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मातृत्व की बदलती अवधारणा

जागरण मेहमान कोना
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Uma Sriramआजकल किराये की कोख का प्रचलन बढ़ रहा है। इसमें अपनी पत्नी की बजाय किसी अन्य महिला की कोख से अपने बच्चे को वैज्ञानिक तरीके से जन्म दिया जाता है। इसमें किराए पर कोख देने वाली मां को यह पता नहीं होता है कि वह किसके बच्चे को जन्म देने जा रही है। पश्चिम की यह अवधारणा अब एशिया तक आ पहुंची और भारत में भी विदेशी जीवनशैली के अंधानुकरण के कारण भारतीय समाज में नपुंसकता और बांझपन की बीमारी बढ़ती जा रही है। इसके चलते हमारे देश में भी किराये की कोख लेने की शुरुआत हो चुकी है। हमारे देश की आबादी पहले से ही अनियंत्रित होती जा रही है और हम एक या ज्यादा से ज्यादा दो बच्चे ही पैदा करने की कोशिश में जुटे हैं तो हमारे देश में किराए की कोख से बच्चे पैदा करने का प्रचलन अब एक बड़ा व्यवसाय का रूप लेता जा रहा है। विदेशों में रह रहे अनिवासी भारतीयों के लिए इस समय अस्पताल में बच्चे को जन्म देना बेहद खर्चीला हो चुका है। इसके अलावा पश्चिमी देशों में आज की महिलाएं गर्भवती होकर अपना कीमती समय बरबाद नहीं होने देना चाहती हैं। इस कारण भारत जैसे देशों में गरीबी और सस्ती मेडिकल सुविधाओं के चलते किराए की कोख का धंधा बड़ी तेजी से फैल रहा है। अधिक से अधिक विदेशी मुद्रा कमाने के उद्देश्य से हमारी सरकार अमेरिका और पश्चिमी देशों में अतुलनीय भारत के प्रचार के साथ पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए लगातार प्रयास कर रही है।


आज इस कड़ी में विदेशियों और अनिवासी भारतीयों को पश्चिमी देशों में महंगे मेडिकल इलाज की तुलना में भारत में उपलब्ध सस्ती मेडिकल सुविधाओं के मद्देनजर मेडिकल टूरिज्म की हवा तेजी से बह रही है। आज हम पूरे विश्व में एलोपैथिक चिकित्सा के विकल्प के रूप में आयुर्वेदिक, यूनानी और योग पद्धतियों को अपना रहे हैं। आज यह पद्धतियां पूरे विश्व में अत्यंत लोकप्रिय हो रही हैं। इस क्रम में अब किराये की कोख के रूप में एक नई पद्धति शामिल हो चुकी है। आज धनी दंपत्ति भारत यात्रा पर आते हैं और निजी क्लिनिक और अस्पतालों के माध्यम से किराये की कोख के माध्यम से अपने बच्चे के जन्म की व्यवस्था सुनिश्चित करते हैं। तभी तो इनके लिए भारत अतुलनीय पर्यटन स्थल के रूप में लोकप्रिय हो रहा है। गरीबों का शोषण भारत में दो प्रकार की आबादी बसती है। एक वह जो गरीबी रेखा यानी एपीएल लाइन के ऊपर है और दूसरी वह है जो गरीबी रेखा यानी बीपीएल के नीचे रहती है। बीपीएल नाम सरकार द्वारा उन लोगों के लिए दिया गया है, जो जिंदा रहने के लिए पूरे दिन में कम से कम एक बार भोजन खा पाते हैं। इस गरीबी के साथ महिलाओं की निरक्षरता, गुलामी भरा जीवन और परिवार के लालची पुरुष सदस्यों की प्रवृत्ति के कारण हमारे देश की गरीब महिलाओं को किराये की कोख वाली मां बनने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। अपने देश की अत्यधिक आबादी जहां गरीबी का सबसे बड़ा कारण है वहीं पश्चिमी देश इसी गरीबी का शोषण करते हुए किराये की कोख के माध्यम से अपने देश की आबादी बढ़ाने में लगे हुए हैं।


