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अगर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को सही ढंग से लागू किया जाता तो वाकई गांवों की तस्वीर बदली जा सकती थी, लेकिन केंद्र सरकार इस योजना को लागू करने के बाद इसकी मूलभूत खामियों को दूर करने के बजाय खुद की पीठ थपथपाने में जुटी रही। ग्रामीण विकास जैसे अहम मंत्रालय में अब तक तीन बार मंत्री बदले जा चुके हैं और सीपी जोशी, विलासराव देशमुख के बाद अब इसकी जिम्मेदारी जयराम रमेश को दी गई है। चौंकाने वाली बात यह है कि एक तरफ ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर मनरेगा की कार्य निष्पादन (परफार्मेस) रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के कामकाज को बेहतर माना गया है तो दूसरी तरफ केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश इस पूरे मसले पर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को चिट्ठी लिखकर सीबीआइ जांच की बात कह रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि कब तक हम विकास योजनाओं के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंककर अपना उल्लू सीधा करने में जुटे रहेंगे? क्या विकास योजनाओं पर केंद्र और राज्यों के बीच इस रस्साकशी से देश के संघीय ढांचे की नींव कमजोर नहीं होती है? क्या उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए मुख्यमंत्री मायावती को लिखी गई ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश की चिट्ठी राजनीति से प्रेरित नहीं है? अगर ऐसा नहीं है तो ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने उन कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी क्यों नहीं भेजी, जहां पर मनरेगा के हालात सबसे ज्यादा बदतर हैं? खुद ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर ऐसे राज्यों का जिक्र किया गया है। यह बात ठीक है कि दूसरे राज्यों के समान ही उत्तर प्रदेश में भी भ्रष्टाचार की जड़ें अभी खत्म नहीं हुई हैं, लेकिन अगर हम बात मनरेगा की करें तो खुद केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक दूसरे राज्यों की अपेक्षा उत्तर प्रदेश सरकार ने इस दिशा में बेहतर काम किया है।
उत्तर प्रदेश में इस योजना को जमीनी स्तर पर सही ढंग से लागू करने के लिए राज्य सरकार के स्टेट क्वालिटी मॉनीटर्स नियुक्त करने की पहल की सराहना संप्रग सरकार में ग्रामीण विकास मंत्रालय का जिम्मा संभाल चुके एक मंत्री भी कर चुके हैं और उनका यह भी कहना था कि हम उत्तर प्रदेश सरकार की इस पहल को देश के दूसरे राज्यों में भी लागू करने की कोशिश करेंगे ताकि नरेगा का फायदा समाज के निचले तबके को सही ढंग से मिले। खुद मौजूदा ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने भी अपनी चिट्ठी में राज्य सरकार की इस पहल की सराहना की है। यही नहीं, कुछ महीने पहले केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय की तरफ से प्रदीप भार्गव की अध्यक्षता में फील्ड निरीक्षण के लिए बनी समिति ने भी इस योजना को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार के फैसलों की तारीफ की। उत्तर प्रदेश की मायावती सरकार का कहना है कि रोजगार सृजन तथा खर्च के मामले में प्रदेश दूसरे राज्यों से आगे है। एक तरफ ग्रामीण विकास मंत्री उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखकर मनरेगा के कामकाज पर सवाल उठा रहे हैं और साथ ही इसके लिए आवंटित धनराशि को रोकने की बात कर रहे हैं तो दूसरी तरफ मंत्रालय की वेबसाइट पर मनरेगा पर उत्तर प्रदेश सरकार के कामकाज को बेहतर बताया गया है। अब सवाल यह है कि क्या ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर मनरेगा की कार्य निष्पादन रिपोर्ट गलत है या फिर जयराम रमेश इस तरह की बयानबाजी कर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की राजनीतिक जमीन को मजबूत बनाने की कोशिश कर रहे हैं? मनरेगा में रोजगार उपलब्ध कराने वाले आंकड़ों में उत्तर प्रदेश का ग्राफ सबसे ऊपर है, जबकि कांग्रेस शासित राज्य इससे पीछे है।
