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इस मान्यता से भोजपुरी का कितना भला होगा

जागरण मेहमान कोना
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हम रउवा सब के भावना समझतानी, पिछले दिनों संसद में गृहमंत्री पी. चिदंबरम के मुंह से निकले इन भोजपुरी शब्दों ने पूरे देश को अपनी ओर आकर्षित किया। एक ऐसे मंत्री जो हिंदी में भी कभी कभार ही बोलते देखे गए हों, उनके मुख से भोजपुरी के बोल देशवासियों के लिए विस्मय की बात थी। गृहमंत्री के इन शब्दों ने देश-विदेश के करोड़ों भोजपुरी भाषियों और भारतीय भाषाओं के प्रेमियों को भी एक पल के लिए चौंकाया, पर उसके बाद उनके चेहरों पर थी एक विजयी मुस्कान और उसमें छुपा था अपार संतोष का भाव। उस दिन संसद में जो कुछ हुआ, वह इस मायने में ऐतिहासिक था कि भोजपुरी को संवैधानिक मान्यता प्राप्त भाषा का दर्जा प्राप्त होने की दिशा में इतनी ठोस पहल संसद में पहली बार देखने को मिली। गृहमंत्री का यह आश्वासन कि भोजपुरी को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल किए जाने संबंधी बिल संसद के मानसून सत्र में पेश किया जाएगा। भोजपुरी के संबंध में सरकार का यह अब तक का सबसे आशावादी और सकारात्मक रुख है। भोजपुरी भाषी अब कुछ संतोष की मुद्रा में आ सकते हैं, क्योंकि उनकी भाषा अब संविधान सम्मत भाषा बनने की दहलीज पर आ खड़ी हुई है।

 

भोजपुरी दुनिया भर के 16 देशों में 20 करोड़ से भी ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली लगभग एक हजार साल पुरानी भाषा है, जो देश में हिंदी के बाद सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाती है। इसके पास अपना समृद्ध साहित्य, अपार शैक्षणिक साम‌र्थ्य, एक समृद्ध सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत विद्यमान है। भोजपुरी का बढ़ता दायरा आज देश के अनेक विश्वविद्यालयों में भोजपुरी की पढ़ाई हो रही है। दुनिया के सबसे बडे विश्वविद्यालय इग्नू में इसका फाउंडेशन कोर्स चलाया जा रहा है। दिल्ली सरकार ने मैथिली-भोजपुरी अकादमी तथा बिहार सरकार ने भोजपुरी अकादमी की स्थापना कर भोजपुरी भाषा, कला व संस्कृति को नए आयाम प्रदान करने के साथ-साथ इन्हें नई पहचान दी है। मूल रूप से पूर्वाचल क्षेत्र में मनाया जाने वाला महापर्व छठ आज धीरे-धीरे संपूर्ण भारत में उत्साहपूर्वक मनाया जाने लगा है। यह भोजपुरी/पूर्वाचल की संस्कृति की व्यापकता का परिचायक है। केंद्र व दिल्ली सरकार के कार्यालयों में छठ के अवसर पर वैकल्पिक अवकाश दिया जाता है।

 

भोजपुरी की उपयोगिता एवं बढ़ते प्रभाव का अंदाजा इस बात से भी लगता है कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां अब अपने विज्ञापन भोजपुरी में भी बनाने लगी हैं। भोजपुरी टीवी चैनलों पर आने वाले विज्ञापन एवं भोजपुरी इलाकों में जगह-जगह पर लगाए जा रहे बोर्ड एवं होर्डिस इसके गवाह हैं। भोजपुरी फिल्म इंडस्ट्री आज हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को कड़ी टक्कर दे रही है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल प्रारंभिक 14 भाषाओं के अलावा कालांतर में अन्य आठ भाषाओं सिंधी, कोंकणी, मणिपुरी, नेपाली, बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली को शामिल किया गया है। आबादी और प्रचुर समृद्ध साहित्य जैसे मानदंडों पर भोजपुरी इनसे कम नहीं है। अगर सिर्फ बोलने वालों की संख्या के लिहाज से ही देखें तो 2001 की जनगणना के अनुसार इन आठ भाषाओं को बोलने वालों की कुल संख्या 3 करोड़ 16 लाख 44 हजार है, जबकि आज भोजपुरी बोलने वालों की संख्या 20 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है। भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने का मुद्दा पिछले कई दशकों से देश-विदेश की विभिन्न संस्थाओं में उठता रहा है। संसद सदस्यों ने भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए अब तक 15 बार प्राइवेट बिल पेश किए हैं। रंग ला रही है मुहिम संसद में पहली बार वर्ष 1969 में चौथी लोकसभा के दौरान सांसद भोगेंद्र झा ने प्राइवेट मेंबर बिल के रूप में इस प्रश्न को संसद में उठाया था। तब से लेकर लगातार इस दिशा में प्रयास जारी रहे।

