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न्याय की प्रतिमूर्ति

जागरण मेहमान कोना
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जस्टिस संतोष हेगड़े और कर्नाटक के लोकायुक्त ने अपनी सेवानिवृत्ति से पहले राज्य में चल रहे अवैध खनन का पर्दाफाश करते हुए रिपोर्ट सौंपी, जिससे पूरे देश में हड़कंप मच गया। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री येद्दयुरप्पा को राज्य में होने वाले अवैध खनन में सहभागी और संरक्षक बताया था। इस कारण येद्दयुरप्पा को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा। संतोष हेगड़े अपनी ईमानदारी और न्यायप्रियता के लिए जाने जाते हैं। वह टीम अन्ना के भी सदस्य हैं और जनलोकपाल का मसौदा तैयार करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही हैं। 1999 में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडियाना जज के रूप में संतोष हेगड़े का चयन हुआ। जब देश में आपातकाल लागू किया गया, तो उन्होंने इसका विरोध किया था। इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। उन्हें भारत का चीफ जस्टिस नहीं बनाया गया। जबकि वह इस पद के प्रबल दावेदार थे। इसके विरोध में हेगड़े ने इस्तीफा सौंप दिया। इसके बाद बार की ओर से 1999 में ही उनका चयन सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में किया गया।


2005 में वह सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति पद से निवृत्त हुए। अपने लंबे अनुभव के आधार पर हेगड़े कहते हैं कि भारत में लोकतंत्र की व्याख्या बदल रही है। देश की सरकार चुने गए लोगों द्वारा चुने गए लोगों के हित में चल रही है, आम आदमी के लिए नहीं। जस्टिस हेगड़े कहते हैं कि निर्वाचित लोगों ने देश के संविधान को काफी नुकसान पहुंचाया है। चुनाव आयोग के तमाम कायदे-कानूनों की धज्जियां इन्हीं निर्वाचित लोगों द्वारा उड़ाई जाती है। उदाहरण हमारे सामने है कि चुनाव आयोग ने चुनाव लड़ने के लिए अधिकतम राशि निर्धारित की हुई है। पर हम सभी जानते हैं कि प्रत्याशी इससे कई गुना अधिक खर्च करते हैं। इस तरह से नेता चुनाव में अपनी पूंजी का निवेश करते हैं, उसके बाद संसद में जाकर क्या करते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है।


लोकसभा के पिछले सत्र में केवल 107 सांसद ही बोलने के लिए खड़े हुए थे। ऐसे न जाने कितने सांसद हैं, जो अपने 5 साल के कार्यकाल में केवल 6 बार ही बोलने के लिए खड़े हुए हैं। संसद में आपराधिक प्रवृत्ति के सांसदों में 17.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। ये सभी रातो-रात करोड़पति कैसे बन गए हैं, यह भी किसी से छिपा नहीं है। जस्टिस हेगड़े कहते हैं कि न्यायमूर्तियों की नियुक्ति के लिए जो अर्हताएं और नियम-कानून अपनाए जाते हैं, वे भी चिंताजनक हैं। पहले न्यायाधीशों की नियुक्ति में गुणवत्ता और निष्ठा का समावेश होता था, अब हालात पूरी तरह से बदल गए हैं। उनका मानना है कि भ्रष्टाचार के जितने मामले दर्ज किए गए हैं, उसका समाधान एक वर्ष में ही हो जाना चाहिए। इसके लिए विशेष न्यायालयों का गठन किया जाना चाहिए।


अभी तो ये हाल है कि भ्रष्टाचार के एक मामले को निपटाने में ही दस वर्ष का समय लग जाता है। इसके पीछे आखिर परेशानी आम आदमी को ही उठानी पड़ती है। वह कहते हैं कि बेल्लारी में किस तरह से अवैध खनन हो रहा है और खुलेआम भ्रष्टाचार हो रहा है, जो उसे देख लेगा, उसका कानून से विश्र्वास ही उठ जाएगा। हेगड़े का कहना है कि निर्वाचित प्रतिनिधि सत्ता के नशे में अपने आपको देश का सुपरसिटीजन मानने लगे हैं। वे स्वयं को सबसे अलग मानते हैं। उनकी वाणी, उनके व्यवहार में अहंकार साफ दिखाई देता है। यह मेरी चेतावनी है कि यदि लोकतंत्र प्रणाली में लोगों ने अपना विश्र्वास खो दिया, तो भविष्य में कोई भी व्यक्ति लोकतंत्र को बचा नहीं सकता। उस युवा की बातों पर गौर करना चाहिए, जो जस्टिस हेगड़े की सेवानिवृत्ति के दिन उनके कार्यालय के बाहर खड़ा था और कह रहा था कि जस्टिस हेगड़े मेरे रोल मॉडल हैं, राज्य में चल रहे भ्रष्टाचार के खिलाफ मैं भी विद्यार्थियों का एक संगठन तैयार करूंगा। अन्ना हजारे ने यह बताने की एक कोशिश की है कि सत्याग्रह से बहुत कुछ हो सकता है। चाहिए तो बस संकल्पशक्ति और ईमानदार कोशिश।


महेश परिमल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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