मंत्रालय की वेबसाइट पर उन राज्यों का भी जिक्र है, जिन्होंने अपने काम को सही ढंग से पूरा नहीं किया और इस सूची में कहीं भी उत्तर प्रदेश का नाम शामिल नहीं है। जबकि असम, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे कांग्रेस शासित कई राज्यों के नाम इस सूची में दर्ज हैं। इसमें कोई दो मत नहीं कि अगर केंद्र सरकार राज्यों को किसी योजना विशेष के लिए धनराशि देती है तो यह उसकी जिम्मेदारी भी है कि इस योजना के लिए आवंटित धनराशि का सही इस्तेमाल भी हो, लेकिन देश की तरक्की के लिए चल रही योजनाओं पर वोट की राजनीति कर राज्यों के कान उमेठना संघीय ढांचे से खिलवाड़ करने जैसा ही है। अगर ऐसा नहीं है तो केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री को ऐसी ही चिट्ठी कांग्रेस शासित उन राज्यों के मुख्यमंत्री को भी लिखनी चाहिए थी, जिन्होंने मनरेगा में ठीक ढंग से काम नहीं किया है और कांग्रेस शासित ऐसे राज्यों के नाम मंत्रालय की वेबसाइट पर भी दर्ज हैं। जयराम रमेश की चिट्ठी के बाद केंद्रीय कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी जैसे लोग प्रदेश में मनरेगा में कथित अनियमितताओं की सीबीआइ जांच पर जोर दे रहे हैं। इन लोगों का कहना है कि यदि मायावती को जयराम रमेश की चिट्ठी राजनीति से प्रेरित लगती है तो वह सीबीआइ जांच से क्यों बच रही हैं? दरअसल, सीबीआइ की निष्पक्षता खुद सवालों के घेरे में रही है और विपक्ष यह आरोप लगाता रहा है कि सरकार अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए इस एजेंसी का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करती है। खुद कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने उत्तर प्रदेश में अप्रैल 2009 की चुनावी रैली में सीबीआइ को लेकर मायावती को धमकी दे डाली थी, लेकिन जब मामले ने तूल पकड़ा तो दिग्विजय सिंह अपने बयान से पलट गए।
सीबीआइ की निष्पक्षता का सवाल अपनी जगह है, लेकिन देश की विकास योजनाओं का सही और समुचित ढंग से क्रियान्वयन नहीं होना वाकई चिंता की बात है और ऐसे मामलों की जांच के साथ ही दोषी व्यक्तियों पर कार्रवाई भी होनी चाहिए। फिर चाहे वह कितने ही बड़े ओहदे पर क्यों नहीं बैठा हो? लेकिन मुद्दे की बात यह है कि क्या इस तरह की जांच उन कांग्रेस शासित राज्यों में नहीं होनी चाहिए, जहां पर इस योजना को लेकर केवल कागजी काम हुआ है? राजस्थान के भीलवाड़ा समेत कई जिलों में सामाजिक ऑडिट के दौरान मनरेगा के नाम पर हुए घोटाले की बातें सामने आई हैं। ऐसे एक दो नहीं, कई राज्य हैं, जहां मनरेगा को लेकर घोटाले और भ्रष्टाचार के मामलों का खुलासा हुआ है। लेकिन देश का केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री अगर किसी एक राज्य विशेष को लेकर सवाल उठाएगा तो सरकार की निष्पक्षता पर सवाल तो उठेंगे ही। केंद्र सरकार ने नरेगा योजना शुरू होने के कुछ समय बाद इसका नाम महात्मा गांधी के नाम पर रख दिया और इसके पीछे मकसद गांधी जी के ग्राम स्वराज की अवधारणा को लागू करके गांवों की दशा सुधारना था। केंद्र सरकार के मंत्री की चिट्ठी को देखकर गांधी जी की गुड़ खाने वाली वह कहानी याद गई, जिसमें एक मां अपने बच्चे को लेकर गांधी जी के पास गई और बोली की बापू मेरा बेटा गुड़ बहुत खाता है, आप इसे समझाइए ना।
बापू ने उस महिला से कहा कि तुम अपने बेटे को लेकर एक हफ्ते बाद फिर आना। वह महिला एक हफ्ते बाद फिर अपने बच्चे को लेकर बापू के पास पहुंची तो गांधी जी ने उस बच्चे से कहा कि बेटा ज्यादा गुड़ खाना अच्छी बात नहीं। गांधी जी की इस बात को सुनकर उस महिला ने कहा कि बापू यह बात तो आप उस दिन भी कह सकते थे, तब गांधी जी ने कहा कि उस वक्त मैं भी गुड़ बहुत खाता था। कहने का आशय यह है कि आप पहले खुद अपने भीतर सुधार करें और उसके बाद दूसरे को उपदेश दें। आज घोटालों से घिरी संप्रग सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि देश को भ्रष्टाचार से कैसे निजात दिलाई जाए और इसके साथ ही इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि विकास योजनाओं को सही ढंग से लागू करवाने या फिर इससे जुड़े घोटालों की जांच दलगत राजनीति से ऊपर उठकर हो।
लेखक डॉ. शिव कुमार राय वरिष्ठ पत्रकार हैं
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