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वैश्विक स्तर पर नाभिकीय हथियारों की होड़ एक अशांत और भययुक्त विश्व का निर्माण करती जा रही है। शक्तिशाली और संपन्न देशों के पास पर्याप्त हथियार हैं। जो देश तेजी से विकास करते जा रहे हैं, उनके लिए हथियारों की खरीद और घातक मिसाइलों का परीक्षण एक प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए जरूरी लगता जा रहा है। ये देश अपनी संप्रभुता की रक्षा और दिखावे के नाम पर आवश्यकता से अधिक हथियार खरीदने और हथियार विकसित करने में व्यय करते हैं। भारत का नाम भी इस सूची में दर्ज है। स्वीडन की संस्था स्टॉक होम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की एक ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत सर्वाधिक हथियार आयातक देश बन चुका है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, भारत, चीन और पाकिस्तान ने विश्व के कुल हथियार आयात का लगभग पांच प्रतिशत आयात किया है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि 2007 से 2011 के बीच भारत के हथियारों की खरीद में 38 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इसी दौरान पाकिस्तान ने चीन से 50 जेएफ-17 और अमेरिका से 30 जेएफ-16 लड़ाकू विमान खरीदे हैं। चीन जो कुछ वर्ष पहले तक हथियार आयात के मामले में पहले स्थान पर था, अब चौथे पायदान पर आ गया है। यही नहीं, दुनिया के सर्वाधिक पांच हथियार आयातक देश एशिया के ही हैं। हालांकि विश्व युद्ध जैसी अब कोई स्थिति नहीं है, लेकिन विश्व शांति के लिए यह शुभ संकेत नहीं है। आज कई देश हथियारों की खरीद पर इतना अधिक धन व्यय कर रहे हैं कि उनके विकास के कार्यो के लिए धन की कमी पड़ती जा रही है। विडंबना यह भी है कि हथियारों की होड़ में शामिल देश अपने परमाणु हथियारों की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम भी नहीं कर रहे हैं। यह भी वजह है कि दुनिया में संदेह का माहौल है। पाकिस्तान का उदाहरण हमारे सामने है, जिसने भारत से परमाणु शक्ति संपन्न बनने की प्रतिस्पर्धा तो कर ली है, लेकिन उसके खुद के परमाणु हथियार सुरक्षित नहीं हैं। आज पूरी दुनिया की चिंता पाकिस्तान के परमाणु हथियारों की सुरक्षा को लेकर है।
पिछले दिनों दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में दूसरे परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ था। इस सम्मेलन में अमेरिका, भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान सहित 53 देश शामिल हुए थे। इस सम्मेलन का प्रमुख एजेंडा नाभिकीय सुरक्षा सहित आतंकवाद और दक्षिण कोरिया। वर्तमान में जिस तरह पूरी दुनिया परमाणु सुरक्षा को लेकर चिंतित है, ऐसे में सियोल जैसे सम्मेलनों से काफी उम्मीदें हैं। एक तरफ असैन्य परमाणु सुरक्षा की चिंता है तो दूसरी तरफ आतंकवाद और परमाणु हथियारों के संभावित खतरे की आहट भी महसूस की जा रही है। भारत के लिए यह ज्यादा चिंता की बात है, क्योंकि भारत आतंकवाद से सर्वाधिक प्रभावित देश है। इसकी यह चिंता 90 के दशक से शुरू हुई, जो 2008 के मुंबई आतंकी हमले के बाद से और भी बढ़ गई है। आतंकवाद से त्रस्त सभी देश इस दिशा में कार्रवाई करने को आतुर हैं कि किसी भी तरह से आतंकी गतिविधियों को ध्वस्त किया जाए, लेकिन मौजूदा हालात में यह आसान नहीं लगता। खासकर ऐसे माहौल में, जब तालिबान का विस्तार होता जा रहा है।
अफगानिस्तान के अलाव पाकिस्तान में भी उसकी गहरी पैठ होती जा रही है। वर्ष 2014 तक अमेरिकी सैनिकों की अफगानिस्तान से वापसी के बाद की स्थिति और भी जटिल हो सकती है। इस आशंका से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर तालिबान का कब्जा हो जाए। बहरहाल, विश्वभर में परमाणु हथियारों और लंबी दूरी वाली मिसाइलों के परीक्षण के कारण कई देशों के बीच संबंध कड़वे हुए हैं। भारत-पाकिस्तान के बीच मतभेदों और दोनों मुल्कों की आर्थिक विषमताओं की वजह हथियारों की होड़ भी है। भारत और चीन भी हथियारों और मिसाइलों के मामले में एक-दूसरे से होड़ करते नजर आते हैं। इसी तरह उत्तरी कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच भी घातक हथियारों की होड़ लगी रहती है। हथियारों को आज केवल रक्षा का विषय न मानकर वैभव और शक्ति संपन्न होने के दावे को मजबूत करने के लिए किया जा रहा है। यह घातक प्रवृत्ति है। विश्व समुदाय को हथियारों और परमाणु तकनीक के प्रसार पर अंकुश लगाने के उपाय करने चाहिए।
लेखक गौरव कुमार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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