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पत्र, जो अज्ञेय ने उन्हें लिखे थे

जागरण मेहमान कोना
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समय पूरी तरह बदल चुका है। आज जमाना फोन-वार्ता से भी बहुत आगे बढ़कर ई-मेल और एसएमएस के त्वरित संप्रेषण वाले युग में पहुंच गया है। इतना होने के बावजूद गंभीर चर्चा और विमर्श आज भी पत्रों के जरिये ही संभव हो सकता है, जिसे अखबारों, पत्रिकाओं और शोध-पत्रों में संपादक के नाम पत्रों में देखा जा सकता है। यही वजह है कि पत्रों का महत्व कभी खत्म नहींहोगा, खासकर संजीदा लोग अपनी बात पत्रों के जरिये लिखकर ही कहते रहेंगे। किसी के हाथों से लिखे गए पत्र और उसके हस्ताक्षर में जो सम्मोहन होता है, वह ई-मेल और एसएमएस में कहां! और बात जब सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय जैसे बड़े सर्जक के पत्रों और उनके हस्ताक्षरों की हो, तो फिर कहने ही क्या। अज्ञेय अपने समकालीनों को अक्सर पत्र लिखा करते थे।


अज्ञेय जन्मशती में भी उनके पत्रों का संचयन नहीं छपा तो कवि-आलोचक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने उनके तीन सौ से अधिक पत्र एकत्र कर अज्ञेय पत्रावली तैयार की, जो हाल ही में छपी है। इस पत्रावली में मुक्तिबोध और धर्मवीर भारती जैसे बड़े-बड़े लेखकों-संपादकों को लिखे अज्ञेय के दुर्लभ पत्र भी संग्रहीत किए गए हैं। सामान्य लोगों के जीवन में पत्रों का महत्व तो होता ही है, लेकिन अज्ञेय जैसे लेखक के पत्र पाकर लोग खुद को गौरवान्वित महसूस करते थे। उनके पत्रों से उनके स्वभाव का तो पता चलता ही है, उनकी तत्कालीन मन:स्थिति की जानकारी भी मिल जाती है। अज्ञेय के पत्रों से दूसरे लेखकों से उनके संबंध और उनकी रचनाओं के बारे में उनकी राय भी जानी जा सकती है। उस समय चल रहे वाद-विवाद पर वे क्या सोचते और चाहते रहे, यह भी अज्ञेय के पत्र पढ़कर जाना जा सकता है। पत्रों में अज्ञेय जैसे पत्र लेखक के व्यक्तिगत जीवन के कुछ सूत्र भी पकड़ में आ जाते हैं और कृतियों की कुछ रहस्यमय बातों का उद्घाटन भी हो जाता है। लेखकों के पत्र एक तरह से उनकी आत्मकथा होते हैं, जिनमें उनकी व्यथा भी शामिल होती है और अज्ञेय की तो बात ही निराली थी। अनेक पत्र-पत्रिकाओं के वे संपादक रहे, जिनके जरिये उन्होंने हजारों लेखकों को प्रकाशन मंच तो प्रदान किया ही, अपने गतिशील व्यक्तित्व से अनेक साहित्यिक आयोजन भी किए, जिसमें देशभर के लेखक शिरकत करते रहे। उन लेखकों से उनका आत्मीय लगाव और संपर्क रहा और उन्हें उन्होंने समय-समय पर ढेर सारे पत्र लिखे। उनमें से 343 पत्र विश्वनाथ प्रसाद तिवारी को हासिल हो गए, जिन्हें उन्होंने बड़े जतन से अज्ञेय पत्रावली के रूप में पाठकों को सौंप दिया है।


