Menu
blogid : 5736 postid : 1119

पाकिस्तान की नई शरारत

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

Rajeev sharmaदिल्ली हाईकोर्ट के बाहर 7 सितंबर को हुआ बम विस्फोट देसी आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन का एक और आतंकी हमला है। इसका अभी पता लगाया जाना शेष है कि इस संगठन को पाकिस्तानी प्रतिष्ठान से सहायता मिल रही है या नहीं। किंतु इसमें कोई संदेह नहीं है कि पाकिस्तान में आजकल जो खतरनाक गतिविधियां चल रही हैं, वे भारतीय सुरक्षा तंत्र के होश उड़ाने के लिए काफी हैं। पाकिस्तानी सेना अब चुपचाप वैश्विक आतंकी गुट जैशे-मोहम्मद को पुनर्जीवित करने में लगी है। इसके माध्यम से वह भारत, अफगानिस्तान और विश्व के अन्य भागों में आतंकी घटनाओं को अंजाम देकर आतंकवाद का एक और मोर्चा खोलना चाहती है। पाकिस्तान को 2003 से शांत पड़े जैशे-मोहम्मद को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई क्योंकि पाक सेना का वफादार आतंकी गुट लश्करे-तैयबा जबरदस्त वैश्विक दबाव में है। लश्करे-तैयबा के बाद जैशे-मोहम्मद आज पाकिस्तान का दूसरा सबसे बड़ा आतंकी गुट है।


लश्करे-तैयबा की तरह जैशे-मोहम्मद भी पाकिस्तानी सेना की पैदाइश है। लश्करे-तैयबा का गठन अफगान जिहाद के दौरान अरब नेतृत्व वाली मुजाहिद्दीन ब्रिगेड को पश्चिम से मिलने वाली मदद में सेंध लगाने के लिए किया गया था। दूसरी तरफ, जैशे-मोहम्मद का गठन पाक सेना-आइएसआइ द्वारा कराए गए कंधार अपहरण कांड के बाद दिसंबर 1999 में किया गया। इस घटना में भारत को तीन कुख्यात आतंकियों-मसूद अजहर, सैयद उमर शेख और मुश्ताक जरदार को छोड़ने को मजबूर होना पड़ा था। अजहर और शेख आइएसआइ द्वारा संचालित हरकुत उल अंसार के सदस्य थे और भारत में आतंकी गतिविधियों के लिए भेजे गए थे। रिहाई के बाद अजहर ने कराची में प्रेस कांफ्रेंस करके जैशे-मोहम्मद के गठन की खुलेआम घोषणा की थी। आइएसआइ में अजहर की कमान तत्कालीन राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के खासमखास इजाज शाह के हाथ में थी।


सन 2000 और 2001 में अजहर को दक्षिण और मध्य पंजाब से आतंकियों की भर्ती करने की अनुमति दी गई। उसने अपना हेडक्वार्टर बहावलपुर में बनाया। उसने आतंकियों को पाक अधिकृत कश्मीर तथा अन्य इलाकों में हरकत उल अंसार और हिजबुल मुजाहिद्दीन द्वारा चलाए जा रहे ट्रेनिंग सेंटरों में भी भेजा। आइएसआइ के सहयोग से अजहर के आदमियों की भारत में घुसपैठ कराई गई। इन आतंकियों ने भारत में घुसकर कोहराम मचाया और कश्मीर तथा देश के अन्य भागों में आत्मघाती हमलों तथा बम धमाकों से सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा दी। आइएसआइ ने जैशे-मोहम्मद को भी भारत में आतंकी हमले करने के लिए तैयार किया। इस तरह पाक सेना के हाथों में भारत को हजार जख्म देने के लिए दुधारी तलवार आ गई।


हालांकि, 2003 के अंत में कुछ ऐसी घटनाएं घटीं जिनसे इन संबंधों में खटास आ गया। जैशे-मोहम्मद राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की हत्या की साजिश में शामिल पाया गया। दिसंबर में जैशे-मोहम्मद के कुछ आतंकियों ने पाकिस्तानी वायुसेना की सहायता से मुशर्रफ को मारने के तीन प्रयास किए। तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल परवेज कियानी द्वारा की गई जांच में पता चला कि जैशे-मोहम्मद में कुछ राष्ट्रद्रोही तत्व भी शामिल हैं। तब जैशे-मोहम्मद और इसके नेता अजहर को अपनी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के आदेश दिए गए और वह बहावलपुर तक सिमटकर रह गया।


