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नई रणनीति की जरूरत

जागरण मेहमान कोना
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नई दिल्ली के प्रति अपनी कभी नरम, कभी गरम कूटनीति के चलते लगता है कि इस्लामाबाद को रुख, सोच और दोहरेपन की तिहरी पेचीदगियों का सामना करना पड़ता है। पाकिस्तान का रुख बदलता रहता है और वह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन, कब और किन हालात में उसकी बागडोर संभालता है। सत्तारूढ़ प्रबुद्ध वर्ग की सोच, अकसर नकारात्मक संकेत भेजती है, खास तौर पर तब जब मेज के दूसरी ओर भारतीय उच्च अधिकारी बैठे हुए हों। जहां तक दोहरेपन की बात है, यह तो पाकिस्तानी राजनय की खासियत रही है, क्योंकि उसके कामकाज के सिद्धांत सर्वशक्तिमान सेना, आइएसआइ और इस्लामी प्रबुद्ध वर्ग द्वारा तय किए जाते हैं। इस्लामाबाद के साथ खुले दिमाग से सभी समस्याओं के समाधान के बारे में खास तौर से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बहुत उत्सुक हैं, लेकिन इसके लिए पाकिस्तान के नेताओं को अपनी सोच में जरूरी गंभीरता और ईमानदारी लानी होगी। यह भी बता दें कि अधिकांश भारतीयों का रुख उदार है और पाकिस्तान के उच्च राजनीतिक और नौकरशाही वर्ग के साथ वार्ता के अत्यंत निराशापूर्ण हो जाने पर भी वे उनकी भ्रमित सोच को झेल लेते हैं। इस्लामाबाद में हाल की सचिव स्तर की बातचीत को ही लें।


अजमेर-शरीफ की राष्ट्रपति जरदारी की यात्रा और फिर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ उनकी चर्चा के दौरान वीजा प्रक्रिया को सरल बनाने के बारे में सहमति बनी थी। यह भी माना गया था कि इस बारे में दोनों देशों के विदेश सचिव एक समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे। समझा जा रहा था कि इस्लामाबाद में दो दिन की वार्ता में इस प्रस्तावित समझौते पर मुहर लग जाएगी। लेकिन अचानक पाकिस्तानी पक्ष ने राजनीतिक स्तर पर इस पर हस्ताक्षर करने की मांग कर डाली। हम जानते हैं कि इस्लामाबाद का दिमाग कैसे काम करता है। वह सीधा रास्ता पकड़ने की बजाय टेड़ा-मेड़ा रास्ता अधिक पसंद करता है। जाहिर है कि वह अपना वही पुराना दोमुंहा खेल खेल रहा है, जिससे हमें जनरल कियानी के सियाचिन पत्ते की याद आ जाती है। पाकिस्तान ने सिर क्रीक पर 14 मई की निर्धारित वार्ता को रद करते हुए पहले सियाचिन पर बातचीत करने पर जोर दिया। रुख में इस बदलाव के कारण को समझना मुश्किल नहीं है।


भारत से संबंधित सभी राजनीतिक और सामरिक मामलों में पाकिस्तान के आर्मी चीफ जनरल कियानी की ही चलती है। सियाचिन के बारे में नई दिल्ली ने इस्लामाबाद को साफ-साफ बता दिया था कि सेनाएं हटाने पर चर्चा, सीमा पर दोनों पक्षों द्वारा वास्तविक जमीनी स्थिति रेखा के तय हो जाने के बाद ही की जाएगी, लेकिन हाल ही में सियाचिन में पाकिस्तान की ओर आई प्राकृतिक आपदा के बाद जनरल कियानी ने अचानक दोनों तरफ से सेनाएं हटाने का अपना प्रस्ताव सामने रख दिया। भारत इसे स्वीकार नहीं कर सकता। ऐसे सामरिक मामले आपस में जुड़े होते हैं और इन्हें अलग से नहीं निपटाया जा सकता। सिर क्रीक के बारे में अपने पूर्वी किनारे को फिर से चिह्नित किया है, जिसके बारे में उसने दलील दी है कि यह नाला अपनी जगह से करीब एक से डेढ़ किलोमीटर खिसक गया है। इसलिए उसने सटे हुए पीर सिनई नाले के मुहाने को भी अपने दावे में शामिल कर लिया है। भारत इसे स्वीकार नहीं कर सकता और उसकी सोच सही भी है। कुछ भी हो इन सभी मुद्दों से हम घूम-फिर कर वापस वहीं आ जाते हैं। फिलहाल 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमलों में शामिल मुख्य आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर पाकिस्तान के साथ गतिरोध बना हुआ है। भारत के धैर्य की भी एक सीमा है। बहुत हो चुका। इस्लामाबाद का सत्तारूढ़ वर्ग अपना दोहरा खेल जारी रखते हुए नई दिल्ली से कैसे उम्मीद कर सकता है कि वह जरूरी सामरिक मामलों पर पाकिस्तान की सनक को झेल लेगा। प्रधानमंत्री को इस्लामाबाद के साथ निर्णायक तथा कारगर ढंग से निपटने के लिए कोई नई रणनीति बनानी होगी।


लेखक हरी जयसिंह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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