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खूबियों से लैस उपग्रह

जागरण मेहमान कोना
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भारत में निर्मित पहले माइक्रोवेव राडार इमेजिंग सैटेलाइट-1 (आरआइसेट-1) का सफल प्रक्षेपण एक बड़ी सफलता है। चेन्नई से लगभग 90 किलोमीटर दूर सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी-सी 19 की मदद से आरआइसेट-1 को प्रक्षेपित किया गया। प्रक्षेपण के लगभग 19 मिनट बाद इसे अंतरिक्ष की पोलर सर्कुलर कक्षा में 480 किलोमीटर की ऊंचाई पर सटीक ढंग से स्थापित कर दिया गया। अगले तीन दिनों में इसे ध्रुवीय सौर तुल्यकालिक कक्षा में 536 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित कर दिया गया। इसकी मिशन अवधि पांच साल है और यह रोजाना कक्षा में 14 चक्कर लगाएगा। इससे पहले 71 घंटे तक इसकी उल्टी गिनती चली थी। पीएसएलवी की यह 20वीं लगातार सफल उड़ान थी। स्वदेश निर्मित राडार इमेजिंग उपग्रह-1 हर मौसम में धरती की तस्वीर लेने में सक्षम है। बाढ़, चक्रवात, धुंध एवं कोहरा इसे प्रभावित नहीं कर सकते। इस उपग्रह में सभी परिस्थितियों में तस्वीरें उपलब्ध करवाने के लिए सी बैंड सिंथेटिक अपर्चर राडार लगा हुआ है। यह मिट्टी की नमी, ग्लैशियरों की स्थिति जैसी महत्वपूर्ण जानकारी दे सकता है।


इस उपग्रह का उपयोग प्राकृतिक आपदाओं के पूर्वानुमान, कृषि तथा रक्षा क्षेत्र में किया जाएगा। इससे देश की दूरसंवेदी क्षमता में इजाफा होगा और खासकर आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में काफी मदद मिलेगी। इस उपग्रह के पास दिन व रात तथा बादलों की स्थिति में धरती की तस्वीरें लेने की क्षमता है। कृषि क्षेत्र में फसलों की पैदावार जानने के उपयोग के अलावा यह धान की फसल की निगरानी करने में सक्षम है, क्योंकि उस समय वातावरण में अकसर बादल छाए रहते हैं। इस उपग्रह से ली जाने वाली फसलों की तस्वीरों से योजना बनाने वालों को उत्पादन के आकलन व भविष्यवाणी करने में मदद मिलेगी। इस सूक्ष्म तरंगीय दूरसंवेदी उपग्रह को 24 घंटे देश की सीमाओं की निगरानी के लिए भी उपयोग में लाया जा सकेगा। इसकी मदद से अन्य देशों की रक्षा तैयारियों एवं पहाड़ों व ग्लैशियरों पर नजर रखी जा सकेगी। इस तरह देश नई क्षमताओं से लैस हो गया है। इस उपग्रह से खींची गई तस्वीरों से इसरो को लगभग 45 करोड़ की कमाई होगी। राडार इमेजिंग उपग्रह-1 इसरो के लगभग 10 वषरें के अथक प्रयासों का परिणाम है।


इस उपग्रह की प्रक्षेपण सफलता के साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो गया है, जिनके पास सूक्ष्म तरंगीय दूर संवेदी उपग्रह के जरिए तस्वीरें लेने की स्वदेशी प्रौद्योगिकी क्षमता है। विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरूवनंतपुरम के निदेशक पीएस वीरराघवन ने बताया कि अब तक यह प्रौद्योगिकी केवल अमेरिका, कनाडा, जापान व यूरोपीय संघ के पास थी। अब तक भारत कनाडा के उपग्रह की तस्वीरों पर निर्भर था। अब भारत विकसित देशों की तरह ऑप्टिकल उपग्रहों से आगे बढ़कर राडार उपग्रहों में प्रवेश कर गया है। ऑप्टिकल उपग्रह अपने नीचे की तस्वीरें हासिल करने के लिए सूरज की रोशनी पर निर्भर होते हैं जबकि सूक्ष्म तरंगीय दूर संवेदी उपग्रह अपनी रेडियो तरंगों को नीचे भेजते हैं और उनसे वापस आने वाले संकेतों को ग्रहण कर निश्चित जगह की तस्वीर हासिल कर लेते हैं। इसीलिए ये उपग्रह घने बादलों व बरसात के समय भी सफल रहते हैं। ये उपग्रह अन्य देशों की नौसेना की गतिविधियों पर नजर रखने में भी उपयोगी होते हैं तथा दूसरे देशों की सीमा पर होने वाली हलचल की जानकारी भी दे सकते हैं। इस उपग्रह के विकास की लागत 378 करोड़ रुपये है जबकि 120 करोड़ रुपये पीएसएलवी -सी 19 के निर्माण पर खर्च हो चुके हैं। इस प्रकार कुल लागत 498 करोड़ रुपये आई है। इसका वजन 1858 किलोग्राम है। यह देश का अब तक सबसे भारी दूर संवेदी उपग्रह है।


लेखक डॉ. लक्ष्मीशंकर यादव सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक हैं


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