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पानी भी मिले और सुरक्षा भी

जागरण मेहमान कोना
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मुल्लापेरियार बांध मुद्दे पर केरल और तमिलनाडु सरकारों के बीच चल रहा विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। संसद में हंगामा, अनशन और विरोध-प्रदर्शन के बाद अब नौबत हिंसा तक आ पहुंची है। दोनों ही राज्यों में इस मुद्दे को लेकर हाल ही में हिंसा और तोड़फोड़ की कई घटनाएं हुई हैं। तमिलनाडु जहां मुल्लापेरियार बांध के जलाशय का जलस्तर बढ़ाना चाहता है तो वहीं केरल चाहता है कि तमिलनाडु बांध का जलस्तर 120 फीट करने की उसकी मांग मान ले। यहां तक कि केरल की जनता अब चाहती है कि मुल्लापेरियार की जगह नया बांध बनाया जाए। तमिलनाडु और केरल के बीच मुल्लापेरियार बांध को लेकर तकरार कोई नई बात नहीं है। एक सौ सोलह साल पुराना यह बांध जब-तब दोनों राज्यों के बीच टकराव का सबब बनता रहा है। यह मसला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा, पर विवाद खत्म नहीं हुआ। दरअसल, बांध की स्थिति विवाद की मुख्य वजह है। मुल्लापेरियार बांध बना तो केरल की जमीन पर है, लेकिन इसका नियंत्रण और रख-रखाव तमिलनाडु सरकार के हाथ में है।


केरल के इडुक्की जिले में 8 हजार एकड़ जमीन पर बने इस बांध को त्रावणकोर के तत्कालीन राजा ने साल 1895 में मद्रास प्रेसीडेंसी को 999 साल की लीज पर दिया था। बहरहाल, मुल्लापेरियार बांध आज दोनों ही राज्यों के लिए बहुत मायने रखता है। तमिलनाडु के मदुरै, थेणी, शिवगंगा और रामनाथपुरम समेत 6 जिलों में वहां के लोगों के लिए यह पेयजल का सहारा है तो सिंचाई का जरिया भी। लिहाजा, बांध का पानी इनके लिए जीवन-मरण का सवाल बन गया है। दूसरी ओर केरल के कई जिलों के लोग मुल्लापेरियार बांध से आज अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। इडुक्की, अलपुझा, कोट्टायम, एर्नाकुलम और पथानमथिट्टा आदि जिलों के लाखों लोग इस बांध को लेकर बरसों से आशंकित हैं। अंदेशे की वजह बांध का पुराना होना है। डर बांध के सिर्फ पुराने होने की वजह से ही नहीं, बल्कि इसमें पड़ने वाली दरारों की वजह से भी है। बीते 5 महीनों में इडुक्की और उसके आस-पास के इलाकों में 26 भूकंप के झटके आए हैं। जाहिर है, भूकंप के झटकों से केरल में बांध की कमजोरियों को लेकर आशंकाएं बढ़ी हैं। यह आशंकाएं गलत भी नहीं हैं। अगर बांध की सुरक्षा को लेकर फौरन कोई उचित कदम नहीं उठाए गए तो लाखों लोगों की जिंदगी दांव पर लग जाएगी। एक तरफ मुल्लापेरियार बांध को लेकर केरल में विरोध दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, वहीं तमिलनाडु सरकार भी झुकने को तैयार नहीं।


तमिलनाडु की सियासी पार्टियां नहीं चाहतीं कि मुल्लापेरियार बांध का वजूद खत्म हो। उनका कहना है कि यदि नया बांध बना तो तमिलनाडु को अभी जितना पानी मिल रहा है, आगे उतना नहीं मिलेगा। राज्य की पीएमके, एमडीएमके जैसी पार्टियां अन्नाद्रमुक सरकार पर दबाव डाल रही हैं कि वह सुप्रीम कोर्ट के साल 2006 में दिए गए जलस्तर बढ़ाने संबंधी आदेश को इस बांध पर लागू करने के लिए केंद्र सरकार पर जोर डाले। यानी मुल्लापेरियार बांध पर सबकी अपनी-अपनी दलीलें और आशंकाएं हैं। चूंकि यह अंतरराज्यीय विवाद है, इसमें जरा-सी भी देरी मामले को और बिगाड़ सकती है। लिहाजा, केंद्र को अब बिना इंतजार किए इन दोनों के बीच सुलह-समझौते की कोशिशें शुरू कर देनी चाहिए, जिससे इस मसले का जल्द ही कोई सौहार्द्रपूर्ण हल निकल सके। मुल्लापेरियार बांध ही नहीं, मुल्क में फिलवक्त कोई 126 बांध एक सदी से ज्यादा पुराने हैं। वक्त का तकाजा है कि केंद्र सरकार सौ साल से अधिक पुराने सभी बांधों के सुरक्षा पहलुओं का व्यापक अध्ययन कराने के बाद उनकी सुरक्षा का बंदोबस्त करे।


सरकारी रपटें भी कहती हैं कि किसी भी बांध के सुरक्षित काम करते रहने की एक सीमा होती है और सिर्फ मरम्मत और देख-रेख के सहारे हमेशा उसके निरापद रहने की गारंटी नहीं दी जा सकती। सच बात तो यह है कि सौ साल से ज्यादा पुराने बांधों के संबंध में फौरी उपाय काफी नहीं, बल्कि स्थायी समाधान करना बेहद जरूरी है। अगर केरल सरकार एक वैकल्पिक बांध के जरिये तमिलनाडु के पानी की जरूरतें पूरी करने को राजी है तो तमिलनाडु सरकार को इस पेशकश पर भला क्यों एतराज है। तमिलनाडु हो या केरल, दोनों राज्यों के लोगों की भलाई इस मसले के शांतिपूर्ण समाधान में है, न कि टकराव में। तमिलनाडु के लोगों को पानी मिले, मगर केरल के लोगों की सुरक्षा की शर्त पर नहीं। अच्छी बात तब होगी, जब तमिलनाडु को पानी भी मिलता रहे और केरल को सुरक्षा भी।


लेखक जाहिद खान स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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