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फिनलैंड से सीखें

जागरण मेहमान कोना
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न्यूजवीक पत्रिका ने 2010 में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर फिनलैंड को संसार का सबसे अच्छा देश घोषित किया है। यह सर्वेक्षण पांच महत्वपूर्ण पैमानों- स्वास्थ्य, आर्थिक गतिशीलता, शिक्षा, राजनीतिक माहौल तथा जीवन की गुणवत्ता पर आधारित था। अनुसंधान प्रयोगशालाओं को स्थापित करने के लिए फिनलैंड आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों का सबसे पसंदीदा देश बन गया है। मानव विकास सूंचकाक के साथ-साथ विश्व आर्थिक मंच द्वारा घोषित प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता में भी फिनलैंड को अग्रणी देश माना जाता है। फिनलैंड के विकास के क्या कारक हैं? इससे क्या सीखा जा सकता हैं? फिनलैंड के विश्वविद्यालयों तथा तकनीकी संस्थाओं को देश में नवाचार तथा अनुसंधान का वातावरण बनाने का श्रेय जाता है। यहां शोध तथा अनुसंधान में कार्यरत कर्मचारियों का अनुपात अमेरिका तथा जापान से भी अधिक है। भारत की तरह फिनलैंड भी किसी समय कृषि आधारित पंरपरागत अर्थव्यवस्था थी। ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था की शुरुआत 80 के दशक में की गई।


तत्कालीन नीति निर्माताओं ने देश की औद्योगिक संरचना तथा अनुसंधान पर ध्यान केद्रित किया। निस्संदेह श्रम आधारित उद्योगों में भारत तथा चीन से फिनलैंड प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम नहीं था। इस कारण अनुसंधान तथा तकनीकी नवाचार को बढ़ावा दिया जाना आवश्यक था, जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार में फिनलैंड का अपना मुकाम बन सके। फिनलैंड में अनुसंधान तथा नई प्रौद्यौगिकियों के विकास पर हर साल अरबों डॉलर खर्च किए जाते हैं। एक अनुसंधान के मुताबिक फिनलैंड सकल घरेलु उत्पाद का लगभग 3.5 प्रतिशत शोध तथा विकास पर खर्च करता है तथा निकट भविष्य मे इसे 4 प्रतिशत करने का लक्ष्य है। इस धन का उपयोग सरकार द्वारा स्थापित सेंटर ऑफ स्ट्रेटेजिक एक्सीलेंस के माध्यम से किया जाता है जो विभिन्न क्षेत्रों मे स्थापित किए गए हैं। सरकार के अलावा निजी कंपनिया भी काफी धन तकनीकी विकास पर खर्च करती हैं।


फिनलैंड के नीति निर्माताओं का एक अन्य महत्वपूर्ण प्रयास राष्ट्रीय अभिनव प्रणाली (नेशनल इनोवेशन सिस्टम) की स्थापना करना है। इसका लक्ष्य शोध तथा तकनीकी विकास सुनिश्चित करना है। इसके माध्यम से देश में एक ऐसा नेटवर्क तैयार किया गया है, जिसमें शैक्षिक एवं शोध संस्थाओं के साथ-साथ निजी कंपनियों को प्रमुख रूप से शामिल किया गया है। इन नेटवकरें के माध्यम से बड़ी कंपनियों के साथ-साथ छोटी कंपनियां भी लाभान्वित होती हैं। शायद यही कारण है फिनलैंड की छोटी-छोटी कंपनियां भी विश्व बाजार में तकनीकी कौशल के लिए जाना जाती हैं। शोध तथा शैक्षिक संस्थाओं का कार्य तकनीकी का विकास करना है। जबकि कंपनियां इन तकनीकों के उपयोगकर्ता के रूप मे जानी जाती हैं। भारत में भी इस प्रकार के नेटवर्क की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय अभिनव परिषद (नेशनल इनोवेशन काउंसिल) का गठन किया गया है तथा प्रत्येक राज्य सरकार को राज्य स्तरीय अभिनव परिषद गठित करने का सुझाव दिया गया है। हालांकि केवल दो या तीन राज्यों ने इस पर गंभीरता दिखाते हुए इनकी स्थापना की प्रक्रिया प्रारंभ की है। फिनलैंड की शिक्षा व्यवस्था संसार में अपना विशेष स्थान रखती है। यहां शिक्षा पूर्ण रूप से नि:शुल्क दी जाती है।


मंदी के दौर मे भी वहां की सरकारों ने शैक्षिक संस्थाओं को दी जाने वाली सहायता में कटौती नहीं की। फिनलैंड के विकास का मुख्य कारण एक दीर्घकालिक नीति है जिसका आधार व्यापारिक जगत तथा शैक्षिक संस्थानों के बीच उच्चस्तरीय सांमजस्य है। भारत में इस प्रकार के संामजस्य का अभाव है। यहां के शैक्षिक संस्थान व्यापारिक जगत के लिए उत्तरदायी नहीं हैं। इसके अलावा व्यापारिक जगत के माध्यम से शैक्षिक एवं शोध संस्थानों को पर्याप्त धन उपलब्ध नहीं कराया जाता है। आने वाले समय में भारत को शोध तथा तकनीकि विकास को बढ़ावा देना होगा। शायद फिनलैंड ने जो 80 के दशक में किया भारत को आने वाले दशक में विश्व व्यापार में अग्रणी भूमिका निभाने के लिए करना होगा।


डॉ. दीपक श्रीवास्तव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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