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सियाचीन पर जमी बर्फ टूटेगी!

जागरण मेहमान कोना
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Subhash Gatadeभारत-पाकिस्तान के अमनपसंद नागरिकों और संगठनों की साझा पहल पर बने पाकिस्तान-इंडिया पीपुल्स फोरम फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी का दिसंबर में भारत में प्रस्तावित सम्मेलन आपसी सामंजस्य के नए वातावरण में होगा, इसकी आयोजकों ने कल्पना भी नहीं की होगी। एक के बाद एक दोनों मुल्कों की तरफ से संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिशें और आपस के अनसुलझे विवादों को थोड़ा अलग करके बाकी मुद्दों पर सहमति बनाने के किए जा रहे प्रयास, बहुत लंबे समय बाद ऐसा दौर देखा जा रहा है। भारत के फौजी हेलीकॉप्टर के पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश और चंद घंटों के अंदर उसकी सकुशल वापसी और इस घटना के महज दो दिन पहले संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद में अस्थायी सदस्य के तौर पर पाकिस्तान का चुनाव और इसमें भारत के वोट ने निभाई निर्णायक भूमिका आदि मसलों पर चर्चा चल ही रही थी कि हम अब इस खबर से रूबरू हैं कि पाकिस्तान भारत को सबसे तरजीही राष्ट्र का दर्जा देने जा रहा है। फिलवक्त अंदरूनी दबावों के चलते पाकिस्तान सरकार के आधिकारिक बयानों से उजागर हो रही विभ्रम की स्थिति की चर्चा भी चल रही है, मगर जानकार बता सकते हैं कि पिछले कई महीनों से चल रही चर्चा ने इसकी पृष्ठभूमि तैयार की है और पाकिस्तान के शासकों के अंदर भी यह एहसास बनता दिख रहा है कि कुछ नया करने की भी जरूरत है।


यों तो भारत-पाकिस्तान वर्ष 2004 से ही आपस में शांतिवार्ता की प्रक्रिया चला रहे हैं, जिसमें वर्ष 2008 के 26/11 के आतंकी हमले से रुकावट पैदा हुई थी, लेकिन अब लगता है कि दोनों पक्ष इसके प्रति गंभीर भी हैं। इसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता कि सबसे तरजीही राष्ट्र का आधिकारिक ऐलान होने के चंद रोज पहले पाकिस्तान की एक न्यूज एजेंसी ने यह रिपोर्ट प्रकाशित की थी कि पाक सरकार ने ईरानी सरकार से करार तोड़ कर भारत से 500 मेगावाट बिजली आयात करने का फैसला लिया है। द नेशन अखबार ने सरकार को आड़े हाथों लेते हुए संपादकीय लिखा कि बिजली आयात जैसे मसलों से भारत के साथ रिश्ते सुधारने की तमाम कोशिशें बेमानी हैं, क्योंकि कश्मीर मसले का हल अभी नहीं हुआ है। निश्चित ही हम देख सकते हैं कि दोनों तरफ ऐसे एकांगी तत्व मौजूद हैं, जो मसला-ए-कश्मीर पर पहले दोनों मुल्कों के बीच निर्णायक पहल चाहते हैं और उसके बाद ही किसी मसले पर राय मशविरा जारी रखना चाहते हैं। यह अकारण नहीं कि पिछले दिनों इस्लामाबाद स्थित आइएसआइ के दफ्तर से थोड़ी दूर मैदान में लश्कर-ए-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन जैसे जिहादी संगठनों के आह्वान पर इस मसले पर आम सभा भी बुलाई गई थी, जिसमें प्रतिबंधित जैश-ए-मोहम्मद तथा अल बदर मुजाहिदीन के नुमाइंदों ने भी संबोधित किया था। सभा के जरिये पाकिस्तान सरकार के इस कदम की मुखालफत की गई थी, जिसके तहत उसने भारत को सबसे तरजीही राष्ट्र का दर्जा दिया है।


अर्थशास्ति्रयों के मुताबिक पाकिस्तान की कैबिनेट द्वारा लिया गया यह फैसला दोनों मुल्कों के बीच व्यापार को लगभग तीन गुना बढ़ सकता है। ध्यान रहे कि भारत ने पहले ही (1995) पाकिस्तान को एमएफएन का दर्जा दिया है और उसने हाल में विश्व व्यापार संगठन मंच पर यूरोपीय संघ के बाजार तक पहुंच की उसकी कोशिशों के प्रति अपनी आपत्ति भी वापस ली है। लाजिमी है कि इन दोनों कदमों से यह उम्मीद की जा रही है कि भारत-पाक के बीच दोतरफा व्यापार के नए रास्ते खुलेंगे। कुछ लोगों के मुताबिक पाकिस्तान के बदले रुख का वास्तविक कारण यही है कि पाकिस्तान की सेना अपनी पूर्वी सीमाओं पर फिलहाल शांति चाहती है, क्योंकि वह खैबर पख्तून और एफएटीए इलाके में तालिबान के खिलाफ युद्ध में मुब्तिला है। हक्कानी नेटवर्क को खत्म करने के लिए अमेरिका की तरफ से उस पर जबरदस्त दबाव भी पड़ रहा है। मगर दोनों मुल्कों में हमेशा अमन के ख्वाहिशमंदों की बातों पर गौर करें तो इसका विश्लेषण ऐसे किया जाना चाहिए कि एक ऐसी पीढ़ी दोनों स्थानों पर निर्णायक भूमिका में पहुंच रही है, जो बंटवारे के बोझ से मुक्त रहकर नए धरातल पर संबंध कायम करना चाह रही है। जो भी हो, अगर संबंध बेहतर हो रहे हैं तो यह हर मायने में अच्छा है। कई सारी मानवीय त्रासदियों को जो हमारे सामने घटित हो रही हैं, उनसे हम मुक्ति पा सकते हैं।


लेखक सुभाष गाताडे स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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