जैशे-मोहम्मद के दो साल तक हाशिये पर रहने के बाद कियानी ने आखिरकार प्रतिबंधों में कुछ ढील दे दी और उसे दिर और लोवर दिर जिले के खैबर भख्तुनख्वा क्षेत्र में अफगानिस्तान में लड़ रही नाटो सेना के खिलाफ नए कैडर को प्रशिक्षण देने के लिए प्रशिक्षण केंद्र चलाने की अनुमति दे दी। 2005 के भूकंप में अनेक प्रशिक्षण केंद्र नष्ट हो गए किंतु सेना ने जल्द ही इन गुटों के आतंकियों को नए ट्रेनिंग सेंटरों में भेजने की व्यवस्था कर दी। पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्टो के अनुसार, 2006 में पाक अधिकृत कश्मीर और कबीलाई इलाकों में एक विशाल ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना की गई ताकि नाटो सेना के खिलाफ तालिबान के नए रंगरूटों को तैयार किया जा सके।


पाक सेना तालिबान के संगठन और क्षमता को बढ़ाने के लिए बहुत चिंतित थी। सेना ने कुछ प्रशिक्षण शिविरों को जैशे-मोहम्मद के ट्रेनरों के हवाले कर दिया। दुनिया की नजरों में धूल झोंककर इस नए आतंकी समूह के ढांचे को खड़ा करने के लिए भारी मात्रा में पैसा और हथियार उपलब्ध कराए गए। जैशे-मोहम्मद को पेशावर में नया समन्वय केंद्र खोलने की भी अनुमति दी गई, जहां तालिबानी लड़ाकों की भर्ती, प्रशिक्षण और उन्हें लक्षित स्थानों तक भेजने की व्यवस्था की गई। गुआंतानामो फाइलों से स्पष्ट हो जाता है कि तालिबान को मजबूत करने में जैशे-मोहम्मद की क्या भूमिका रही है।


पिछले कुछ महीनों में जैशे-मोहम्मद का नाटकीय पुनर्जीवन हुआ है। इसका श्रेय पाकिस्तान के नागरिक और सैन्य प्रतिष्ठान की मूक सहमति को जाता है। अब जैशे-मोहम्मद अपने गढ़ पंजाब में बड़े पैमाने पर भर्ती और वसूली अभियान चला रहा है। इसके भी प्रयास चल रहे हैं कि 2003 में प्रतिबंध लगने के बाद जिस कैडर ने जैशे-मोहम्मद से नाता तोड़ लिया था, उसे वापस जोड़ा जाए तथा प्रशिक्षण शिविर और भर्ती केंद्रों का नया ढांचा तैयार किया जाए। संगठन ने अपने अल रहमत ट्रस्ट को भी पुनर्जीवित किया है। शुरुआती वर्षो में इसी ट्रस्ट ने जैशे-मोहम्मद के वित्त पोषण में बड़ी भूमिका निभाई थी। यह ट्रस्ट मसूद अजहर के पिता अल्लाबख्श द्वारा चलाया जा रहा था। अब इसकी बागडोर मौलाना अशफाक अहमद के हाथ में है। अहमद ने हाल ही में पत्रकारों से कहा था कि ट्रस्ट पंजाब और पाक अधिकृत कश्मीर में खुलेआम पैसा जुटा रहा है और इसमें कोई रुकावट नहीं आ रही है।


कोहाट और हजारा क्षेत्र में गतिविधियां तेज करने के लिए जैशे-मोहम्मद पंजाब और पाक अधिकृत कश्मीर में नया ढांचा खड़ा कर रहा है। अरब देशों से पैसा जुटाने के लिए मसूद अजहर का छोटा भाई अमर अजहर सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों की यात्रा कर रहा है। ट्रस्ट की गतिविधियों से पुलिस और खुफिया एजेंसियां भलीभांति परिचित हैं और उन्होंने इसे धन वसूली की छूट दी हुई है। ट्रस्ट के अलावा दक्षिण और मध्य पंजाब की मस्जिदों में जैशे-मोहम्मद के आदमी चंदा वसूल रहे हैं। जैशे-मोहम्मद पाकिस्तान के आतंकवाद और आतंकी समूहों पर अंकुश लगाने की प्रतिबद्धता पर भी गंभीर सवाल उठा रहा है।


लेखक राजीव शर्मा वरिष्ठ स्तंभकार हैं


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh