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कराची के इब्राहिम हैदरी गांव जिसकी आबादी एक लाख से ज्यादा है। यहां रह रही 15 साल की सुगरा ने अपने वालिद अचर को सिर्फ तस्वीर में ही देखा है। सुगरा की मां जन्ना बताती है कि जब सुगरा तीन माह की थी, तभी मछली पकड़ने गए उसके पति को बाकी साथियों के साथ भारतीय कोस्ट गार्ड के सिपाहियों ने गिरफ्तार किया था। वजह बताई गई कि वह भारत की सीमा में घुस आया था। इस घटना को 15 साल होने को हैं और जन्ना एवं सुगरा की जिंदगी अब भी वीरान है। पहले अहमदाबाद जेल में बंद अचर के खत भी आते थे, मगर अब वह भी बंद हो गया। किसी ने जन्ना को बताया है कि अहमदाबाद में आए भूकंप में अचर की भी मौत हो गई। विडंबना यही है कि ऐसा केवल अकेली सुगरा और जन्ना की कहानी नहीं है। पिछले दिनों भारतीय मीडियाकर्मियों के एक शिष्टमंडल ने ऐसी कई सुगराओं से मुलाकात की थी, जिसमें बगल के रेहड़ी गांव की हुस्ना भी शामिल थी। उसके मछुआरे पिता और उनके चार रिश्तेदार पिछले दस साल से भारत की जेलों में बंद हैं।
पाकिस्तानी फिशरफोक फोरम के मोहम्मद अली शाह बताते हैं कि अचर जैसे 200 से अधिक मछुआरे भारत के गुजरात या कच्छ की जेलों में बंद हैं जिनमें से कई 14-15 साल से सलाखों के पीछे हैं तो पाकिस्तान की जेलों में भी 300 से अधिक भारतीय मछुआरे इसी तरह अभिशप्त जिंदगी बिताने के लिए मजबूर हैं।। दोनों मुल्कों के बीच आर्थिक क्षेत्र को रेखांकित करने और सिंध के उद्गम डेल्टा में 60 मील लंबे मुहाने जिसे सर क्रीक के नाम से जाना जाता है, को लेकर जारी मुश्किलों का कहर इन सैकड़ों परिवारों पर गाज बनकर गिर रहा है। पिछले दिनों पाकिस्तानी अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किए गए 123 भारतीय मछुआरों के चलते यह मामला नए सिरे से सुर्खियों में बना हुआ है। इस साल की शुरुआत में भारत के गृहमंत्रालय और पाकिस्तान के आंतरिक मंत्रालय की तरफ से जारी साझा बयान में भले ही कहा गया कि इस किस्म के आकस्मिक आगंतुकों के मसले पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया जाना चाहिए। मगर इसके बावजूद जमीनी हालात पर कोई फर्क नहीं पड़ा है। भारत-पाकिस्तान ज्यूडिशियल कमिटी ऑन प्रिजनर्स ने पिछले दिनों यह भी बताया कि 570 भारतीय बंदी और 200 पाकिस्तानी बंदी फिलहाल दोनों देशों के अधिकारियों के कब्जे में हैं।
पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ लेबर एजुकेशन एंड रिसर्च की तरफ से पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है कि वह अपने जेलों से भारतीय मछुआरों को रिहा कर दें, मगर आज हालत यह है कि मछली पकड़कर किसी तरह जिंदगी गुजारने वाले सागर की लहरों से जूझने के लिए तैयार मेहनतकश दोनों देशों के हुक्मरानों की आपसी सियासत के मोहरे बने हुए हैं। यहां इस बात से भी फर्क नहीं पड़ता कि दोनों देशों की अदालतों ने यह फैसला सुनाया है कि छह माह से अधिक वक्त तक ऐसे लोगों को जेलों में नहीं रखा जाना चाहिए। मगर इनकी आवाज बेहतर तरीके से बुलंद करने वाले लोग नही हैं। पिछले दिनों खबर आई थी कि पाकिस्तान कैबिनेट ने भारत को विशेष तरजीही राष्ट्र का दर्जा दिया है। जानकारों का कहना है कि विशेष तरजीही राष्ट्र का दर्जा प्रदान करने जैसे कदम से दोनों मुल्कों के बीच व्यापार लगभग तीन गुना बढ़ सकता है। वैसे इस बात के संकेत पहले से मिलने शुरू हुए थे कि भारत और पाकिस्तान दोनों तरफ यह अहसास बन रहा है कि आपस में बहुत विवादित चले आ रहे मुद्दों को एक तरह से