।
राहुल गांधी भी दलितों के घर जा रहे हैं और यात्रा कर रहे हैं। आपकी और उनकी यात्रा की तुलना की जा रही है। आपका क्या कहना है?
मुझे इस पर कुछ बोलना नहीं है। मेरी पार्टी की बहुत चर्चा होती है, लेकिन कांग्रेस के परिवारवाद के बारे में चर्चा क्यों नहीं होती?
उत्तर प्रदेश में यात्राओं के जरिए भाजपा एक बार फिर काशी, मथुरा व अयोध्या का कार्ड खेलने जा रही है। क्या मौजूदा समय में यह मुद्दा जनता में असर करेगा?
यह आप लोगों की सोच है। प्रदेश की यात्राओं को कहीं से शुरू करने व कहीं पर खत्म करने का आशय यह नहीं है। और अब कौन कह रहा है उन बातों को जो 1990 में कही गई थीं। हाईकोर्ट के निर्णय के बाद अयोध्या विवाद में स्पष्टता आ गई है। हाईकोर्ट ने माना है कि राम जन्मभूमि वहीं पर है।
क्या आडवाणी व अन्ना हजारे का रास्ता एक ही है?
लोकतंत्र में राजनीतिक विषयों पर सबसे बड़ी जिम्मेदारी राजनीतिक दलों की है। कुछ सामाजिक संगठन इस बारे में काम करें, यह अच्छी बात है। भ्रष्टाचार के मद्दे पर भाजपा ही नहीं, सभी दल, यहां तक कि वामदल भी संसद की संयुक्त समिति के पक्ष में थे। इसी दबाव में जेपीसी बनाई गई। मैं भी इस बारे में अपनी जवाबदेही मानता हूं। इसलिए इस मुद्दे को संसद के भीतर उठाने के साथ जनता के बीच भी हूं।
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