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विज्ञापनों में अश्लीलता का तड़का

जागरण मेहमान कोना
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p9विज्ञापनों से अपमानित होने या उसके आपत्तिजनक लगने का आपको अधिकार है। इस संबंध में आप कोई शिकायत दर्ज करना चाहते हैं तो अवश्य करें। भारतीय विज्ञापन मानक परिषद यानी एडवर्टाइजिंग स्टैंड‌र्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा अखबारों में प्रकाशित प्रस्तुत विज्ञापन की तरफ कम लोगों की निगाह गई होगी। काउंसिल की तरफ से साथ ही साथ अपना ई-मेल पता तथा अन्य विवरण भी दिया गया है ताकि लोग उसे सूचित करें। मुमकिन है अखबार या पत्र-पत्रिका में प्रस्तुत किसी विज्ञापन को लेकर या टीवी चैनल पर पेश किसी कार्यक्रम को लेकर आपने जिस बेचैनी को महसूस किया होगा, वह संभवत: इस विज्ञापन से दूर हो सकती है। उदाहरण के लिए कई लोगों ने हाल ही में प्रकाशित एक डिओडेरेंट का विज्ञापन देखा होगा, जिसकी महक इतनी आकर्षक है कि किसी अजनबी द्वारा उसके प्रयोग से सम्मोहित कोई युवती उसे अपने आपको समर्पित कर देती है या डिओ के ही दूसरे विज्ञापन में युवकों के एक समूह को पिंजरे में बंद करना पड़ता है ताकि डिओ लगाकर जा रही युवती पर वह आक्रमण न कर दें।


एक ऐसे समय में जबकि जनगणना में स्ति्रयों का घटता अनुपात समाजविज्ञानियों से लेकर सियासतदानों के लिए चिंता का सबब बना हुआ था, एक अग्रणी टेलीकॉम कंपनी द्वारा गर्भ में पल रहे भ्रूण के लिंग निर्धारण से जुड़े विज्ञापन को अपने वेबसाइट पर प्रदर्शन को लेकर प्रदर्शित विज्ञापन के लिए उसके खिलाफ केस भी दर्ज किया गया था। प्रस्तुत विज्ञापन में गर्भ के लिंग को जानने के लिए चीनी नुस्खों की बात कही गई थी और उसमें उन तकनीकों की भी चर्चा थी ताकि गर्भ विशिष्ट लिंग का हो, इसकी संभावना को सुनिश्चित किया जा सके। यही हाल देश की एक अग्रणी कार निर्माता द्वारा अपनी नई कार के लिए प्रसारित विज्ञापन भी विवाद का कारण बना था। उपरोक्त विज्ञापन में रात के वक्त सड़क पर एक युवती का पीछा करते एक बाघ को दिखाया गया था। वह युवती शहर के अलग-अलग इलाकों में घूम रही है। जब वह सड़क पर होती है तो बाघ को कार का रूप धारण करते दिखाया गया था और जब वह सीढि़यां चढ़ रही होती है तो कार अचानक बाघ में रूपांतरित होती थी। बलात्कार को बेचने लायक वस्तु बनाने वाले इस विज्ञापन को लेकर जेंडर कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद ही इसे वापस लिया जा सका था।


सौंदर्यप्रसाधनों के विज्ञापन स्ति्रयों की कामुक छवि बेचने के लिए विवादों के घेरे में रहते आए है, मगर स्ति्रयों के चित्रण में प्रश्नांकित करने वाला यही एकमात्र पहलू नहीं है। ऐसे विज्ञापनों को भी देखा जा सकता है, जो स्ति्रयों के खिलाफ हिंसा को औचित्य प्रदान करते हैं। स्ति्रयों के वस्तुकरण और उनके दोयम दर्जे के चित्रण को अपवाद नहीं कहा जा सकता, उसे हम मीडिया रणनीति का हिस्सा भी मान सकते हैं। अपने एक पर्चे में नारीवादी कलाकार, लेखक एवं कार्यकर्ता लुसिंदा मार्शेल ने इस बात का समग्रता में विश्लेषण किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि सबसे विचलित करने वाली चीज है स्ति्रयों के खिलाफ सनसनीकृत हिंसा का अत्यधिक चित्रण। दरअसल, घरेलू हिंसा की तुलना में बलात्कार से जुड़ी खबरों को अधिक पेश किया जाता है। इसकी वजह यह होती है कि अक्सर बलात्कार संबधित खबरें किसी व्यक्तिगत महिला पर केंद्रित होती हैं। अगर वह आकर्षक है तो वह एक भुनाने लायक पीडि़ता है। विडंबना यही कही जा सकती है कि विज्ञापनों एवं अन्य कार्यक्रमों को लेकर बने नियमों के बावजूद अशोभनीय और किसी की छवि को ठेस पहुंचाने वाले कार्यक्रमों के प्रसारण की अनुमति मिल जाती है।


