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करीब 14 सालों के असमंजस के बाद पाकिस्तान ने हाल में भारत को ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ यानी सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र का दर्जा देने के संकेत देकर दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने और संबंध सुधारने की दिशा में पहल की है। भारत ने 1996 में ही पाकिस्तान को यह दर्जा दे दिया था, किंतु विश्व व्यापार संगठन का सदस्य होने के बावजूद पाकिस्तान ने अपने यहां के कट्टरपंथी, मजहबी और सियासी गुटों के दबाव में भारत को यह वरीयता देने से परहेज किया। वास्तविकता यह है कि भारत के साथ आर्थिक संबंध टालते रहने के कारण पाकिस्तान स्वयं अपने पांवों में कुल्हाड़ी मारता आया है। दोनों देशों का अस्तित्व एक साथ शुरू होने के बावजूद भारत के मुकाबले आज पाकिस्तान कहां खड़ा है? इस बदहाली के क्या कारण हैं? जब तक पाकिस्तान अपने दुराग्रहों को त्याग कर इन प्रश्नों का ईमानदारी से हल नहीं ढूंढता तब तक मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा लेने-देने के कोई मायने नहीं हैं। इससे न तो पाकिस्तान की बदहाली मिटने वाली है और न ही दोनों देशों के संबंधों में कोई प्रगति संभव है।
यह सही है कि एमएफएन के बाद दोनों देशों के बीच व्यापार मौजूदा 2.6 अरब डॉलर से बढ़कर 6.8 अरब डॉलर सालाना तक पहुंच सकता है। आपसी व्यापारिक सहयोग बढ़ने से पाकिस्तान में भारतीय निवेश बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता, किंतु पाकिस्तान के अंदरूनी हालात क्या निवेश के लायक माहौल और विश्वास पैदा करते हैं? अभी दोनों देशों के बीच वीजा नियम अधिक कड़े हैं। स्वाभाविक है कि दोनों देशों के बीच उद्यमियों व व्यापारियों का आना-जाना सुलभ करने के लिए वीजा नियमों में नरमी लाने की भी आवश्यकता है। इसके लिए पाकिस्तान को अपनी भारत विरोधी मानसिकता में भी बदलाव लाने की जरूरत है। विडंबना यह है कि भारत के प्रति वैरभाव पाकिस्तान के डीएनए में ही समाहित है और जब तक पाकिस्तान में यह मानसिकता जिंदा रहेगी, दोनों देशों के बीच बेहतर संबंध कायम होने की संभावनाएं क्षीण रहेंगी। पाकिस्तान ने अपने भारत-विद्वेष के कारण भारत के साथ द्विपक्षीय व्यापार को बहुत ही सीमित कर रखा है। यही कारण है कि पाकिस्तान में उतनी औद्योगिक प्रगति नहीं हो पाई। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार पाकिस्तान केवल कपड़ा, चावल, कपास व चर्म-उत्पाद का ही निर्यात करता है, जबकि भारत कृषिगत उत्पाद, कपड़ा, रत्न व आभूषण, सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी, अभियांत्रिक उत्पाद, चावल, गेहूं आदि का निर्यात करता है। साफ है कि पाकिस्तान औद्योगीकरण में काफी पिछड़ गया है। भारतीय पूंजी, उन्नत तकनीक व प्रौद्योगिकी और यहां के उद्यमियों की प्रतिभा से पाकिस्तान की कायापलट हो सकती है, किंतु भारत के साथ वैमनस्य की नीति के कारण पाकिस्तान हुक्मरानों ने यह भ्रांति फैला रखी है कि भारतीय उद्योगों के आने से उनके अपने घरेलू उद्योग ठप हो जाएंगे। भारत-पाकिस्तान के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ने से उपमहाद्वीप में नए आयाम स्थापित हो सकते हैं। हो सकता है कि शांति बहाल करने में वर्तमान पहल सहायक हो, परंतु इसके लिए पाकिस्तान की ओर से इस्लामी उन्माद और कठमुल्लावाद को खत्म करने का सार्थक प्रयास भी होना चाहिए।