अज्ञेय पत्रावली में जिन सर्जकों को लिखे पत्र शामिल हैं, वे इस प्रकार है : अमृतलाल नागर, इंद्रनाथ मदान, कमलकिशोर गोयनका, कमलकांत बुधकर, कुमार विमल, केदारनाथ अग्रवाल, कुंवर नारायण, गिरिजाकुमार माथुर, गिरिराज किशोर, गोविंद मिश्र, नंदकिशोर आचार्य, नामवर सिंह, परमानंद श्रीवास्तव, प्रभाकर श्रोत्रिय, रमेशचंद्र शाह, रामकुमार, राजी सेठ, राजेंद्र उपाध्याय, विजयमोहन सिंह तथा सुमित्रानंदन पंत आदि। निश्चित रूप से इन बड़े सर्जकों को लिखे गए अज्ञेय के पत्रों में बहुत कुछ ऐसा होगा, जिसमें उनका युग बोल रहा होगा। इसलिए इनका संग्रह और प्रकाशन जरूरी ही नहीं, अनिवार्य भी है।



अज्ञेय पत्रावली की भूमिका में तिवारी जी ने लिखा है कि अज्ञेय के पत्रों से जाहिर है कि उनका जीवन एक अति व्यस्त लेखक का था, जो निरंतर अपने लेखन, संपादन और देश-विदेश की यात्राओं में सक्रिय रहा। अधिकांश पत्रों में अज्ञेय अपनी किसी लेखन योजना, किसी संपादन योजना या साहित्यिक आयोजन की चर्चा करते हैं। किसी से लेख मांगते हैं या किसी को लेख भेजने में अपनी असमर्थता जाहिर करते हैं। अपनी यात्राओं में भी वे लगातार पढ़ते-लिखते हुए अपने लेखन-संबंधी वादे पूरे करने के लिए लोगों को उत्साहित करते रहते हैं। भूमिका में आगे वे लिखते हैं कि जय जानकी यात्रा, भागवत भूमि यात्रा और वत्सलनिधि की ओर से अनेक लेखक शिविरों के कार्यक्रम अज्ञेय ने संपन्न किए थे, जिनका उल्लेख अनेक पत्रों में है। सियाराम पथ यात्रा और भागवतभूमि यात्रा के लिए प्रगतिशील लोग उनका मजाक भी उड़ाते रहे, लेकिन ये यात्राएं उनकी गहरी सांस्कृतिक दृष्टि को रेखांकित करती हैं।



जनकपुर, शृंगवेरपुर, कौशांबी, राजापुर तथा द्वारका आदि भारतीय संस्कृति, इतिहास और साहित्य के महत्वपूर्ण स्थान हैं। इन स्थानों की यात्रा मास्को, लंदन और अमेरिका की यात्राओं से कम महत्वपूर्ण क्यों मानी जानी चाहिए? अज्ञेय पत्रावली के संपादक विश्वनाथप्रसाद तिवारी व्यास सम्मान से तो अलंकृत हैं ही, उन्हें रूस का पुश्किन पुरस्कार मिला तो उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने साहित्य भूषण सम्मान प्रदान किया है। बहुप्रतिष्ठित आलोचना पत्रिका दस्तावेज के संपादक विश्वनाथ तिवारी ऐसे पहले हिंदी लेखक हैं, जो साहित्य अकादमी के उपाध्यक्ष चुने गए। काव्य सृजन और आलोचना के साथ-साथ उन्होंने मनभावन यात्रा वृत्तांत भी लिखे हैं और उनका वार्ता संग्रह भी छपा है। दस्तावेज में सैकड़ों लेखकों द्वारा समकालीन लेखकों को लिखे गए हजारों पत्र उन्होंने प्रकाशित किए, जिन्हें अब वह पुस्तक का रूप देने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। वह उन सैकड़ों पत्रों को भी पुस्तक का रूप दे रहे हैं, जो देश-विदेश के लेखकों ने खुद उन्हें लिखे हैं। उम्मीद है कि निकट भविष्य में सुधी पाठकों को वे पत्र भी पढ़ने को मिलेंगे और इस बहाने कुछ और गंभीर भी विमर्श हो सकेगा।




इस लेख के लेखक बलराम हैं



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