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एक परंपरा, जिसका धोखे से नाता

जागरण मेहमान कोना
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Uma Sriramआज के आधुनिक और शहरी जीवन में बिना शादी किए किसी के साथ-साथ रहने की परंपरा को आज हम जिस लिव इन रिलेशनशिप नाम से जानते हैं, क्या वह पश्चिमी देशों से आयातित है। वास्तव में यह परंपरा खुद अपने सभ्य और संस्कृति प्रधान देश में सदियों से मौजूद रही है। हमारे देश में यह एक ऐसी सामाजिक परंपरा रही है, जिसमें विधवाओं, अकेली रह रही परित्यक्ता औरतों को पुनर्विवाह के चलते फिर से वैवाहिक जीवन जीने का मौका मिल जाता है। वैसे यह प्रथा अपने देश की पिछड़ी जातियों व गरीबों के बीच विशेषकर राजस्थान में बेहद लोकप्रिय है। सदियों से हमारे देश में शादी एक बेहद खर्चीली और भारी-भरकम दहेज वाली प्रथा रही है, जबकि इस परंपरा में एक रुपया भी खर्च नहीं होता है और इसी के चलते यह गरीबों और पिछड़ी जातियों में बहुत पसंद की जाती है। राजस्थान के पुरुषों और महिलाओं को अपनी पंचायत की मंजूरी के बाद कभी भी अपने साथी को बदलने का अधिकार और सहूलियत प्राप्त है। आज की वर्तमान परंपरा में अब तक कई बदलाव आ चुके हैं, जिसके तहत एक महिला अपने पति को छोड़कर किसी दूसरे मर्द के साथ कभी भी जा सकती है। इसके लिए उसके नए पति द्वारा उसके पुराने पति को एक निश्चित रकम भर देनी होती है।


इन दिनों भारत लिव इन रिलेशनशिप परंपरा ने एक दूसरा ही मार्ग पकड़ लिया है। औरत चाहे तो अपने पति की नीलामी कर सकती है या फिर उसे छोड़कर किसी का भी दामन थाम सकती है। अब तो यदि किसी शादीशुदा महिला या पुरुष को किसी और से प्यार हो जाए तो वह एक निश्चित रकम अदा करके अपने नए प्यार के साथ जा सकता है। झटपट शादी की सुविधा यह घटना पश्चिमी राजस्थान की है। यहां के सिहाना गांव का एक पुरुष अपनी शादी से खुश नहीं था। इसके लिए उसने नाता परंपरा के माध्यम से दूसरी शादी करने की योजना बनाई। उस जैसे पुरुषों और महिलाओं की दूसरी शादी कराने के लिए पर्याप्त संख्या में दलाल या मध्यस्थ यहां मौजूद हैं। उस आदमी ने ऐसे ही एक दलाल को पकड़ा और अपनी इच्छा जताई। दलाल की सूची में एक ऐसी महिला थी जिसके पति ने उसे घर से निकाल दिया था और वह महिला अपने पांच साल के बेटे के साथ इस समय अपने मां-बाप के साथ रह रही थी, पर उसके मां-बाप बेहद गरीब थे और बहुत दिनों तक उसे अपने घर में रखने की स्थिति में नहीं थे। एजेंट ने दूसरी शादी करने के लिए तैयार उस आदमी को उस महिला से मिला दिया। शुरुआती बातचीत के बाद उन दोनों में शादी करने की सहमति बन गई और तय की गई शर्तो के अनुसार उस आदमी ने 80 हजार रुपये देकर पंचायत की मंजूरी के बाद शादी कर लिया। इस राशि में से उस एजेंट को एक तिहाई रकम मिली और बाकी के रुपये महिला के माता-पिता को महिला के बच्चे के पालन-पोषण करने के लिए मिल गए। इस प्रकार उस महिला की शादी भी हो गई और उसके बच्चे के पालन-पोषण का सहारा भी मिल गया, अन्यथा ऐसी शादियों में अमूमन बच्चे या तो अनाथ हो जाते हैं या फिर नए पिता की प्रताड़ना सहते रहते हैं। प्राचीन रीति-रिवाज इस प्राचीन परंपरा के तहत इच्छुक महिलाओं और पुरुषों को बड़ी आसानी से तलाक मिल जाता है और उनका पुनर्विवाह भी हो जाता है। पुरानी मान्यता के अनुसार हम यह मानकर चलते हैं कि शादियां तो स्वर्ग में ही तय कर दी जाती हैं, पर आज के युग में अब यह साइबर दुनिया में तय होने लगी हैं।


