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अगले आम चुनाव की तस्वीर

जागरण मेहमान कोना
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मुंबई में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने पूरे विश्वास के साथ यह घोषणा की कि अगले आम चुनाव 2014 में हों या उससे पहले, कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार का जाना तय है और राजग की सत्ता में वापसी होगी। वैसे भी देश में अगले आम चुनाव को लेकर चर्चाएं शुरू हो चुकी हैं और हर कोई अपने-अपने हिसाब से आकलन करने में जुटा है। सबसे पहले हमें यह समझने की जरूरत है कि भाजपा और कांग्रेस में कौन अगले चुनाव में बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी? सामान्य रूप से यह कहा जाता है कि अधिक राज्यों में उपस्थिति की वजह से कांग्रेस भाजपा से आगे है। आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, ओडिशा ऐसे राज्य हैं जहां से 2009 में कांग्रेस को 60 सीटें और भाजपा को सिर्फ एक सीट मिली थी, परंतु बदली हुई परिस्थिति में कांग्रेस को इन राज्यों में 2009 जैसा प्रदर्शन दोहराना बहुत मुश्किल होगा। आंध्र प्रदेश में उप चुनावों की करारी हार और बदले राजनीतिक समीकरणों में अब कांग्रेस को 10 सांसद लाना भी मुश्किल लग रहा है।


तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और केरल में भी वर्तमान परिदृश्य में कांग्रेस की हालत अच्छी नहीं है। यही बात ओडिशा के लिए भी कही जा सकती है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि वे सारे राज्य जो कांग्रेस को भाजपा से आगे करते हैं, इस बार कांग्रेस के प्रतिकूल जा सकते हैं। इसके अलावा बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र और हरियाणा को छोड़कर बाकी सारे राज्यों में भाजपा कांग्रेस की आमने-सामने की लड़ाई है। वर्तमान में बिहार, पंजाब, महाराष्ट्र में राजग आज संप्रग से कहीं ज्यादा मजबूत दिख रहा है। उत्तर प्रदेश से कांग्रेस का 10 सीटें भी लाना मुश्किल होगा। हरियाणा में भी सत्ता विरोधी लहर के कारण कांग्रेस पिछला प्रदर्शन दोहराने में सक्षम नहीं दिख रही है। महाराष्ट्र में राजग को कुछ लाभ मिल सकता है। हाल में हुए विधानसभा चुनावों की पृष्ठभूमि में पंजाब भी एक ऐसा राज्य है जहां से राजग को भारी लाभ और कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। अब उन राज्यों की बात करते हैं जहां कांग्रेस और भाजपा की सीधी लड़ाई है। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, हिमाचल और गुजरात ऐसे राज्य हैं जहां भाजपा को 2009 जैसा प्रदर्शन दोबारा करने के लिए बहुत मशक्कत करनी होगी वहीं राजस्थान, दिल्ली और उत्तराखंड में कांग्रेस का भी ऐसा हाल होगा। इनमें से 6 राज्यों में 2012-13 में होने वाले विधानसभा चुनावों के बाद की स्थिति और साफ होगी, परंतु देश में कांग्रेस के खिलाफ जैसा माहौल है उसका फायदा भाजपा को मिलने की संभावना है।


कर्नाटक में भाजपा को भारी सफलता मिली थी, परंतु नेतृत्व में बदलाव से हुए आंतरिक मतभेदों को यदि भाजपा जल्दी नहीं निपटाती है तो यहां से उसे भारी नुकसान हो सकता है। कम से कम यह तो कहा जा सकता है कि कांग्रेस को भाजपा के ऊपर जो लाभ मिला था वह शायद 2014 में नहीं नजर आएगा। इस वजह से अगर कांग्रेस के खिलाफ कोई देशव्यापी माहौल बनता है तो भाजपा निश्चित रूप से कांग्रेस से बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है। पिछली बार कांग्रेस और भाजपा को मिलाकर 322 सीटें मिली थीं, परंतु इस बार यह संख्या कम से कम 50-60 जरूर कम हो सकती है, जिसका सीधा लाभ क्षेत्रीय दलों को मिलेगा। यदि हम पिछले दो-तीन वर्षो में हुए विधानसभा चुनावों में नजर डालें तो क्षेत्रीय दल बहुत तेजी से मजबूत हुए हैं, परंतु क्षेत्रीय दल यदि किसी एक नेता पर सहमति भी बना लेते हैं तो उनके लिए बिना भाजपा या कांग्रेस के समर्थन के सरकार बनाना संभव नहीं लग रहा है, क्योंकि प्रदेश स्तर की प्रतिस्पर्धा की वजह से कुछ ऐसे दल हैं जो कभी भी साथ नहीं आ सकते हैं। क्षेत्रीय दलों के मजबूत और राष्ट्रीय दलों के कमजोर होने की वजह से राजग और संप्रग भी लगातार कमजोर हो रहे हैं। अगर संप्रग की ही बात करें तो इसके तीनों प्रमुख घटक द्रमुक, तृणमूल और राष्ट्रवादी कांगे्रस लगातार विभिन्न मुद्दों पर कांग्रेस से अलग-थलग नजर आते हैं। सपा और बसपा भी पता नहीं कब तक पंथनिरपेक्षता के नाम पर कांग्रेस के साथ रह सकेंगे।


सपा और कांग्रेस के बीच बढ़ती दोस्ती और उत्तर प्रदेश में हार के बाद बसपा के राजग में शामिल होने से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है। वहीं हाल में राजग के सबसे प्रमुख घटक जदयू ने जो तेवर दिखाए हैं उससे यह कह पाना मुश्किल है कि यह गठबंधन कब तक चलेगा? कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि 2014 में तस्वीर धुंधली ही उभरेगी। आसार हैं कि चुनाव के बाद प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इसका फैसला चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं, बल्कि चुनाव बाद समीकरण करेंगे। यदि तीसरा मोर्चा सरकार बनाने में सफल नहीं होता है तब अलग-अलग क्षेत्रीय दल अपनी क्षेत्रीय राजनीति और विचारधारा के आधार पर राजग और संप्रग में विभाजित होंगे। माकपा द्वारा कांग्रेस को भविष्य में किसी भी हालत में समर्थन न देने के फैसले का ऐसी परिस्थिति में विशेष महत्व होगा, क्योंकि मुद्दों के आधार पर ममता बनर्जी की ओर से राजग को समर्थन देने की बात से इन्कार नहीं किया जा सकता, वहीं आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी, चंद्रबाबू नायडू और चंद्रशेखर राव, ओडिशा में नवीन पटनायक, हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला के क्षेत्रीय कारणों की वजह से केंद्र में कांग्रेस से अधिक भाजपा का साथ देने की संभावना है। ऐसे में यदि भाजपा का प्रधानमंत्री बनता है तो वह कौन होगा, इसका फैसला भाजपा से अधिक क्षेत्रीय दलों की प्राथमिकता तय करेगी।


डॉ. देवेंद्र कुमार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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