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क्रिकेट के महानतम खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर प्रत्येक सम्मान के हकदार हैं। संभवत: यही कारण है कि जब सचिन को भी राज्यसभा का सदस्य मनोनीत किया गया तो किसी राजनीतिक दल ने इसका विरोध नहीं किया, हालांकि सबको आश्चर्य अवश्य हुआ। यह पहला अवसर है जब किसी सक्रिय खिलाड़ी को राज्यसभा में मनोनीत किया गया है। इसलिए यह प्रश्न भी स्वाभाविक है कि जब साल में लगभग 250 दिन सचिन तेंदुलकर क्रिकेट के मैदान पर रहेंगे तो क्या वह अपनी संसदीय जिम्मेदारियों से न्याय कर सकेंगे और अगर वह ऐसा नहीं कर पाएंगे तो क्या राज्यसभा में प्रवेश करने से उनके कद में इजाफा होगा? यह सही है कि सचिन को संसद की सदस्यता का तोहफा देकर सरकार ने जन भावनाओं का सम्मान किया है। बतौर क्रिकेटर सचिन की महानता पर कोई शक नहीं है। लेकिन राज्यसभा में नामांकन विख्यात लोगों को सम्मानित करने का जरिया नहीं है, बल्कि संसदीय बहस को समृद्ध बनाना है ताकि विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ अपनी राय दे सकें। एक सक्रिय खिलाड़ी को नामांकित करने से यह उद्देश्य ध्वस्त हो जाता है। पिछले साल भारतीय क्रिकेट टीम ने 292 दिन मैदान या दौरा करते हुए गुजारे और स्वयं सचिन 216 दिन खेल को समर्पित रहे।
सांसद की नई भूमिका में सचिन को क्रिकेट टीम के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और संसद में अपनी जिम्मेदारियों के बीच चयन करना होगा। यह अनुचित चयन प्रक्रिया होगी, जिसके लिए सचिन को मजबूर करना ठीक बात नहीं है, खासकर ऐसी स्थिति में जब वह मैदान पर रहकर भारतीय क्रिकेट को अब भी भरपूर योगदान दे रहे हैं। संसद में पहंुचने वाले सचिन तेंदुलकर पहले खिलाड़ी नहीं हैं। इस साल ही हॉकी खिलाड़ी दिलीप टिर्की राज्यसभा के लिए चुने गए। इसके अलावा पूर्व क्रिकेटर अजहरूद्दीन, सलामी बल्लेबाज नवजोत सिंह सिद्धू, बुसान एशियाड में भारतीय शूटिंग टीम के सदस्य नवीन जिंदल और पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आजाद लोकसभा के सदस्य हैं। इनसे पहले हॉकी खिलाड़ी असलम शेर खां, सलामी बल्लेबाज चेतन चौहान और एथलीट ज्योतिर्मय सिकदर लोकसभा के सदस्य रह चुकी हैं। वैसे सबसे पहले शूटर कर्णी सिंह लोकसभा में पहुंचने वाले खिलाड़ी थे।
बहरहाल, राज्यसभा में अपने अपने क्षेत्रों में विशिष्ट उपलब्धि अर्जित करने वाले 12 व्यक्तियों को मनोनीत किया जाता है। इसके अतिरिक्त राजनीतिक पार्टियां नामवर हस्तियों को अपने टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ाती हैं। अत: संसद में अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, स्मृति ईरानी, लता मंगेशकर, एमएफ हुसैन, वैजयंती माला, राज बब्बर, विनोद खन्ना, शत्रुघ्न सिन्हा, धमर्ेंद्र, दारा सिंह, हेमा मालिनी, जावेद अख्तर, शबाना आजमी, नर्गिस, गोविंदा, पृथ्वीराज कपूर आदि को देखा जा चुका है। नामवर हस्तियों में केवल शबाना आजमी को छोड़कर संसद में किसी के योगदान को उल्लेखनीय नहीं कहा जा सकता। इसलिए यह यकीन से कहा जा सकता है कि सेलेब्रिटी का संसद से रिश्ता अकसर शुरुआती दिलचस्पी से आगे नहीं बढ़ पाता है। रिकॉर्ड बताते हैं कि कलाकार और खिलाड़ी संसदीय बहस में अर्थपूर्ण योगदान करने में कंजूसी बरतते हैं। दरअसल, जितना बड़ा नाम होता है उतनी ही कम सदन में मौजूदगी रहती है। मसलन, भारत की कोकिला लता मंगेशकर की इसलिए आलोचना हुई कि वह राज्यसभा से अनुपस्थित रहती थीं। यही हाल गोविंदा और धर्मेद्र का भी रहा। इस सिलसिले में और भी नाम दिए जा सकते हैं। लेकिन यहां उद्देश्य नामवर हस्तियों के असफल राजनीतिक करिअॅर की सूची देना नहीं है, बल्कि यह बताना है कि अगर कोई हस्ती संसद में सकारात्मक योगदान करने में सक्षम नहीं है तो फिर केवल उसे सजावटी मोहरा बनाकर संसद में मनोनीत करना उचित नहीं है।
लेखक शाहिद ए चौधरी स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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