बहुत कम मौके ऐसे आते हैं, जब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय इन मामलों में दखल देता है। इसे संयोग कहा जा सकता है कि पिछले दिनों डिओडेरेंट के विज्ञापनों को लेकर सूचना प्रसारण मंत्रालय अचानक सक्रिय हो उठा एवं उसने टीवी चैनलों को ऐसे विज्ञापनों को संशोधित करने या उन्हें हटा देने का निर्देश दिया। मंत्रालय ने एडवर्टाइजिंग स्टैंड‌र्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया को इस मामले में उचित कार्रवाई करने को कहा और पांच दिन में अपनी रिपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया। दरअसल, विगत दो सालों से मंत्रालय के पास अलग-अलग कंपनियों के डिओडेरेंट के विज्ञापनों को लेकर शिकायतें पहुंच रही थीं। अपने निर्देश में मंत्रालय ने ऐसे सात उदाहरणों का जिक्र किया, जो उसके मुताबिक अश्लील, सूचक एवं उत्तेजक चित्रण के जरिए विज्ञापन संहिता के नियम 7(8) का उल्लंघन करते हैं। गौरतलब है कि एडिक्शन, एक्स और वाइल्ड स्टोन, झटक, जैसे चर्चित ब्रांडों के लिए बने विज्ञापनों पर इसके अंतर्गत प्रश्नचिह्न बना हुआ है। आखिर सभी चर्चित ब्रांडों द्वारा प्रसारित विज्ञापन विवादों के घेरे में आने के निहितार्थ क्या हो सकते हैं? इसका मतलब यही है कि सौंदर्यप्रसाधनों के तेजी से बढ़ रहे उद्योग में डिओ वाले हिस्से पर नियंत्रण जमाने से आपस में तीखी प्रतियोगिता चल रही है। ध्यान रहे कि सौंदर्यप्रसाधनों का उद्योग आज की तारीख में बेहद तेजी से बढ़ रहा है। जानकारों के मुताबिक उसकी सालाना वृद्धि दर 15 से 20 फीसदी है।


मध्यम वर्ग के एक अच्छे खासे हिस्से की बढ़ती क्रयशक्ति एवं नए-नए उपभोक्ता सामानों के प्रति उसके बढ़ते आकर्षण का नतीजा है कि आज की तारीख में सौदर्यप्रसाधनों का बाजार 356 बिलियन रुपये तक पहुंचा है। बदलती जीवनशैली ने भी भारतीयों को सौंदर्य के प्रति या अच्छे दिखने के प्रति अधिक सचेत बनाया है। आरएनसीओएस नामक मार्केट शोधकर्ताओं द्वारा किया गया सौंदर्यप्रसाधनों के क्षेत्र का विश्लेषण उजागर करता है कि बढ़ता उपभोक्ता आधार एवं खर्च करने की क्षमता ने इस उद्योग में तेजी ला दी है। आकलन यही है कि आने वाले कुछ सालों तक इसकी वृद्धि दर लगभग 17 फीसदी के करीब रहेगी। यह अकारण नहीं कि अमेरिका एवं यूरोप जैसे देशों के सौंदर्यप्रसाधनों के ब्रांड, जहां उद्योग की वृद्धि दर बमुश्किल 8-9 फीसदी है, अब तेजी से इस बाजार में अपना हस्तक्षेप बढ़ाने के लिए रणनीति बना रहे हैं। अगर महज डिओ की बात करें तो उसकी मार्केट दरअसल प्रतिवर्ष 35 से 40 फीसदी दर से तेजी से बढ़ रही है, जो वृद्धि दर सौंदर्यप्रसाधनों की औसत वृद्धि दर से लगभग दोगुनी है।


स्पष्ट है कि वे सभी लोग जो स्त्री की गरिमा को लेकर या मीडिया में उसकी छवि को लेकर सरोकार रखते हैं, उन्हें निरंतर सजग रहना पड़ेगा ताकि वह सभ्यता के मापदंडों के उल्लंघनों का विरोध जारी रख सकें। अगर हम भारतीय विज्ञापन मानक परिषद की चर्चा की ओर फिर लौटें तो यह भी पता चला है कि ऐसे अशोभनीय विज्ञापनों पर निगाह रखने और इस पर लोगों की राय जानने के लिए फेसबुक एवं ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किग साइट्स के माध्यम का भी सहारा लेने का सिलसिला उसकी तरफ से शुरू हुआ है। करीब दो माह से शुरू इस अभियान के अंतर्गत उन्हें तमाम दर्शकों की विज्ञापनों पर अलग-अलग राय मिल चुकी है। क्या अब भी आप अशोभनीय विज्ञापनों पर मौन बनाए रखेंगे या अपनी बात कहने का साहस करेंगे, यही विचारणीय प्रश्न रहेगा।


लेखक सुभाष गाताडे स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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