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सुरक्षा पर अतार्किक सवाल

जागरण मेहमान कोना
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परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं के संदर्भ में आम जनमानस में व्याप्त आशंकाओं को आधारहीन मान रहे है शुकदेव प्रसाद


चेर्नोबिल, यूक्रेन में हुई परमाणु दुर्घटना [1986] में 4000 लोगों की मौत हुई थी। उसके बाद परमाणु ऊर्जा उद्योग को जो तीव्र आघात पहुंचा था उससे दुनिया धीरे-धीरे उबरने लगी थी, लेकिन इस वर्ष 11 मार्च को जापान के फुकुशिमा डाइची सयत्र में जो त्रासदी हुई उससे कुछ यक्ष प्रश्न उभरे हैं और परमाणु ऊर्जा के भविष्य को लेकर आशकाएं उठ खड़ी हुई हैं। परमाणु ऊर्जा के पक्ष में जो प्रबल तर्क है वह यह है कि यह ऊर्जा का यह स्वच्छ स्त्रोत है। फ्रांस ने तब घोषित किया था कि वह अपना परमाणु विद्युत उत्पादन बद नहीं करेगा, लेकिन हाल ही में उसे एक झटका लगा है और उसे भी अब परमाणु सयत्रों के सुरक्षात्मक पहलुओं पर उठ रहे सवालिया निशानों से रूबरू होने की दरकार है। 12 सितबर, 2011 को दक्षिणी फ्रांस के मार्कोल नाभिकीय सयत्र में विस्फोट हो गया, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और चार गभीर रूप से घायल हो गए। हालाकि यहा के तीनों रिएक्टर डिकमीशन किए जा चुके हैं, पर अभी भी यहा नाभिकीय कचरे का पुनर्शोधन किया जाता है। फ्रांस ने जर्मनी की तर्ज पर अब निर्णय लिया है कि वह अपने पुराने और जर्जर होते जा रहे रिएक्टरों को और अधिक जीवन विस्तार नहीं देगा। यह एक सकारात्मक सोच है। फ्रांस ने यह भी निर्णय लिया है कि वह 2025 तक शनै: शनै: अपने परमाणु विद्युत उत्पादन को वर्तमान के 75 प्रतिशत से घटाकर 50 प्रतिशत के स्तर तक ले आने को कृत सकल्प है।


जापान की परमाणु त्रासदी के बाद मनमोहन सिह ने ससद में दिए गए एक बयान में सभी परमाणु सयत्रों की सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा के आदेश दिए। नाभिकीय सयत्रों का सचालन अधिक सुरक्षित बनाने के लिए ससद के मानसून सत्र में बहुप्रतीक्षित नाभिकीय सुरक्षा नियामक प्राधिकरण विधेयक भी प्रस्तुत किया गया है, जिससे ‘नाभिकीय सुरक्षा नियामक प्राधिकरण’ के गठन का मार्ग प्रशस्त हो गया है। फ्रांसीसी परमाणु रिएक्टर में हुई दुर्घटना से परिदृश्य पूरी तरह परिवर्तित हो गया है। इसी परिप्रेक्ष्य में भारत में लगाए जा रहे जैतापुर परमाणु विद्युत सयत्र पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। जैतापुर परमाणु ऊर्जा परियोजना महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में स्थापित की जानी है, जहा पर 9900 मेगावाट विद्युत जनित होगी। दिसबर, 2010 में फ्रांसीसी कंपनी अरेवा ने इनमें से एक रिएक्टर बनाने का भारत से अनुबध किया था। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो आगे चलकर 4 ऐसे और रिएक्टर यहा स्थापित किए जा सकते हैं। यद्यपि जैतापुर पावर प्लाट का तभी से विरोध हो रहा है, लेकिन फ्रांसीसी रिएक्टर में हाल में हुए विस्फोट से विरोध के स्वर और तीव्र हो गए हैं। कारण यह है कि प्रस्तावित रिएक्टरों का निर्माण फ्रांस ही कर रहा है।


