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नक्सली आतंक के साये में 11 साल

जागरण मेहमान कोना
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छत्तीसगढ़ पिछले 11 सालों से अपने सपनों में रंग भरने की कोशिशें कर रहा है, लेकिन नक्सली आतंक के कारण राज्य विकास की सीढि़यां नहीं चढ़ पा रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के लिए हुए संघर्षो की मूल भावना को समझें तो साफ नजर आएगा कि लोग नया राज्य इसलिए चाहते थे ताकि उन्हें शोषण से मुक्ति मिलता और वह विकास और तरक्की की तरफ आगे बढ़ते। उनका सपना राज्य की बड़ी आदिवासी आबादी को राजनीतिक तौर पर सक्षम होते हुए देखना था। विकास आज एक बड़ा विवादित शब्द बन गया है। विकास के मानक हमें अनेक स्थानों पर बेमानी दिखने लगे हैं, क्योंकि यह मनुष्य की शर्त पर विकास का सपना साकार करते हैं। छत्तीसगढ़ इस मामले में नए राज्यों की तुलना में सौभाग्यशाली है कि यहां राजनीतिक स्थिरता बनी रही और मुख्यमंत्री के रूप में दोनों राजनेताओं की दृष्टि विकास को लेकर बहुत साफ रही।


राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने जहां अपनी तमाम कमियों के बावजूद विकास के सवाल को दरकिनार नहीं किया, वहीं डॉ. रमन सिंह ने लोगों के सपनों में रंग भरने का काम बखूबी अंजाम दिया। अब जबकि राज्य की स्थापना के ग्यारह साल पूरे हो चुके हैं तब यह ठहरकर सोचने का वक्त है कि आखिर हम कहां खड़े हैं और हमसे अपेक्षाएं क्या हैं? नक्सलवाद सबसे बड़ी चुनौती यदि कोई पूछे कि छत्तीसगढ़ राज्य की आज सबसे बड़ी चुनौती क्या है तो शायद इसका सामूहिक उत्तर होगा नक्सलवाद। इन 11 सालों में समस्या बहुत बदतर और भयावह हो गई है जिस कारण यहां स्थिति काफी अराजक है। युद्ध लड़ने की अपनी साफ प्रतिबद्धता के बावजूद इस मोर्चे पर राज्य की सरकार कुछ कर नहीं पाई। नक्सली आतंकवाद के शिकार पुलिस वाले भी हो रहे हैं और आम आदिवासी भी। इन वर्षो में नक्सली अपना क्षेत्र विस्तार लगद्मतार करते रहे और हम जुबानी जमाखर्च से आगे नहीं बढ़ सके। आज हिंसा इस राज्य की स्थायी पहचान बन गई है और तथाकथित मानवाधिकारवादी संगठन राज्य के लोगों की निरंतर हत्याओं के बावजूद राज्य सरकार को ही हिंसक बताने में जुटे हुए हैं।


छत्तीसगढ़ में जो कुछ हो रहा है वह दरअसल एक ऐसा पाप है, जिसके लिए हमें आने वाली पीढि़यां माफ नहीं करेंगी। दुनिया की सबसे खूबसूरत कौम आदिवासियों का सैन्यीकरण करने का पाप है जो चरमपंथी वामपंथी कर रहे हैं। इसके लिए इतिहास उन्हें कभी माफ नहीं करेगा। राज्य सरकार से भी कुछ गलतियां हो रही हैं, किंतु जब कोई युद्ध हमारे गणतंत्र के खिलाफ हो तो समाज की एकजुटता जरूरी हो जाती है। डॉ. रमन सिंह से लेकर कल तक नक्सलियों के प्रति उदार रही ममता बनर्जी की बातचीत की अपीलें ठुकराकर भी एक हिंसक लड़ाई जनतंत्र और व्यवस्था के खिलाफ लड़ी जा रही है। दुर्भाग्य यह है कि इस रक्तक्रांति को महिमामंडित करने वाले बुद्धिजीवियों की कमी नहीं है। इस जंग में पिस रहे आदिवासी किसी की चिंता का विषय नहीं हैं। इसलिए इस आतंक से लड़ना सरकार की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। प्रतीकात्मक कदमों से अब आगे बढ़ने की जरूरत है और बस्तर के जंगलों से बारूद की गंध हटाने का समय आ गया है। विकास में तेजी की जरूरत छत्तीसगढ़ की दूसरी सबसे बड़ी चिंता शिक्षा के स्तर की है। हम देखें तो तमाम बड़े संस्थानों के आगमन के बावजूद हमारे सरकारी स्कूलों का हाल क्या है? इसके साथ ही छत्तीसगढ़ का स्थान राष्ट्रीय मानकों पर खरे उतरने से ही तय होगा।