पाकिस्तान अपने जन्म के बाद से ही एक अस्थिर राष्ट्र रहा है और वहां लोकतांत्रिक व्यवस्था अल्पजीवी रही है। जनरल अयूब खां से शुरू होकर मुशर्रफ तक पाकिस्तान में लोकतंत्र सैनिक बूटों के नीचे पिसता रहा है। याह्या खान, जिया उल हक, परवेज मुशर्रफ के बाद जनरल कियानी के नेतृत्व में पाकिस्तान में एक बार फिर सैन्यशाही के आसार बनते दिख रहे हैं। वस्तुत: पाकिस्तान आज एक ऐसा राष्ट्र है, जो अपने आप से ही लड़ रहा है। भारत को रक्तरंजित करने के लिए जिन भस्मासुरों को पाल-पोस कर उसने बड़ा किया वही उसके अस्तित्व के लिए खतरा बन गए हैं। अलकायदा, तालिबान, लश्करे तैयबा, जैशे मोहम्मद जैसे भस्मासुरों के अलावा करीब दो दर्जन जिहादी संगठन और हैं, जो पाकिस्तान पर नियंत्रण के लिए दिन-रात जुटे हैं।
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है। पिछले साल वहां के वित्तमंत्री ने कहा था, ‘पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर है।’ दुनियाभर में यह चिंता है कि कहीं पाकिस्तान के सत्ता केंद्र पर चरमपंथियों का कब्जा न हो जाए। इस सूरत में अलकायदा जैसे हिंसक जिहादी संगठनों के हाथों परमाणु हथियारों का जाना संपूर्ण मानवता के लिए खतरा पैदा कर सकता है। पाकिस्तान की बदहाली उसके मजहबी जुनून के कारण है। यह सही है कि पाकिस्तान का मजहब के आधार पर बंटवारा हुआ, किंतु जिन्ना ने मुस्लिम बहुल राष्ट्र के अंदर पंथनिरपेक्ष व्यवस्था की ही परिकल्पना की थी। भारत और पाकिस्तान के बीच व्यापारिक संबंधों की बुनियाद भी जिन्ना के समय में ही रख दी गई थी, किंतु उनके बाद वहां के हुक्मरानों ने अविभाजित भारत की हिंदू-बौद्ध साझी संस्कृति को नकारते हुए खुद को अरब संस्कृति से जोड़ने का निरंतर प्रयास किया। जिया उल हक और उसके बाद के पाकिस्तानी हुक्मरानों ने इस्लामी परंपरा और शरीयत मान्यताओं के आधार पर व्यवस्था को इस्लामी कानूनों के आधार पर चलाने की शुरुआत कर वस्तुत: पहले से मौजूद कट्टरपंथी मानसिकता को हवा देने का काम किया। मदरसों में भारत की बहुलतावादी संस्कृति के खिलाफ विषवमन तो पाकिस्तानी युवाओं में बालपन से ही भारत के खिलाफ नफरत पैदा करने की साजिश के अंतर्गत किया गया, किंतु जिस जिहादी संस्कृति को पाल-पोस कर बड़ा किया गया वही आज पाकिस्तान के विनाश का कारण भी बन रही है।
सन 47 में रक्तरंजित बंटवारे के बाद दो स्वतंत्र देश बने। आज पाकिस्तान की उपलब्धि क्या है? भारत में जहां एक ऊर्जावान प्रजातंत्र और जीवंत संविधान है वहीं पाकिस्तान में प्रजातंत्र की आड़ में सैन्यतंत्र और संविधान के नाम पर कई संस्करण हैं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिंदू-सिख साल दर साल घटते जा रहे हैं। भारतीय महाद्वीप के जिस क्षेत्र में वैदिक ऋचाएं लिखी गईं, वहां उस संस्कृति और दर्शन के भग्नावशेष भी नहीं हैं। आज जहां भारत एक आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है वहीं मध्यकालीन मानसिकता और मजहबी कट्टरपंथ से बंधे होने के दुष्परिणाम के कारण पाकिस्तान बदहाल है। खुद पाकिस्तान के अंदर कई पाकिस्तानों का वजूद है। पाकिस्तान ने कश्मीर को लेकर अपने अड़ियल रवैये में कोई बदलाव नहीं आने की घोषणा भी की है। भारत के प्रति पाकिस्तान का वर्तमान रवैया वस्तुत: उसके अपने अंतर्विरोधों से ही पैदा हुआ है, इसलिए खोल बदलने से खाल बदलने की आशा करना मूर्खता ही होगी।
लेखक बलबीर पुंज भाजपा के राज्यसभा सांसद हैं
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