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संसद को चुनौती नहीं दे रही सिविल सोसाइटी

जागरण मेहमान कोना
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Arun Jetliलोकपाल विधेयक पर सिविल सोसाइटी और सरकार के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है। ऐसे में सबकी जितनी नजरें सरकार पर हैं उससे ज्यादा विपक्ष के रुख पर। सरकारी लोकपाल बनाम जनलोकपाल की लड़ाई जिस तरह से भ्रष्टाचार के खिलाफ महासमर की स्थिति तक पहुंच गई है, उसमें मुख्य विपक्षी दल भाजपा अपनी क्या भूमिका देख रही है और इसका क्या समाधान है? फिलहाल भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उज्जैन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ तमाम आंतरिक और बाहरी मुद्दों पर मंथन भी कर रहा है। उज्जैन में मौजूद वरिष्ठ भाजपा नेता और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली से राजकिशोर ने सिविल सोसाइटी बनाम सरकार मुद्दे पर लंबी बातचीत की। पेश हैं वार्ता के प्रमुख अंश:-


अन्ना अनशन पर और जनता सड़कों पर। पूरे हालात के लिए कौन जिम्मेदार है?

पूरी तरह से सरकार जिम्मेदार है। यूपीए सरकार के कार्यकाल के इन वर्षों में भ्रष्टाचार सारी सीमाएं पार कर चुका है। ऐसे भ्रष्टाचार को देखते हुए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष मजबूत लोकपाल की मांग बिल्कुल जायज है।


सरकार कह रही है कि उसने तो मजबूत लोकपाल के लिए ईमानदारी से प्रयास किए। मसौदा तैयार करने के लिए सिविल सोसाइटी के साथ संयुक्त ड्राफ्ट कमेटी बनाई और वायदे के मुताबिक संसद में लोकपाल विधेयक भी लेकर आ गई। सरकार के इस तर्क से कितना सहमत हैं?

सब कुछ एक छलावा है। सरकार ने संयुक्त समिति बनाई तो किसी मजबूत लोकपाल कानून के लिए नहीं, बल्कि सिविल सोसाइटी के लोगों को उसमें फंसाने के लिए। फिर बातचीत तोड़ी और बगैर किसी को विश्वास में लिए एक कमजोर विधेयक पेश कर दिया। सरकार के इस रवैये पर प्रतिक्रिया फैली तो वह दमन पर उतारू हो गई। इसलिए सरकार की नीयत पर समाज को शक है और पूरे देश में बना माहौल विश्वास के इसी संकट का नतीजा है।


अभी तक भाजपा ने भी लोकपाल के बारे में पत्ते नहीं खोले हैं। कहीं आप भी अनिर्णय की स्थिति में तो नहीं?

कतई नहीं। लोकपाल के मसले पर जो प्रमुख बिंदु हैं भाजपा उन पर अपनी राय सामने रख चुकी है। सर्वदलीय बैठक के बाद हमारे वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और अध्यक्ष नितिन गडकरी ने इस बारे में खुलकर राय रखी थी। मैंने भी एक आलेख लिखकर मजबूत, प्रभावी और निष्पक्ष लोकपाल के चुनने की प्रक्रिया से लेकर उसके अधिकारों पर राय व्यक्त की थी।


क्या आप सिविल सोसाइटी के जनलोकपाल बिल से सहमत हैं? क्या प्रधानमंत्री और न्यायपालिका लोकपाल की जांच के दायरे में होने चाहिए?

देखिए..लोकपाल की नियुक्ति में सरकारी दखल और प्रभाव न हो। नियुक्ति के लिए बाकायदा एक सशक्त और वैज्ञानिक तंत्र हो। अच्छे और प्रभावी लोकपाल के लिए उसकी नियुक्ति निष्पक्ष तरीके से हो, यह पहली शर्त है। हम यह सुनिश्चित कराने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे। राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को छोड़कर प्रधानमंत्री लोकपाल दायरे में हों, यह हम पहले ही कह चुके हैं। जहां तक न्यायपालिका की बात है तो उसके लिए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग होना चाहिए, जिसके जरिए न्यायिक भ्रष्टाचार पर नियंत्रण का तंत्र बने। हमने जो बातें कहीं है वह संस्थागत फेसगार्ड हैं।


टीम अन्ना न्यायपालिका के भ्रष्टाचार पर अंकुश के लिए न्यायिक उत्तरदायित्व विधेयक भी खुद ही ड्राफ्ट करने की बात कर रही है। क्या यह बात ठीक है?