आज भी राजस्थान में यह अनोखी परंपरा कायम है कि नाता परंपरा के तहत कोई भी विवाहित महिला या पुरुष आसानी से तलाक लेकर और पूर्व निर्धारित राशि अदा करके दूसरी शादी कर सकता है। इसमें महिला और पुरुष दोनों को निश्चित राशि अदा करके कभी भी अपने जीवन-साथी को बदलने की आजादी है। इसके लिए उन्हें सिर्फ पांच गांवों के नेताओं वाली पंचायत को बताना होता है। पंचायत के सामने वे पहली शादी से हुए बच्चे के पालन-पोषण और अदा की जाने वाली धनराशि आदि मुद्दों पर अपनी परेशानी रखते हुए राहत की मांग कर सकते हैं। नाता परंपरा के निर्णय को कोई कहीं भी चुनौती नहीं दे सकता है। इसमें ब्राह्मण, राजपूत और जैन को छोड़कर बाकी सभी जातियों में विशेषकर गुर्जरों में यह परंपरा लोकप्रिय है।


औरतों की अदला-बदली राजस्थान में नाता परंपरा तेजी से उभरते हुए व्यापार का रूप ले चुकी है। अब तो यह गांवों की सीमा से बाहर निकलकर छोटे और मझोले शहरों तक फैल चुकी है और यहां शादी की जोड़ी मिलाने वाले एजेटों की पूरी फौज खड़ी हो चुकी है। इसमें एजेंटों को 30 फीसदी तक का अच्छा-खासा कमीशन मिल जाता है। पर इस कमीशन के चलते कुछ मामलों में कई धूर्त एजेंट महिलाओं को परंपरा के तहत भारी भरकम रकम मांगने के लिए उकसाते हैं, जिससे कि उनका कमीशन भी बढ़ जाए। दुर्भाग्य से कई मामलों में महिलाओं को पता भी नहीं होता है कि वे सिर्फ कुछ हजार रुपये के लिए किसी व्यक्ति के गले मढ़ दी गई हैं, बदल दी गई हैं या फिर जबरन किसी अनजाने पुरुष से मिलाने के लिए बेडरूम में धकेल दी गई हैं। इसी के साथ अधिकांश पुरुष इस परंपरा की आड़ में अपनी पत्नियों को छोड़ देने की धमकी देते हुए उन पर अपना कंट्रोल रखते हैं। आज इस परंपरा के तहत शादीशुदा मासूम महिलाओं को या तो जबरन बेच दिया जा रहा है या फिर उनकी अदला-बदली कर दी जा रही है। आज दुर्भाग्य से पंचायत के पास ऐसी कोई भी व्यवस्था नहीं है कि एजेंटों द्वारा मात्र कमीशन के लिए विवाहित महिलाओं का खुलेआम शोषण किया जा रहा है। इन सबके चलते राजस्थान में महिलाओं के शोषण का यह एक नया मार्ग ही खुल गया है।


नट परंपरा न सिर्फ राजस्थान, बल्कि मध्य प्रदेश और गुजरात में भी बड़ी तेजी से फैलती जा रही है। दुर्भाग्य से इनमें से अधिकतर मामलों का सार्वजनिक खुलासा भी नहीं हो पाता और सब कुछ चुपके से निबटा दिया जाता है। इस बुराई के बढ़ने के पीछे शायद एक कारण यह भी हो सकता है कि दहेज जैसी कुप्रथाओं जैसी सुर्खियां इसे नहीं मिल पाती है। नट प्रथा में सभी फैसले आग में घी का काम करते हैं। आज गांवों में जाति पंच एक मजबूत और संगठित रूप ले चुका है। इसमें उच्च जातियों के बड़ी उम्र के लोग होते हैं, जो आसपास के गांवों के निवासी होते हैं और उनके साथ होती है पुलिस। ग्राम अंचलों में जाति पंच एक ऐसी व्यवस्था है, जो विवादित मामलों को सुलझाती है। शादी के विवादों पर अपना निर्णय देती है और यह नाता परंपरा में सर्वोच्च होती है। पुरुषों के प्रभुत्व वाली यह व्यवस्था अपने हर निर्णय में महिलाओं की कोई भी भागीदारी स्वीकार नहीं करती है और महिलाओं से जुड़ा हर निर्णय वह खुद लेती है, जिस कारण यह भ्रष्ट भी हो रही है।


लेखिका उमा श्रीराम स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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