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सियासी पहल है भूमि अधिग्रहण विधेयक

जागरण मेहमान कोना
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Jairam Rameshकेंद्र की संप्रग सरकार ने आनन-फानन में भूमि अधिग्रहण विधेयक संसद में पेश कर दिया है। बड़ी बेबाकी से इसे एक राजनीतिक विधेयक करार देते हुए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश जहां इसका श्रेय कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी को देते हैं वहीं यह आशा भी रखते हुए पांच राज्यों के आगामी चुनाव में पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है। दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता सुरेंद्र प्रसाद सिंह से बातचीत में जयराम रमेश ने साफगोई से माना कि विधेयक को मंजूरी दिलाने से पहले उन्हें औद्योगिक घरानों के साथ साथ केंद्रीय मंत्रिमंडल में अपने सहयोगियों का दबाव भी झेलना पड़ा है। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश-


भूमि अधिग्रहण विधेयक पेश करने में इतनी जल्दबाजी की खास वजह क्या थी?

भूमि अधिग्रहण को लेकर देश में चौतरफा विवाद हो रहा था। किसान, औद्योगिक संगठन और राजनीतिक दलों की ओर से लगातार मांग उठ रही थी। इसलिए सिर्फ 55 दिनों में विधेयक तैयार कर सात सितंबर को लोकसभा में पेश कर दिया गया। विधेयक संसद की स्थायी समिति को सौंप दिया गया है। मैंने समिति की अध्यक्ष सुमित्रा महाजन से मुलाकात कर अपनी सिफारिश जल्दी प्रस्तुत करने का निवेदन किया है। संसद के शीतकालीन सत्र में इसे दिसंबर के तीसरे सप्ताह में पारित कराने की पूरी कोशिश करेंगे।


जिस तरह इसे पेश किया गया उससे स्पष्ट लगता है कि पूरा विधेयक राजनीति से प्रेरित है। आप क्या कहेंगे?

इसमें शक क्या है। मैं मानता हूं। मैं राजनीति में जीता हूं। देखिये, यह प्रशासनिक कानून नहीं है। यह एक राजनीतिक कानून है। इसमें कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी का पूरा योगदान रहा है। पहले दिन से अगर राहुल गांधी दिलचस्पी नहीं लेते तो इतनी जल्दी यह विधेयक संसद में पेश नहीं हो पाता। प्रधानमंत्री के 15 अगस्त के भाषण में इसी सत्र में विधेयक लाने पर जोर दिया गया था। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने दो भाषणों में विधेयक के बारे में विस्तार से कहा है।


अगले साल पांच राज्यों में चुनाव होने हैं। क्या लगता है कि कांग्रेस इसका फायदा उठा पाएगी?

यह तो पार्टी प्रबंधक, कार्यकर्ता और चुनाव संचालन समिति पर निर्भर करता है कि वे इसका कितना फायदा उठा पाएंगे। चुनाव में पार्टी को भूमि अधिग्रहण कानून लाने का श्रेय लेना चाहिए। पिछले दिनों में जो मंजर देखने को मिला है उससे निपटने में यह कारगर होगा। तो फिर इसका श्रेय लेने में झिझक कैसी।


राज्यों से विस्तृत विचार-विमर्श किए बगैर इस विधेयक को पारित कराने की कोशिश संघीय ढांचे के खिलाफ नहीं होगी?

तमाम राज्यों के मुख्यमंत्रियों से विमर्श हो चुका है। उनकी राय को विधेयक में शुमार किया गया है। मुख्यमंत्रियों से विस्तृत चर्चा के लिए प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक बुलाई है। उन्हें अपनी बात करने और रखने का पूरा मौका दिया जाएगा।


क्या भूमि अधिग्रहण विधेयक अपने मूल मसौदे से अलग नहीं हो गया?

मैंने 12 जुलाई को मंत्री पद संभाला और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के सुझावों के मद्देनजर मसौदा 29 जुलाई को लोगों की टिप्पणी के लिए सार्वजनिक कर दिया। इस पर विभिन्न पक्षों के सुझाव के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी मिली है। मैं तानाशाह होता तो जो मसौदा था वही कानून बन जाता। इसमें कई नई चीजें जोड़ी गई हैं। शायद यह पहला कानून होगा जो पिछली तारीखों से लागू होगा। स्वीकार करता हूं कि मुआवजे की दर बाजार मूल्य के हिसाब से पहले छह गुना प्रस्तावित थी, उसे विधेयक में घटाकर चार गुना कर दिया गया है।


किन परिस्थितियों में मुआवजे की दर घटाई गई और अधिग्रहीत जमीन पर परियोजना के पांच साल में न लग पाने की दशा में किसानों को जमीन लौटाने की जगह उसे भूमि बैंक को दे दिया जाएगा?

मुआवजे की दर को लेकर व्यापारिक औद्योगिक संगठनों का विरोध तो था ही। मंत्रिमंडल की बैठक में सहयोगी मंत्रियों का भी विरोध झेलना पड़ा है। उनका कहना है कि 9 फीसदी की विकास दर के लिए और उदार होने की जरूरत है। प्रधानमंत्री ने भी परियोजना की लागत बढ़ने पर चिंता जताई थी। इसलिए बीच का रास्ता चुना गया। इसमें दोनों पक्षों से आलोचना की जाती है। अधिग्रहीत भूमि पर परियोजना स्थापित न हो पाने पर वह राज्य की लैंड बैंक में चली जाएगी। राज्य चाहें तो किसानों को लौटा सकते हैं। मुआवजे की यह न्यूनतम दर है। अगर कोई राज्य इससे अधिक देना चाहे तो वह स्वतंत्र है।


भूमि अधिग्रहण विधेयक में मुआवजे की दर को लेकर ही कुछ ज्यादा शोर हो रहा है। क्या इसके चलते पुनर्वास व पुनस्र्थापन (आरआर) जैसा महत्वपूर्ण पक्ष नजरअंदाज हो रहा है?

नहीं। बिल्कुल नहीं। पहली बार संयुक्त विधेयक बनाया गया है। इसमें भू स्वामी को ही नहीं, बल्कि उस जमीन पर जीविकोपार्जन करने वाले सभी लोगों को इसमें शामिल किया गया है। उन्हें भी आरआर पैकेज का लाभ मिलेगा।


क्या जमीन की सीधी खरीद की छूट से भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं मिलेगा?

सीधी खरीद करने के लिए निजी क्षेत्र स्वतंत्र होगा। इससे किसानों को भी मोलभाव करने का पूरा मौका मिलेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में 100 एकड़ और शहरी क्षेत्रों में 50 एकड़ तक जमीन खरीदने वाले निजी क्षेत्र को आरआर पैकेज देना होगा। इतनी जमीन खरीदने वाली कंपनियों की पूरी जांच होगी।


भूमि अधिग्रहण कानून क्या मौजूदा सेज (एसईजेड) पर लागू होगा?

भूमि राज्य का विषय है। भूमि अधिग्रहण समवर्ती सूची में शामिल है। सेज बनाना अथवा न बनाना राज्यों के अधिकार क्षेत्र का मसला है। आरआर पैकेज के मार्फत भू स्वामियों को नुकसान से बचाया जा सकता है।


नक्सलवाद के प्रसार में भूमि अधिग्रहण के विवादों की कितनी भूमिका है?

वाल्टर फर्नाडीज एक समाजशास्त्री हैं, उनके मुताबिक भारत में पांच करोड़ लोगों को पिछले पांच दशक में औद्योगिक परियोजनाओं के चलते अपना मूल स्थान छोड़ना पड़ा है। इनमें 30 फीसदी आदिवासी हैं। नक्सल समस्या की एक बड़ी वजह यह भी है।


मनरेगा जैसी महत्वाकांक्षी योजना भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई है।

मनरेगा कुछ गिने-चुने राज्यों में तो ठीक है, बाकी देश में हालत बहुत खराब है। 600 जिलों में से केवल 20 फीसदी में ठीक चल रही है। इसमें पारदर्शिता और सोशल आडिट को मजबूत करने की जरूरत है। योजना में अनियमितता रोकने के लिए जितने प्रयास किए गए वे सभी विफल रहे है। उन्हें बदलने की जरूरत है। भूमि अधिग्रहण विधेयक के बाद मनरेगा ही मेरी प्राथमिकता है।


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