इसी तरह का कुछ-कुछ, लेकिन भिन्न मामला 2,000 मेगावाट की क्षमता वाले कुडनकुलम [तमिलनाडु] एटामिक पावर प्लाट का भी है, जिसकी स्थापना रूसी मदद से की गई है। वहा भी विरोध के स्वर तीव्र हो चले हैं। फिलहाल, कुडनकुलम परमाणु विद्युत परियोजना को समाप्त करने की माग को लेकर स्थानीय लोगों की ओर से किया जा रहा अनशन उस समय समाप्त हो गया जब मुख्यमत्री जयललिता ने परियोजना के स्थगन के लिए केंद्र को अपनी कैबिनेट का प्रस्ताव भेजने की स्वीकृति दे दी। इस प्रकरण में विस्मयकारी तो यह है कि विरोध तब हो रहा है जब कुडनकुलम परमाणु विद्युत सयत्र पूरी तरह सस्थापित हो चुका है। अब कुछ महीनों में 1,000 मेगावाट की पहली यूनिट आरंभ ही होने वाली है। 1000 मेगावाट की क्षमता वाली दूसरी यूनिट जून 2012 तक उत्पादन की स्थिति में आ जाएगी। तमिलनाडु को इससे 925 मेगावाट बिजली मिलेगी। परियोजना स्थगन के लिए जयललिता की चिट्ठी के उत्तर में डॉ. मनमोहन सिह ने 4 अक्टूबर को उन्हें एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने जयललिता से सहयोग की अपील की थी और यह भी कहा था कि अब हम इस मोड़ पर आकर पीछे नहीं जा सकते हैं। प्रधानमत्री की पहली चिट््ठी मिलने के चद रोज बाद 14 अक्टूबर, 2011 को उन्होंने साफ कह दिया कि राज्य सरकार रातों-रात इस विवादास्पद समस्या का समाधान नहीं कर सकती है। अलबत्ता पचायत चुनावों की एक प्रचार सभा में उन्होंने जनता को आश्वस्त किया कि इसके चालू हो जाने पर राज्य को 925 मेगावाट बिजली मिलने लगेगी। मनमोहन सिह ने सयुक्त राष्ट्र महासभा में विश्व समुदाय को अपने नजरिए से अवगत करा दिया है कि भारत सुरक्षा सबधी मानकों की पूर्ण सतुष्टि के बाद ही परमाणु ऊर्जा को अपनाएगा। इस सदर्भ में प्रधानमत्री ने पहल भी कर दी है। इसके तहत स्थानीय जनता की शकाओं के निवारण के लिए एक पैनल गठित किया जाएगा। प्रधानमत्री के इस बयान कि कुडनकुलम विल गो फारवर्ड के बाद अचानक जयललिता को कुडनकुलम के लाभ दिखाई पड़ने लग गए।


मनमोहन सिह परमाणु विद्युत के प्रति कृतसकल्प हैं, लेकिन लोगों की जान की जोखिमों की कीमत पर नहीं। अपनी प्रतिबद्धता के लिए उन्होंने कोशिशें की हैं, अब राज्य सरकार को भी इस मुद्दे पर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। कुडनकुलम पर विवाद का अब कोई औचित्य नहीं है। परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष एमआर श्रीनिवासन, जिन्होंने कुडनकुलम को जीवनदान दिया था, ने यह कहकर इसका पटाक्षेप कर दिया था कि कुडनकुलम में विरोध सिर्फ अफवाहों पर आधारित है। फुकुशिमा में सुनामी से जो तबाही हुई, यहा वैसा कुछ भी नहीं होने वाला है। इसके अलावा फुकुशिमा सयत्र प्रथम पीढ़ी का था, जबकि कुडनकुलम सयत्र में सस्थापित रिएक्टर तीसरी पीढ़ी के हैं। इन परियोजनाओं के विरोध का मूल जनमानस में व्याप्त भय है। यह सरकार और परमाणु विशेषज्ञों का दायित्व है कि परमाणु सयत्रों में किए जा रहे सुरक्षा उपायों के बारे में जनता को अवगत कराएं और उनकी शकाओं को निर्मूल करें। यह सुखद है कि इसकी पहल हो चुकी है।


लेखक शुकदेव प्रसाद स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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