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नक्सलियों के प्रति नजरिया बदलें

जागरण मेहमान कोना
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शासन-प्रशासन के विरुद्ध गतिविधियां चलाना तो नक्सलियों की प्रकृति है। इस स्थिति में शासन-प्रशासन सकारात्मक नजरिये से उन्हें संभालने और सुधारने की बात क्यों नहीं करता। जिन मांगों को लेकर नक्सली इतने निरंकुश हो रहे हैं, उन मांगों पर गंभीरता से विचार करते हुए बीच का रास्ता निकालने की कोशिश क्यों नहीं की जाती। कुछ इसी तरह के सवाल हैं, जो नक्सलियों के साहस और दुस्साहस के बीच की दूरी लगातार कम करते जा रहे हैं। फलस्वरूप इस तरह की घटनाएं सामने आ रही हैं। बेशक यह ठीक नहीं है, पर जो ठीक है, उसके लिए तो कुछ किया ही जाना चाहिए। केवल भाषणबाजी से कुछ भी होने वाला नहीं है। सरकार नक्सलियों के प्रति अपने रुख को बदले और उन्हें भावनात्मक तरीके से सुधरने के मौके दे, क्योंकि भारतीय संविधान और यहां की लोकतांत्रिक प्रणाली में बहुत से इस तरह के प्रावधान हैं, जिनके माध्यम से उचित मंच से जरूरी मांगें रखी जा सकती हैं और उसे मनवाने के लिए शासन-प्रशासन पर दबाव भी डाला जा सकता है, पर हत्या और अपहरण जैसी वारदातों के सहारे कानून को हाथ में लेना न्यायोचित नहीं है।


लोकतंत्र पर भारी पड़ता बंदूकतंत्र


छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के मांझीपाड़ा गांव में पिछले दिनों प्रशासनिक अधिकारी ग्राम सुराज अभियान के तहत डेरा डाले हुए थे। हर वर्ष चलने वाले इस अभियान के तहत राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह और प्रशासनिक अधिकारी गांवों का दौरा कर ग्रामीणों की समस्याएं सुनते हैं। इसी के तहत पिछले दिनों सुकमा के कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनन जब ग्रामीणों से बातचीत कर रहे थे, उसी वक्त मौके पर एक नक्सली आया और वहां मौजूद एक सुरक्षाकर्मी का गला रेत दिया। जवाबी कारवाई में सुरक्षा गार्डो ने जब उस नक्सली को मार दिया तो अचानक भारी संख्या में नक्सलियों का एक बड़ा दल वहां पहुंच गया और अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी, जिसमें कई लोगों को गोलियां लगीं तथा एक और पुलिसकर्मी मारा गया। मौके की नजाकत को भांपते हुए कलेक्टर मेनन ने वहां से भागकर कहीं छिपने की कोशिश की तो नक्सलियों ने उन्हें वाहन समेत कब्जे में ले लिया। मौके पर मौजूद घटना के चश्मदीद सुकमा के अनुमंडलाधिकारी एसपी वैद की मानें तो घटना के दरम्यान नक्सलियों की संख्या 15-20 थी। इनमें महिला नक्सली भी थीं। जब नक्सलियों ने वहां गोलीबारी शुरू की तो अफरातफरी और भगदड़ मच गई।


नक्सलियों ने जब यह पूछा कि कलेक्टर कौन है तो इस पर मेनन खुद कहा कि वही हैं। इतना कहते ही नक्सली उन्हें अपने साथ उठा ले गए। इस घटना से एक दिन पहले माओवादियों ने सुकमा के ही निकट बीजापुर जिले में एक बारूदी सुरंग का विस्फोट किया था। इसमें भाजपा के दो कार्यकर्ता मारे गए थे। बकौल पुलिस, इस विस्फोट में राज्य के जनजातीय मामलों के संसदीय सचिव महेश घाघरा और बीजापुर के कलक्टर रजत कुमार बाल-बाल बच गए थे। दरअसल, सुकमा क्षेत्र आंध्र प्रदेश और उड़ीसा की सीमा से लगा हुआ है। सीमावर्ती इलाकों में बड़े जंगल हैं, लेकिन सर्च ऑपरेशन की वजह से नक्सली कलेक्टर मेनन को कहीं नुकसान न पहुंचाएं, इसी डर से सरकार ने इसे रोका हुआ था। बताया जा रहा है कि डीएम अभी किसन्ना के कब्जे में हैं, जिन्हें आंध्र प्रदेश के एक बड़े नक्सली नेता पापा राव को सौंपा जा सकता है। पापा राव आंध्र प्रदेश का बड़ा नक्सली नेता है।


नक्सलियों की पतीली में भारत


52 साल का पापा राव आंध्र प्रदेश के वारंगल का रहने वाला है। पापा राव को दंडकारण्य क्षेत्र में नक्सलियों का बड़ा नेता माना जाता है। पापा राव को सुरक्षाबलों पर कई हमलों का जिम्मेदार माना जाता है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों समेत केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम से भी इस मुद्दे पर चर्चा की है। कहा जा रहा है कि सरकार स्वामी अग्निवेश के माध्यम से नक्सलियों से संपर्क साधने की कोशिश में है, जिससे डीएम की रिहाई जल्द संभव हो सके। फिलहाल घटनाक्रम और हालात को देख यह प्रतीत हो रहा है कि स्थितियां अनुकूल नहीं हैं। इस घटना को अंजाम देने वाले नक्सली जेल में बंद खूंखार नक्सलियों को रिहा कराना चाहते हैं। कहा जा रहा है कि कलेक्टर के अपहर्ता नक्सली बस्तर में सक्रिय नक्सली नेता गोपन्ना, मालती, पश्चिम बस्तर में सक्रिय विजय लक्ष्मी, देवपाल चंद्रशेखर रेड्डी, रायपुर और भिलाई की मीना चौधरी, कोरसा सन्नी और मरकाम सन्नी जैसे आठ खूंखार नक्सलियों की रिहाई की मांग कर रहे हैं। शासन-प्रशासन के सामने धर्मसंकट की स्थिति है, पर देखना है कि क्या होता है।


इस आलेख के लेखक राजीव रंजन तिवारी हैं


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