 

2 फरवरी 2007 को भोजपुरी दिल्ली समाज का एक प्रतिनिधिमंडल संप्रग अध्यक्ष से मिला और भोजपुरी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग की। 22 मई, 2009 को भोजपुरी समाज दिल्ली द्वारा आयोजित भोजपुरी व पूर्वाचल क्षेत्र के 15वीं लोकसभा के नव निर्वाचित सांसदों के अभिनंदन समारोह में भी उपस्थित सांसदों से अनुरोध किया गया कि वे भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग को संसद में जोरदार ढंग से उठाएं। अनेक भोजपुरी सम्मेलनों में भी यह मांग जोरदार ढंग से उठती रही है। इन तमाम प्रयासों से भी एक प्रभावशाली सकारात्मक माहौल बना है। मॉरीशस में भी भोजपुरी को 14 जून, 2011 को संवैधानिक दर्जा मिल चुका है।

 

संवैधानिक दर्जा मिला तो.. किसी भाषा को संवैधानिक मान्यता प्राप्त होने से उसकी पहचान और गरिमा को नया आयाम तो मिलता ही है, उसके बहुत सारे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष फायदे भी हैं। आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं को अन्य भाषाओं की अपेक्षा विशेषाधिकार प्राप्त होता है। सरकारी संरक्षण में इन भाषाओं को फलने-फूलने के पर्याप्त अवसर और सुविधाएं प्राप्त होती हैं। संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में इन भाषाओं को लिखित परीक्षा और साक्षात्कार के माध्यम के रूप में अपनाया जा सकता है तथा उस भाषा का एक विषय के रूप में चयन किया जा सकता है। इन भाषाओं को संबंधित राज्यों में राजभाषा का दर्जा प्राप्त होता है तथा इन भाषाओं के विकास के लिए राज्य सरकारों को अपनी वार्षिक योजना में योजना आयोग, भारत सरकार से अतिरिक्त धनराशि आवंटित कराने का अधिकार मिलता है। भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार जैसे सम्मान सिर्फ मान्यता प्राप्त भाषा की रचनाओं को ही दिए जाते हैं ऐसे तमाम मानक हैं, जो 8वीं अनुसूची में शामिल भाषाओं को आम भाषाओं से अलग करते हैं। अत: किसी भाषा को आम से खास बनाने की ललक उस भाषा के हर पैरोकार में विद्यमान होती है। भोजपुरी के पैरोकारों ने यह काम पिछले कुछ सालों में बखूबी किया है।

 

भोजपुरी को खास बनाने की मुहिम ने कई बार संसद के चौखट पर जोरदार ढंग से दस्तक दी और सरकार को सोचने पर विवश किया। इसी का परिणाम था कि वर्ष 2006 में तत्कालीन गृह राज्यमंत्री ने लोकसभा को बताया कि केंद्र सरकार भोजपुरी को आठवीं अनुसूची में शामिल करने पर विचार कर रही है। इससे दो वर्ष पूर्व तत्कालीन गृहमंत्री ने भी सदन को आश्वासन दिया था कि भोजपुरी को जल्द ही आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाएगा, परंतु समय-सीमा को लेकर कुछ न कहने की वजह से इनका कुछ सार्थक परिणाम नहीं निकला। इस बार गृहमंत्री ने जो आश्वासन दिया है, वह सोच-समझकर दिया गया है। भोजपुरी भाषी पूरी तरह से आश्वस्त हैं कि संसद का मॉनसून सत्र उनके लिए कुछ विशेष होगा और उनकी चिर प्रतीक्षित अभिलाषा अवश्य पूर्ण होगी।

 

अजीत दुबे  भोजपुरी समाज, दिल्ली के अध्यक्ष हैं

 

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