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माफिया के देश में गांधी दर्शन

जागरण मेहमान कोना
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मैक्सिको की अंदरूनी तस्वीर, ड्रग माफिया और पुलिस कर्मचारियों की मिलीभगत के पंजे में जकड़ा समाज, पंद्रह या बीस वर्षो से या उससे भी पहले ट्रैफिक की गई लड़कियों के मां-बाप के जर्जर, निढाल व झुर्री पड़े इंतजार करते चेहरे, ड्रग के नशे में कत्ल करते, लूटपाट करते युवा, सड़क पर मिलती देसी व विदेशी पत्रकारों की लाशें, कहीं पूरा सच सामने न आ जाए, कहीं वे चेहरे बेनकाब न हो जाएं। इन सब झलकियों को कभी किसी टीवी चैनल पर देखकर या अखबारों में देखकर दिल दहल जाता था। जहां कोई कानूनी व्यवस्था नहीं है, कैसा होगा वह नृशंस देश मैक्सिको? नशीली दवाएं तो दुनिया का खुद ही बहुत बड़ा आतंक हैं जिससे समाज का एक बड़ा भाग बौराया पशु बन जाता है। एक हिंदी फिल्म का संवाद मेरे कानों में गूंजता है-जब कोई व्यक्ति एक लाख की ड्रग खरीदता है तो समझ लो एक गोली पर एक नारकोटिक पुलिस सेल वाले ईमानदार अधिकारी का नाम लिख जाता है। लेकिन जब ये ही समाज को जहरीले नशे में डुबो देने वाले अपराध को न रोकें और वहशी अपराध के खुद ही हिस्सेदार बन जाएं तो वह कमनसीब देश मैक्सिको बन जाता है, जहां ड्रग माफिया व पुलिस के आला अफसर मिलकर हैवानियत का तांडव कर रहे हैं।


नशीली दवाओं के विक्रय से आए बेपनाह धन ने मैक्सिको की सामाजिक संरचना ऐसी कर दी है कि वहां अधिकतर युवा अपराधी या बदमाश बनना चाहता है यानी वहां अपराधी होना एक लोकप्रिय कैरियर है। यह कहना है अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ के गांधीवादी अध्ययन विभाग के प्रोफेसर एमपी मथाई जो कि दिल्ली स्थित गांधी पीस फाउंडेशन की पत्रिका गांधी मार्ग (अंग्रेजी संस्करण) के संपादक भी हैं। सवाल उठता है कि मैक्सिकों में ड्रग माफिया का इतना बड़ा आतंक क्यों है? सबसे बड़ा कारण यह है कि यहां के 85 प्रतिशत युवा बेरोजगारी हैं। मैक्सिको अमेरिका का तटवर्ती देश है, जिसकी एक बड़ी सीमा अमेरिका के कोलंबिया से लगती है। अमेरिका जैसे धनी देश में आसानी से ड्रग तस्करी होती है, जिसके लिए अपराधियों-माफियाओं को बेरोजगार युवाओं की आवश्यकता होती है। अपराधी युवाओं के गैंग में गैंगवार सामान्य बात है।


सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट के आधार पर जो जीतते हैं, ड्रग माफिया उन्हें चुन लेते हैं। किसी समाज का इससे बड़ा क्या दुर्भाग्य होगा कि उसके युवा सिर्फ तीन-चार साल पैसा कमाते हैं। इन गैंगवार में 80 प्रतिशत युवा मारे जाते हैं जो बचे रहते हैं, वे ड्रग्स का घिनौना व्यापार करते हैं। ऐसे समाज की कल्पना करके रूह कांप जाती है जहां सूनी मांग लिए विधवाएं अधिक हों, लड़कियां या तो हों नहीं या हों तो वह अपनी सुरक्षा हेतु भाई के लिए तरसती हों। माओं की आंखें हर समय गीली हों। किसका बेटा मर गया, बेटी को कब कौन उठा ले लगा पता ही नहीं। जिस देश का युवा अपराधी बनने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहा हो, वहां एक चमत्कार होता है और 450 युवाओं का हृदय परिवर्तन हो जाता है। वे अपराध छोड़कर गांधी के अहिंसा शपथ पत्र पर हस्ताक्षर करते हैं विश्वास नहीं होता! पर मैक्सिको में ऐसा ही हुआ। यह चमत्कार एक दिन में नहीं हुआ।