अंत में जो बिल संसद में आएगा वही पारित होगा। समाज का हर वर्ग राय दे सकता है और सरकार का काम भी यही है कि वह सबसे सलाह करके चले। फिर सिविल सोसाइटी भी ऐसा सिर्फ इसलिए कर रही है, क्योंकि बार-बार सरकार ने सबका भरोसा तोड़ा, जिससे संदेश गया कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर मजबूत कानून बनाने की उनकी नीयत ही नहीं है। संसद में पेश किए गए लचर लोकपाल कानून से लोगों की इस धारणा को बल मिला है।


प्रधानमंत्री ने कहा कि बदलाव के रास्ते खुले हैं। क्या संसदीय समिति के सामने टीम अन्ना को हाजिर होकर बदलाव के लिए अपनी बात रखनी चाहिए?

बेहतर होगा कि ये प्रश्न आप टीम अन्ना से पूछें। वैसे अगर सरकार का लोकपाल विधेयक तार्किक और ईमानदार होता तो शायद यह नौबत ही नहीं आती।


टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि सरकारी विधेयक को फाड़कर फेंक देना चाहिए और संसदीय समिति उसे वापस लौटा दे, अपना समय बर्बाद न करे।

ये शब्दावली मैं नहीं प्रयोग करूंगा। जैसा कि मैंने पहले कहा कि जनता को सरकार की नीयत पर शक है। यह सरकार की जिम्मेदारी है कि पहले वह भरोसा तो कायम करे।


टीम अन्ना पर संविधान और संसद की अवमानना के आरोप लग रहे हैं। आप कितने सहमत हैं?

मैं मानता हूं कि सिविल सोसाइटी कैंपेनर है। उनको अपनी बात कहने का अधिकार है। संसद उस पर चर्चा कर कानून को अंतिम रूप देगी। संसद के इस अधिकार को तो सिविल सोसाइटी भी खारिज नहीं कर रही। वे एक अच्छे और मजबूत कानून की बात कर रहे हैं तो इसमें हर्ज क्या है।


सिविल सोसाइटी के दूसरे सदस्य मसलन एनएसी में सदस्य अरुणा राय सरीखे लोग टीम अन्ना के खिलाफ उतर गए हैं? इसके पीछे क्या सरकार का इशारा माना जाए?

मैं किसी पर आरोप नहीं लगाता हूं। सबको अपनी बात रखने का अधिकार है। अंत में निर्णय संसद करेगी।


लोकपाल विधेयक पर संयुक्त ड्राफ्ट कमेटी से विपक्ष को सरकार ने बाहर रखा। क्या अब सरकार की तरफ से फिर कोई पहल शुरू होती है तो क्या आप जाएंगे?

इस विषय का हल हो और निष्पक्ष और मजबूत लोकपाल विधेयक आए, यह हमारी प्राथमिकता है। इस पर फिलहाल यही कह सकता हूं।


क्या उज्जैन में बैठक के दौरान आरएसएस ने भाजपा पर दबाव डाला है जनलोकपाल के समर्थन के लिए? क्योंकि उसके बाद पार्टी खुलकर समर्थन में आ गई?

वह सिर्फ समन्वय बैठक थी।


अन्ना के अनशन को छह दिन हो गए। सरकार भी झुकती नजर नहीं आती। अब भाजपा की रणनीति क्या है?

सवाल रणनीति का नहीं है। भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कानून और व्यवस्था के हम समर्थक हैं। सरकार को चाहिए कि वह जनभावनाओं को समझ सही दिशा में बढ़े। न कि किसी पर हल्के आक्षेप लगाकर सही सवाल उठाने वालों का मानमर्दन करने की कोशिश करे। हम जिम्मेदार विपक्ष होने के नाते यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे कि जनता की आवाज दबाई न जा सके।


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