बाईपास करते हुए क्या हम संबंधों को अधिक सामान्य नहीं बना सकते हैं। मिसाल के तौर पर अक्टूबर माह के आखिर में कराची में कानूनी विशेषज्ञों एवं मजदूर अधिकारों के लिए संघर्षरत लोगों का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें रिटायर्ड न्यायाधीश नासिर असलम जाहिद जैसे कानूनविदें ने हिस्सेदारी की, जो बंदियों पर बनी भारत-पाकिस्तान साझा न्यायिक कमेटी के अहम सदस्य हैं। इस सम्मेलन में भारत एवं पाकिस्तान के रिश्तों के उतार-चढ़ाव के नाहक शिकार होने वाले एक ऐसे समुदाय की पीड़ा की ओर इशारा किया गया, जिसे मुखर समर्थन मिलना अक्सर असंभव जान पड़ता है। सम्मेलन में बताया गया कि किस तरह दोनों देशों की जेलों में दोनों तरफ के मछुआरे सालों साल पड़े रहते हैं।
कराची के इस सम्मेलन के चंद रोज पहले भारत के फौजी हेलीकॉप्टर का मामला भी हुआ था। वह जब पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गया तो चंद घंटों के अंदर उसकी वापसी हो गई थी। अगर संबंधों में तनाव होता या आपसी सामंजस्य कायम करने की भावना नहीं होती तो कम से कम यही होता कि हेलीकॉप्टर में सवार चार अफसरों को तत्काल बंदी बना लिया जाता। लेकिन दोनों ही पक्षों ने संयम का परिचय दिया और मामले को तत्काल सुलझा लिया। सवाल उठता है कि मछुआरों को लेकर दोनों देश इसी किस्म का सामंजस्य क्यों नहीं बनाते? यह सिर्फ मछुआरों की जिंदगी पर कहर का मसला नहीं है। अगर संबंध बेहतर हों तो यह हर मायने में अच्छा है, क्योंकि कई मानवीय त्रासदियां जो हमारे सामने घटित हो रही हैं, उनसे हम मुक्ति पा सकते हैं। भारत पाकिस्तान के तनावपूर्ण रिश्तों की याद दिलाता है सियाचिन मसला, जिसे दुनिया की सबसे ऊंचाई पर स्थित युद्धभूमि भी कहा जाता है। वर्ष 1984 से इस इलाके पर अपना नियंत्रण कायम करने के लिए दोनों हुकूमतों की तरफ से कोशिशें होती हैं। हजारों की तादाद में दोनों तरफ से सैनिक एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते हुए नहीं, ठंड या शीतदंश के चलते मारे गए हैं। वर्ष 2004 से दोनों देशों ने सियाचिन में युद्धविराम घोषित किया है, मगर सेनाएं बदस्तूर मौजूद हैं। क्या ऐसा नहीं हो सकता कि सियाचिन में अमन बनाकर हम दुनिया में युद्धरत देशों की सीमाओं पर बने ऐसे अमन पार्को में अपना नाम भी शुमार कर लें और आपसी रिश्तों मे एक नया पन्ना पलटें।
दिसंबर का आखिरी सप्ताह भारत-पाकिस्तान के रिश्तों को लेकर इस मायने में अहम है कि चार साल के अंतराल पर दोनों देशों के प्रतिनिधि इस्लामाबाद में मिलने वाले हैं तथा नाभिकीय तथा अन्य मामलों को लेकर परस्पर विश्वास कायम करने के कदमों पर विचार करने वाले हैं। इस बैठक के दो दिन बाद ही इस माह के अंत में भारत-पाकिस्तान के शांति प्रेमी नागरिकों की साझा पहल पर बनी पाकिस्तान इंडिया पीपुल्स फोरम फॉर पीस एंड डेमोक्रेसी का पांचवां सम्मेलन छह साल के अंतराल के बाद इलाहाबाद में होने जा रहा है। दोनों देशों के बीच बढ़ते विश्वास का आलम यह है कि इस बार पाकिस्तान के तीन सौ नागरिकों को सम्मेलन में शामिल होने के लिए वीजा प्रदान किया गया है। तय माना जा सकता है कि दोनों देशों के अमन पसंद लोग जब जमा होंगे तो सुगरा और उसके जैसे तमाम किशोर-किशोरियों की हालत पर गौर करेंगे और यह संकल्प लेकर ही उठेंगे कि भविष्य में पानी में सरहद खींचने का कहर हम किसी और पर नहीं गिरने देंगे।
लेखक सुभाष गाताडे स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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