वर्ष 2007 में मैक्सिको के मोंट्रे शहर के एक उद्योगपति फर्नेडो फेरेरा रिवेरो जो हमारे यहां के टाटा, बिरला के समकक्ष हैं, भारत में आध्यात्मिक यात्रा पर नौ महीने के लिए आए। यहां उन्होंने संस्कृत सीखना आरंभ किया, वर्धा के सेवाग्राम आश्रम में गए, केरल में प्रोफेसर मथाई से मिले, जिन्होंने अपना कैरियर अंग्रेजी के प्राध्यापक के रूप में आरंभ किया था, लेकिन उनका जीवन गांधी विचारधारा और आदर्शो के लिए समर्पित होता गया। उन्होंने फर्नेडो को ईमानदार व्यक्ति पाया, जिन्हें वाकई अपने देश के वातावरण से बहुत तकलीफ व क्षोभ था। वह लोगों को हिंसा व अपराध के आतंक से मुक्त कर शांति की स्थापना करना चाहते हैं। उनके निमंत्रण पर मैं 2007 में मैक्सिको गई तो वहां देखा कि कुछ लोगों ने एनजीओ बना रखा है। कुछ संस्थाएं बदमाशों की शिकार महिलाओं के पुनर्वास व ग्रामीण स्वास्थ्य पर कार्य कर रही हैं। फर्नेडो के प्रयास से मैंने कई जगहों और विश्वविद्यालयों में संदेश दिया कि मैक्सिको के सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक हालात में गांधी की विचारधारा का समन्वय करके देश की तस्वीर बदली जा सकती है। मैंने एनजीओ से एक कॉमन फोरम बनाने की बात की। 16 एनजीओ ने मिलकर मेसा द पॉज यानी सब तरफ शांति नामक फोरम बनाया। एक वर्ष तक मिलना-जुलना और चर्चा-परिचर्चा चलती रही। एक वर्ष में सदस्य संख्या 40,000 हो गई। संगठन का यही प्रयास रहा कि इसके सदस्य हिंसा छोड़कर शांतिप्रिय बनें, जिसके लिए विशेष रूप से गांधीवादी शिक्षा के कार्यक्रम चलाए गए। वहां सभी ने मिलजुलकर हिंसा के विरुद्ध काम करने का निर्णय लिया व सबसे पहले ड्रग पेडलर्स के नवजागरण का काम आरंभ किया। उनके लिए सद्भावना शिविर चलाए गए। मेसा द पॉज के यूथ विंग को तैयार किया गया।


प्रिंट मीडिया की मदद से अहिंसा व शांति संदेश वितरित किए गए। बीस सदस्य तो स्वयं एक हजार प्रतियां लोगों तक पहुंचाते। इनमें से दिशानिर्देशन व लेखन का काम अधिकतर पुनर्वासित गैंगस्टर करते हैं। इसी तरह लोग शरीर पर टैटू और दीवार पोस्टर, बैनर आदि से अहिंसा का संदेश फैला रहे हैं कि कैसे देश को हिंसा व अपराध से मुक्त किया जा सकता है। यह संस्था किशोरों के पुनर्वास के लिए भी काम करता है। ऐसे बाल अपराधी जिन्हें उनके अभिभावक घर में नहीं रखना चाहते उनके दोबारा अपराधियों के हत्थे न चढ़ने देने के लिए हाफ वे हाऊस का निर्माण किया गया है, जहां वे रह सकते हैं। इसी तरह संस्था का एक विंग गैंगस्टर के बीच सुलह करवाने का काम करता है। जुलाई 2011 में एक आयोजन में वहां के 450 गैंगस्टर्स ने अपराध को अलविदा कहा। वहां गांधीजी के चमत्कार को देखकर हरकोई चकित था। यह गांधीजी के बताए रास्ते का ही चमत्कार था कि केंद्रीय सरकार ने अपने कुछ अधिकारियों को इस कार्यक्रम को समझने के लिए भेजा, मीडिया के लोग भी आए। युवा गैंगस्टर्स द्वारा अपराध छोड़ने के बाद कुछ उद्योगपतियों ने इन्हें नौकरी का प्रस्ताव दिया। संस्था फुलटाइम कार्यकताओं को हैं वे प्रतिमाह सैलरी देंगे जिससे उनका घर चल सके। इन चार वर्षो में जो बदलाव आया है उससे वहां के लोग खुश हैं। वहां गांधी साहित्य की मांग बढ़ गई है, विश्वविद्यालय में गांधी समिति बन रही है। मैक्सिको के नौजवान अपराध के हैवानियत भरे अंधकारमय रास्ते पर भटकने के बाद प्रकाश के मुहाने पर आ खड़े हुए। गुजरात में अहमदाबाद के गुजरात विद्यापीठ में गांधीजी की अहिंसा संबंधी विचारधारा का कोर्स चलाया जाता है जिसमें अमेरिका व मैक्सिको से छात्र पढ़ने आ रहे हैं। इनके रहने-खाने का खर्च विद्यापीठ वहन करता है। ये नौजवान आपने देश लौटकर वहां अहिंसा का प्रशिक्षण देते हैं।


लेखिका नीलम कुलश्रेष्ठ स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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