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पुंछ सेक्टर में भारतीय पोस्ट पर पाकिस्तान की ओर से किए गए हमले ने दोनों देशों के बीच शांति और वार्ता प्रक्रिया पर नया खतरा उत्पन्न कर दिया है। इस हमले में भारत के पांच जवानों की जान चली गई और इसके फलस्वरूप स्वाभाविक रूप से पूरे देश में पाकिस्तान के प्रति गुस्से की लहर फैल गई। कुछ माह पहले पाकिस्तान के प्रति ऐसी ही नाराजगी तब थी जब नियंत्रण रेखा पर दो भारतीय सैनिकों के साथ की गई बर्बरता का मामला सामने आया था। भारतीय सैनिकों पर हमले की ताजा घटना को अलग और इकलौते रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। सच्चाई यह है कि पिछले कुछ समय में इस तरह की घटनाओं की पूरी श्रृंखला नजर आती है। नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम के उल्लंघन की इन घटनाओं की एक परंपरा है और हमें इस ट्रेंड को समझने की जरूरत है। पहला बिंदु समय का है।
जब भी दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय वार्ता का समय आता है तो कोई न कोई ऐसी घटना हो जाती है जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर पहुंच जाता है। सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों की मुलाकात होनी है और उसके ठीक पहले सीमा पर यह घटना हो गई। जाहिर है, अब दोनों देशों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का नया दौर आरंभ होगा। पाकिस्तान हमेशा की तरह इन्कार की मुद्रा अपनाएगा और अपना भी रहा है। 2003 में जब से नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम का समझौता लागू हुआ है तब से इसके उल्लंघन की न जाने कितनी घटनाएं हो चुकी हैं। छोटी-मोटी घटनाएं तो चर्चा में नहीं आ पातीं। ऐसी घटनाओं का असल मकसद शांति और बातचीत की प्रक्रिया को पटरी से उतारना हो सकता है। विचार का दूसरा पहलू है, पिछले छह माह में नियंत्रण रेखा के उल्लंघन की घटनाओं में वृद्धि। यह उल्लंघन केवल पाकिस्तान की ओर से ही नहीं किया गया, बल्कि चीन की ओर से भी हुआ है। यह पहलू सीमा के मसले पर भारत की चिंताएं बढ़ाने वाला है। वजहें जो भी हो, सच्चाई यही है कि भारत को दो मोर्चो पर कठिन स्थितियों से जूझना पड़ रहा है। इस चुनौती से निपटने की राह रातोंरात नहीं निकल सकती। इसके लिए व्यापक सहमति के साथ एक नई दिशा तय करनी होगी, जिसमें संबंधित देशों के साथ भारत की नीतियों पर नए सिरे से विचार-विमर्श भी शामिल है। विदेश नीति का निर्धारण किसी एक घटना के आधार पर नहीं हो सकता। नीतियों में निरंतरता आवश्यक होती है, बावजूद इसके सतर्कता के स्तर पर कमी नहीं की जा सकती।
तीसरा पहलू यह है कि नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम के उल्लंघन की घटनाओं की एक वजह सीमा पर नई बटालियन की तैनाती भी होती है। जब भी नई बटालियन आती है तो उसे स्थितियों को समझने में समय लगता है और इस दौरान भ्रम की स्थितियों में भी कोई ऐसी घटना हो जाती है जो तनाव बढ़ाने वाली होती है। पाकिस्तान के संदर्भ में भारत की विदेश नीति पर बहस करने के अच्छे-खासे आधार हैं। यानी सरकार के किसी भी कदम के पक्ष-विपक्ष में अनेक दलीलें दी जा सकती हैं, लेकिन इसकी समीक्षा अवश्य होनी चाहिए कि विश्वास बहाली के जो उपाय हमारी तरफ से किए जा रहे हैं उनके क्या नतीजे सामने आए हैं? कोई भी पहल एकतरफा नहीं हो सकती। भारत को पाकिस्तान से आगे होने वाली बातचीत में सख्ती के साथ इस मुद्दे को उठाना चाहिए। पाकिस्तान के साथ बातचीत जरूर भी है और मजबूरी भी। संवादहीनता की कोई भी स्थिति न तो भारत के हित में है और न ही दक्षिण एशिया के। पाकिस्तान के नेतृत्व-राजनीतिक और सैन्य को भी इस हकीकत से परिचित होना चाहिए। 1भारतीय नेतृत्व की नाकामी इस लिहाज से गौर करने लायक है कि या तो सीमा की हम सही तरह निगरानी नहीं कर पा रहे हैं या फिर दूसरे देशों के साथ हमारी नीतियों में खामी है।
पाकिस्तान ही नहीं पूरे दक्षिण एशिया के मामले में भारत की यही स्थिति है। चूंकि हमारा सारा ध्यान चीन और पाकिस्तान के साथ लगने वाली सीमाओं पर लगा रहता है इसलिए अन्य घटनाओं को उतनी प्रमुखता नहीं मिल पाती। नेपाल और बांग्लादेश के साथ भी भारत की सीमाओं पर एक लंबे समय से सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। यहां तक कि श्रीलंका के साथ समुद्री सीमा में भी भारतीय मछुआरे जब-तब मुश्किल में घिर जाते हैं। जाहिर है, सीमाओं के मसले पर केवल पाकिस्तान और चीन के परिप्रेक्ष्य में ही विचार-विमर्श नहीं होना चाहिए, बल्कि एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में चीजों को देखने की जरूरत है ताकि जो खामियां हैं और जिनके चलते भारतीय हितों को नुकसान पहुंचता है उन्हें दूर किया जा सके।
पाकिस्तान के साथ संबंधों के मामले में आम जनता की धारणा भी बहुत महत्वपूर्ण होती है। जब भी सीमा पार से घुसपैठ की कोई घटना होती है अथवा भारतीय सैनिकों के साथ र्दुव्यवहार का मामला सामने आता है या फिर देश में हुई किसी आतंकी घटना के तार पाकिस्तान से जुड़ते हैं तो स्वाभाविक रूप से जनता में इस्लामाबाद और वहां बैठे शासकों के प्रति गुस्सा भर जाता है। इस गुस्से में ही पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांगें उठ जाती हैं। यह कड़ी कार्रवाई किस रूप में होनी चाहिए? सीधी भिड़ंत कोई विकल्प नहीं है और न ही बातचीत की प्रक्रिया को बिल्कुल बंद किया जा सकता है। वार्ता बंद कर देने के दूसरे दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं। स्पष्ट है कि पाकिस्तान को जो भी संदेश दिया जाना है वह राजनीतिक स्तर पर ही दिया जाना है। यह एक हकीकत और इससे कोई बच नहीं सकता कि बातचीत के क्रम में ही भारत और पाकिस्तान को अपनी-अपनी समस्याओं के समाधान निकालने होंगे और अपनी सुरक्षा चिंताओं का समाधान करना होगा। 1दरअसल भारत और पाकिस्तान को यह समझना होगा कि परस्पर संवाद व संपर्क दोनों देशों के सुरक्षा हित में है। हाल के घटनाक्रमों ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि इस संवाद के केंद्र में नियंत्रण रेखा भी होनी चाहिए। बातचीत मुद्दों पर केंद्रित होनी चाहिए और कोशिश इस बात पर होनी चाहिए कि दोनों देशों की सुरक्षा चिंताओं का समाधान हो। भारत इस बातचीत में ही पाकिस्तान पर यह दबाव बना सकता है कि वह ऐसी घटनाओं से बचे जो दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ाने वाली है|
इस आलेख के लेखक डी. सुबा चंद्रन हैं
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