गुजरात से हुई शुरुआत सबसे पहले भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात से किराये की कोख नामक परंपरा की शुरुआत हुई और देखते ही देखते पूरे गुजरात में निजी क्लीनिक और अस्पताल किराए की कोख पश्चिमी देशों के लोगों और प्रवासी भारतीयों को दिलाने में जुट गए। औद्योगिक जगत में अग्रणी गुजरात अब किराए की कोख दिलाने के काम में भी अग्रणी हो गया है। आज किराए की कोख की प्रसिद्धि मुंबई तक पहुंच चुकी है और गरीब वर्ग के लोगों में यह बेहद लोकप्रिय हो चुकी है। यह अब मुंबई शहर से भी आगे कई अन्य महानगरों में फैल रही है और गरीब तबके वाले समाज में अपनी जड़ें जमा रही है। पश्चिमी गुजरात के बड़े शहर आनंद में जहां से पश्चिमी देशों के लिए इस परंपरा की सबसे पहले शुरुआत हुई थी इस समय 50 से अधिक किराये की कोख वाली औरतें मौजूद हैं। वे सभी इस समय अमेरिका, इंग्लैंड और अन्य पश्चिमी देशों से आए निस्संतान दंपत्तियों के लिए गर्भवती हैं। आनंद क्लीनिक की डॉक्टर नैना पटेल बताती हैं कि वह इस मामले में पूरी गोपनीयता बरतती हैं और विदेशियों को किराये की कोख देने वाली औरत का नाम बिल्कुल गुप्त रखती हैं। डॉक्टर पटेल अपने इस व्यवसाय के पूरे रिकॉर्ड को भी सुरक्षित रखती हैं और अपने दोनों ही क्लाइंट्स के साथ पूरी तरह से पारदर्शिता रखती हैं। किराये पर कोख देने से पहले दोनों पक्षों की काउंसलिंग की जाती है और एक बार पूरी तरह से संतुष्ट हो जाने के बाद ही अगला कदम उठाया जाता है। आनंद शहर में डॉक्टर पटेल की क्लीनिक इसके लिए प्रसिद्ध है और इसी के चलते यहां की गरीब औरतें अपनी कोख किराये पर देने के लिए यहां पूछताछ करने के लिए आती रहती हैं। इसके लिए केवल उन्हीं औरतों को चुना जाता है जो विवाहित होने के बावजूद तलाकशुदा हों, विधवा हों अथवा बेहद गरीब पृष्ठभूमि से हों। इसके लिए चुनी गई हर औरत को गर्भावस्था के दौरान हर महीने 3000 हजार रुपये दिए जाते हैं और साथ में उनकी उच्च स्तरीय मेडिकल जांच और दवाओं आदि का खर्चा मुफ्त में उठाया जाता है।


नौ महीने के बाद बच्चे के जन्म होने के बाद उस महिला को एकमुश्त एक लाख रुपये दे दिए जाते हैं। रोजगार का जरिया किराये की कोख लेने वाले दंपत्ति और इससे जुड़े डॉक्टर कोख देने वाली माता के स्वास्थ्य के प्रति बेहद सजग रहते हैं और कोख देने वाली माता को कई बेहद जटिल और अनिवार्य मेडिकल जांच से गुजरना पड़ता है ताकि पैदा होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य पर कोई आंच न आने पाए। इसके लिए ऐसे ही एक बेहद गरीब और चार बच्चों की मां इस क्लीनिक में आई और किराये के कोख देने के लिए अपनी तैयारी जताई। उसका पति जो सुतार था और शराब पीने का आदी था पहले ही मर चुका था। डॉक्टर ने इस महिला की गहन मेडिकल जांच की और अंतत: एक दंपत्ति ने इस महिला को चुन लिया। बाद में उस महिला को काफी रुपये मिले और आज वह सामान्य जीवन जी रही है और उसके बच्चे बोर्डिग स्कूल में पढ़ रहे हैं। उसकी उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए वह अपने जीवन में दो-तीन बार और अपनी कोख किराये पर दे सकती है। ऐसे ही एक अन्य प्रकरण में एक तीन बच्चों की मां ने अपनी गरीबी से तंग आकर आत्महत्या करने का निर्णय ले लिया। उसने बाजार से जहर लाई और एक पेपर में लपेटकर रख दिया। सौभाग्य से जिस पेपर में उसने जहर भरे ढोकले को लपेटा था उसमें किराये पर कोख के लिए एक महिला की जरूरत का विज्ञापन छपा था। जहर खाने से पहले उसने उस क्लीनिक से संपर्क किया और उसने मरने की बजाय जिंदगी जीने का इरादा चुना। ऐसे न जाने कितने मामले हैं जिससे महिलाओं की जिंदगी बदल गई।


लेखिका उमा श्रीराम स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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