सार्वजनिक वितरण प्रणाली को दुरुस्त कर राज्य ने जहां चौतरफा वाहवाही पाई है वहीं तमाम विकास के सवाल हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं। शिशु मृत्यु दर में आज भी छत्तीसगढ़ 62 प्रतिशत पर बना हुआ है जो पहले स्थान पर चल रहे मध्य प्रदेश से मात्र 8 प्रतिशत कम है। गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वालों का आंकड़ा आज 30 प्रतिशत को पार कर चुका है जो निश्चित ही चिंता की बात है। राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार और विकसित राज्यों के मानकों को छूना जरूरी है, किंतु छत्तीसगढ़ में इन 11 सालों की यात्रा में तेज प्रगति होने के बावजूद अभी काफी कुछ किया जाना शेष है। छत्तीसगढ़ की विकास दर काफी बेहतर है किंतु विकास दर या प्रति व्यक्ति के आंकड़े जिन आधारों पर तैयार होते हैं उससे आम आदमी की स्थिति का सही आकलन व्यक्त नहीं होता। गरीबी और बेरोजगारी से निपटना आज सबसे बड़ी चुनौती है। जाहिर तौर पर इससे निपटने का रास्ता यही है कि हम शिक्षा का स्तर उठाएं और प्रशिक्षण के आधार पर श्रेष्ठ मानव संसाधन का निर्माण करें। ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर बल सिंचाई के साधनों का विकास करते हुए खेती को उन्नत करने की आवश्यकता है। कृषि के विकास से ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था को ताकत मिलेगी।


सरकार की अनेक योजनाओं जैसे सस्ता चावल और मनरेगा योजना के चलते गांवों से पलायन कम हुआ है जो एक शुभ संकेत है। इसके साथ-साथ औद्योगिक निवेश को अधिक तर्कसंगत बनाने की जरूरत है। ऐसे उद्यमियों को अनुमति दी जाए जिनके उद्योगों से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सके। इसमें स्थानीय नागरिकों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। गरीबी कम करना वास्तव में आज सबसे बड़ी चुनौती है। यह तभी कम होगी जब शिक्षा का स्तर बढ़ेगा, स्वावलंबन की भावना आएगी, लोग अनेक फसलें लेने के लिए प्रेरित होंगे। इससे नशाखोरी भी कम होगी। शराब ने जिस तरह से आम लोगों को जकड़ रखा है, उसके खिलाफ भी जागरूकता अभियान चलाने की आवश्यकता है। शराब पीकर मेहनतकश लोग अपनी मेहनत की कमाई गंवा रहे हैं। इसका असर इनके परिवारों पर भी पड़ रहा है। नशे से मुक्त समाज अधिक स्वाभिमान से अपना जीवन यापन करता है। हमें इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है। गांव-गांव में खोली जा रही शराब की दुकानें हमारे लिए चिंता की बात है। इनसे हमारा चेहरा कैसा बन रहा है इस पर भी सोचने की जरूरत है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था की धीमी रफ्तार तेज करते हुए देश के साथ आगे बढ़ना होगा तभी सपने सच होंगे और राज्य का वास्तविक सौंदर्य सामने आ पाएगा। छत्तीसगढ़ वास्तव में एक लोकप्रदेश है और उसकी पहचान इस लोकजीवन और परंपराओं के कारण ही है। आज बाजार और उद्योगीकरण की आंधी में इस पहचान को बचाने की जरूरत है। बाजार की तेज हवाएं और पश्चिमीकरण के तूफान के बीच छत्तीसगढ़ आम आदमी के लिए रहने लायक बना रहे इसके लिए सरकारी संरक्षण जरूरी है।


लेखक संजय द्विवेदी स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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