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मनरेगा के पहले चरण की उपलब्धियों, समस्याओं और चुनौतियों का विश्लेषण कर रहे हैं जयराम रमेश
महात्मा गांधी ने कहा था कि संदेह के क्षणों में हमें सबसे गरीब आदमी के चेहरे का ध्यान करना चाहिए और खुद से पूछना चाहिए कि क्या हमारा यह कदम उसके लिए किसी काम का हो सकता है? फरवरी 2006 में शुरू की गई महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के पीछे यही भावना काम कर रही थी। यह संभवत: विश्व में सबसे बड़ी और सर्वाधिक महत्वाकांक्षी सार्वजनिक परियोजना है। लागू होने के छह साल बाद मनरेगा का महत्व तथा ग्रामीण भारत के करोड़ों घरों के लिए मजबूत सामाजिक सुरक्षा आज स्वयंसिद्ध है। इस योजना में अब तक 1200 करोड़ रोजगार-दिनों का कार्य हुआ है और ग्रामीण क्षेत्रों के गरीबों को 1,10,000 करोड़ रुपये मजदूरी के तौर पर दिए जा चुके हैं। इसकी जबरदस्त लोकप्रियता इस बात से जाहिर है कि हर साल औसतन एक-चौथाई परिवारों ने इस योजना का लाभ उठाया है। करीब 80 फीसदी परिवारों को धनराशि सीधे बैंक या डाकखाना खाते के माध्यम से दी गई। गरीबों के वित्तीय समावेश की दिशा में यह अभूतपूर्व कदम है। मनरेगा हाशिये पर धकेल दिए गए समाज के सशक्तीकरण का ठोस प्रयास है। मनरेगा में अब तक जितना काम दिया गया है उसका 51 फीसदी अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के लोगों के हिस्से में गया है, जबकि महिलाओं की कुल काम में 47 फीसदी हिस्सेदारी रही। वास्तव में, मनरेगा ने महिलाओं को काम का शानदार अवसर मुहैया कराया है और वे इसका लाभ भी उठा रही हैं। इससे पहले महिलाएं या तो बेरोजगार रहती थीं या फिर उन्हें बहुत कम वेतन पर काम दिया जाता था।
स्वतंत्र अध्ययनों से पता चलता है कि मनरेगा से न केवल ग्रामीण क्षेत्र में मजदूरी में वृद्धि हुई है, बल्कि मजदूरी की परंपरागत लैंगिक असमानता भी कम हुई है। मजदूरी सुरक्षा उपलब्ध कराने के साथ-साथ मनरेगा ने टिकाऊ ग्रामीण संरचना के लिए संपदा निर्माण पर जोर दिया है। मनरेगा के तहत अब तक करीब एक करोड़ 46 लाख कार्यो का निष्पादन हो चुका है। इनमें से आधे से अधिक काम जल संचयन, सूखे से बचाव, बाढ़ से सुरक्षा, सिंचाई, भूमि विकास और ग्रामीण संपर्क व्यवस्था बेहतर करने की दिशा में हुए हैं। आम तौर पर अध्ययनों से संकेत मिलता है कि मनरेगा के कामों से भूजलस्तर में बढ़ोतरी हुई है, पानी की उपलब्धता बढ़ी है और मिट्टी की उर्वरता में सुधार हुआ है। मनरेगा के दौरान होने वालों कार्यो की बदोलत जल उपलब्धता बढ़ने से बंजर भूमि के बड़े हिस्से को खेती योग्य बनाया जा सका है। मनरेगा के कारण ही परंपरागत रूप से काम की तलाश में दूसरे प्रांतों में जाने वालों की संख्या में भारी गिरावट आई है। इसके कारण पिछड़े क्षेत्रों के गरीब तबकों के लोगों में पहचान और आत्मविश्वास का भाव तो जाग्रत हुआ ही है, मोलभाव की नई शक्ति भी विकसित हुई है। उपलब्धियों के बीच मनरेगा के क्रियान्वयन के दौरान कुछ समस्याएं भी पैदा हुई हैं, जिनका जल्द समाधान निकाला जाना चाहिए।
मनरेगा की कुछ प्रमुख चुनौतियां यह सुनिश्चित करना है कि योजना सार्थक मांग पैदा करे, वेतन के भुगतान में देरी न हो, काम की गुणवत्ता में सुधार हो और शिकायत निवारण तंत्र को मजबूत बनाया जाए। इसके अलावा योजना में सेंध और घपले-घोटालों पर अंकुश लगाया जाए। ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक सुधार कार्ययोजना (जिसे मनरेगा 2.0 नाम दिया गया है) मनरेगा के जीवन चक्र के अनेक आयामों पर इन समस्याओं का समाधान निकालने का प्रयास करती है। इनमें शामिल हैं लाभार्थियों का समय से नामांकन, खर्च की सही निगरानी और काम के बेहतर मूल्यांकन की व्यवस्था। मार्च 2012 में स्वीकृत कार्यो की सूची में तीस नए काम जोड़ दिए गए। इन कामों से मनरेगा और ग्रामीण जीवन, खासतौर पर कृषि के बीच बेहतर साम्य बनेगा और ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य व पारिस्थितिकीय हालात में सुधार आएगा। मनरेगा 2.0 में योजना में पारदर्शिता तथा जवाबदेही संबंधी प्रावधानों का विशेष ध्यान रखा गया है। सामाजिक आडिट की प्रक्रियाओं को मजबूत किया जा रहा है। राज्यों को निर्देश दिए जा रहे हैं कि मनरेगा की ग्राम सभा द्वारा साल में कम से कम दो बार जांच के लिए सामाजिक आडिट इकाइयों का गठन किया जाए। सामाजिक आडिट के लिए नियंत्रण एवं महालेखा परीक्षक (कैग) को तमाम राज्यों में मनरेगा के प्रदर्शन का आकलन करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसके अलावा ग्राम सभाओं में मनरेगा के खातों के प्रमाणन की व्यवस्था की गई है। यह व्यवस्था इस साल 20 फीसदी ग्राम पंचायतों में शुरू की जा रही है। सूचना प्रसारण प्रौद्योगिकी से योजना के हर चरण में पारदर्शिता आएगी।
मनरेगा संबंधी समस्त सूचना इंटरनेट पर उपलब्ध है। वर्तमान में 12 करोड़ जॉब कार्ड बने हुए हैं। आइसीटी आधारित प्रणाली के माध्यम से उपस्थिति दर्ज कराना, इलेक्ट्रानिक पद्धति से मस्टर रोल तैयार करना और वेतन का भुगतान करना शामिल हैं। ये सूचनाएं पंचायत, विकासखंड, जिला और राज्य स्तर पर भी उपलब्ध रहेंगी। राज्य सरकारों के साथ मिलकर केंद्र सरकार इलेक्ट्रानिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम भी लागू करना चाहती है, जिससे मनरेगा राशि की समयबद्ध उपलब्धता और परिचालन संभव हो सकेगा। मनरेगा का आधार प्रणाली के साथ एकीकरण भी किया जा रहा है। मांग संवृद्धि, अधिकार आधारित ढांचा और अभूतपूर्व आकार के कारण मनरेगा ने अब तक के तमाम पुराने श्रम कार्यक्रमों को मीलों पीछे छोड़ दिया है। मनरेगा निश्चित रूप से एक आदर्श योजना के तौर पर उभरी है, जिसका अध्ययन और आकलन विश्व के अनेक देशों में हो रहा है। स्वतंत्र अध्ययनों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि गरीब तबके पर योजना का महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। अभी तक क्रियान्वयन संबंधी कुछ मुद्दों का समाधान नहीं निकल पाया है, अगर हम इन्हें हल कर लें तो गरीबी उन्मूलन, प्राकृतिक संसाधनों का पोषण और ग्रामीण रूपांतरण के औजार के तौर पर मनरेगा की क्षमता और बढ़ जाएगी। मनरेगा 2.0 के रूप में सरकार की नई पहल ग्रामीण विकास की दिशा में बढ़ाया गया एक महत्वपूर्ण कदम है और इससे योजना का पूरा लाभ गरीबों को मिल पाएगा।
लेखक जयराम रमेश केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री हैं
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