Menu
blogid : 5736 postid : 5828

हक की लड़ाई

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

लंबी मशक्कत और जद्दोजहद के बाद आखिरकार नारायण दत्त तिवारी ने अपने खून का सैंपल दे ही दिया। कोर्ट में रोहित शेखर की लंबी लड़ाई के बाद नारायण दत्त तिवारी खून का सैंपल देने को मजबूर हुए। रोहित का दावा है कि तिवारी उनके पिता हैं। अब जल्द ही इस मामले में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। पर विडंबना देखिए कि भले ही यह साबित हो जाए कि रोहित नारायण दत्त तिवारी की संतान हैं, उन्हें तिवारी की संपत्ति में हक नहीं मिलेगा। दरअसल कानून विवाह संस्था से बाहर पैदा हुए बच्चों को अवैध मानता है, इसलिए उन्हें पिता की संपत्ति में कोई हक नहीं मिलता। महत्वपूर्ण है कि पैतृक संपत्ति पर हक के लिए वैध संतान और वैध संतान के लिए वैध विवाह होना जरूरी है, इसलिए पिता के कानूनी वारिस नहीं हो सकते। जिन मामलों में बच्चों को अपने पिता की संपत्ति में अधिकार नहीं मिलता, उनमें महिलाओं को भी उस इंसान की संपत्ति में किसी तरह का हक नहीं मिलता, जिन्होंने विवाह संस्था से बाहर रहकर किसी की संतान को जन्म दिया। सरकार को अब वैध और अवैध संतान के बीच के अंतर को खत्म करना होगा। तभी विवाह संस्था से बाहर जन्म लेने वाले बच्चों को अपने पिता की संपत्ति में हिस्सा मिल पाएगा। इसमें भी कोई शक नहीं है कि हाल ही में औरतों के हक में कुछ फैसले आए हैं।


उदाहरण के तौर पर तलाक के बाद औरत को अपने पति की संपति में हक मिलेगा। एक ताजा अध्ययन से पता चला है कि ग्रामीण भारत की मात्र सात फीसदी औरतों का ही संपत्ति पर मालिकाना हक है। ऐसे में यह फैसला महिलाओं के लिए बेहद उपयोगी सिद्ध होगा। बेशक, सरकार और कोर्ट ने औरतों के हक में हाल के दौर में कुछ अहम फैसले लिए। उनसे पहली नजर में यह संदेश गया कि औरतों के सशक्तीकरण की दिशा में बड़ी पहल हुई है। दरअसल, सरकार ने पैतृक संपत्ति में बेटी को उसका हक दिलवाने के लिहाज से हिंदू उत्तराधिकार कानून-2005 में संशोधन किया। यह बड़ा कदम था। तब लग रहा था कि औरतों/ लड़कियों को पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलने लगेगा। पहले सब कुछ बेटों को मिल जाता था। इसमें संदेह नहीं कि सरकार की पहल और सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले के चलते हिंदू औरत अब पहले से बेहतर हालात में होगी। कोर्ट के फैसले से उसे तलाक के बाद भी एक तय समय तक अपने पति के घर में रहने का हक मिलता है। हां, अगर घर उसके सास-ससुर का है तो उसके सामने दिक्कत है। तब उसे उस घर को छोड़ना होगा। दरअसल, भारत में आमतौर पर शादी के सालों बाद तक लड़का उसी घर में रहता है, जो उसके माता-पिता का होता है।


जाहिर है, तलाक के बाद हिंदू महिला अपने सास-ससुर के घर में तो एक दिन भी नहीं रह सकेगी। अगर रहती है, तो उनके रहमो-करम पर ही। इस बात की संभावना कम है कि तलाकशुदा बहू को कोई भी सास-ससुर अपने पास रखेगा। इस प्रकार हिंदू उत्तराधिकार संशोधन कानून से भी औरत को उसका वाजिब हक नहीं मिल रहा। जब तक औरत/बेटी को पिता अपनी संपत्ति में हक देना शुरू नहीं करेगा तब उसे आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने की लड़ाई अधूरी रहेगी। पिता की स्वअर्जित संपत्ति में बेटी को उसी हालत में हक मिल रहा है, जबकि उसने (पिता) अपनी वसीयत न छोड़ी हो। आमतौर पर पिता अपनी संपत्ति में अपनी पुत्री को कुछ नहीं देता। बेशक, बेटों की तरह पिता की विरासत में लड़कियों को बराबर का अधिकार तो हासिल हो गया है, पर इसके साथ इस तथ्य पर भी ध्यान दिए जाने की जरूरत है कि बेटों की तरह बेटियों की हिस्सेदारी में ही नहीं, बल्कि पिता के उत्तरदायित्व (कर्ज) में भी हिस्सेदारी होगी। हालांकि महिलाओं को समता दिलाने के लिए सरकार और कोर्ट सक्रिय हैं, पर रोहित शेखर जैसे लोगों और उनकी मां जैसी महिलाओं का वास्तविक हक अब भी कोसो दूर है।


लेखिका गीता शुक्ला स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


हिन्दी ब्लॉग, बेस्ट ब्लॉग, बेहतर ब्लॉग, चर्चित ब्लॉग, ब्लॉग, ब्लॉग लेखन, लेखक ब्लॉग, Hindi blog, best blog, celebrity blog, famous blog, blog writing, popular blogs, blogger, blog sites, make a blog, best blog sites, creating a blog, google blog, write blog

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh