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मणिपुर के आतंकवादी संगठन-पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के दो सदस्यों से हुई पूछताछ में जिन बातों का खुलासा हुआ है, वे भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे की घंटी के समान हैं, किंतु विडंबना यह है कि भारत का सत्ता अधिष्ठान लंबे समय से इन खतरों की अनदेखी करता आ रहा है। क्यों? पिछले दिनों दिल्ली पुलिस के हत्थे चढ़े पीएलए के दो सदस्यों से हुई पूछताछ से पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी-आइएसआइ और चीन के साथ नक्सलवादियों व पूर्वोत्तर के अलगाववादी संगठनों की साठगांठ का खुलासा हुआ है। पाक अधिकृत कश्मीर में सक्रिय आतंकवादी संगठनों का प्रभाव भारत में फैलाने के लिए आइएसआइ नक्सलवादियों व माओवादियों के साथ जहां घनिष्ठ संबंध कायम कर रही है वहीं चीन न केवल पूर्वोत्तर में सक्रिय अलगाववादी संगठनों के कुछ नेताओं को अपने देश में संरक्षण प्रदान कर रहा है, बल्कि भारत को अस्थिर करने के लिए उन्हें शस्त्र भी उपलब्ध करा रहा है। गिरफ्तार लोगों के पास से जब्त दस्तावेजों से पीएलए द्वारा माओवादियों के लिए चलाए जा रहे प्रशिक्षण शिविरों का भी खुलासा हुआ है। झारखंड और उड़ीसा के घने जंगलों में चलाए जा रहे इन प्रशिक्षण केंद्रों का वित्तपोषण आइएसआइ करती है।
यह स्थापित हो चुका है कि बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान में जिहादियों को प्रशिक्षण व ठिकाना उपलब्ध कराने के पीछे चीन का बड़ा हाथ है। भारत में सक्रिय उल्फा, नक्सली और माओवादियों के साथ इस्लामी अलगाववादियों को प्रशिक्षण व वित्तीय सहायता उपलब्ध कराने में पाकिस्तान के साथ चीन का भी योगदान है। कुछ समय पूर्व पूर्वोत्तर प्रांतों में सक्रिय पांच आतंकी समूहों के एकीकरण की प्रक्रिया म्यांमार की धरती पर चीनी खुफिया विभाग के सौजन्य से ही संपन्न हुई थी। इस एकीकरण का एजेंडा ‘स्वतंत्र पूर्वोत्तर देश’ का सृजन निर्धारित किया गया था। पूर्वोत्तर में सक्रिय आतंकी संगठनों के नेताओं की इस बैठक में सीपीआइ के नेताओं के शामिल होने की भी पुख्ता खबर खुफिया एजेंसियों को है। ‘स्वतंत्र संप्रभु पूर्वोत्तर देश’ के गठन की प्रेरणा के पीछे चीनी खुफिया अधिकारियों और म्यांमार सरकार के सैन्य अधिकारियों का हाथ होने के पुख्ता प्रमाण हैं। भारत को अस्थिर करने में परोक्ष रूप से चीन निरंतर जुटा है। भारत को ‘हजार घाव देकर उसे टुकड़ों में बांटना’ यदि पाकिस्तान का घोषित एजेंडा है तो उस एजेंडे को अमलीजामा पहनाना चीन की अघोषित नीति है। इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि अलग-अलग कारणों से भारत को अस्थिर व खंडित करने में लगे संगठनों को एक कड़ी में जोड़ने, उनके बीच बेहतर समन्वय कायम करने और उन्हें सैन्य व वैचारिक अस्त्र उपलब्ध कराने के पीछे चीन का हाथ है।
नेपाल में चीन ने माओवादियों के सहयोग से एक ऐसा वर्ग पोषित किया है, जो घोर भारत विरोधी और चीनपरस्त है। भारत की अर्थव्यवस्था को तबाह करने के लिए चीनी तकनीक से बने जाली नोटों की खेप पाकिस्तान से निरंतर आ रही है। भारत के औषध कारोबार को क्षति पहुंचाने के लिए चीन में नकली दवाइयां बनाई जा रही हैं और उन पर ‘मेड इन इंडिया’ का लेबल लगाकर दूसरे देशों में बेचा जा रहा है। ऐसे में चीन की कुटिलता और उसकी साम्राज्यवादी मंशा से आंख मूंदना सन बासठ की गलती दोहराने के समान है। देश के कई भागों में अलगाववाद चरम पर है और आतंकवाद से आम आदमी भयभीत है। राष्ट्र की आंतरिक सुरक्षा के लिए नक्सलवाद गंभीर चुनौती है तो पूर्वोत्तर के राज्यों में व्याप्त अलगाववाद देश की अखंडता के लिए खतरा बन चुका है। इन समस्याओं से निबटने में सरकार जिस अदूरदर्शिता का परिचय दे रही है उसके कारण ही देश के दुश्मनों को अपने एजेंडे को साकार करने में मदद भी मिल रही है। कांग्रेस अपने अल्पकालीन क्षुद्र राजनीतिक उद्देश्य के लिए समय-समय पर राष्ट्रविरोधी ताकतों के साथ हाथ मिलाने से परहेज नहीं करती। पंजाब में खालिस्तान की समस्या ने भी तब विकराल रूप लिया था, जब कांग्रेस ने अकाली-भाजपा गठबंधन को हाशिए पर डालने के लिए भिंडरावाले को उभारा था। आश्चर्य नहीं कि आज एक बार फिर आइएसआइ पंजाब को अशांत करने के लिए ‘अलग खालिस्तान की मांग’ को जिंदा करने का प्रयास कर रही है।
मणिपुर भी इसी क्षुद्र मानसिकता के कारण त्रस्त है, क्योंकि वहां अपने दल को सत्ता पर बनाए रखने के लिए राज्य सरकार पीछे से इन अलगाववादियों से हाथ मिलाए बैठी है। एक कांग्रेसी मुख्यमंत्री के खिलाफ दो उग्रवादी संगठनों-कांगलेई यावोल कन्ना लूप को सन 2005 में 50 लाख और रिवोल्युशनरी पीपुल्स फ्रंट को एक करोड़ रुपये चंदा देने के आरोप हैं। केंद्रीय गृहमंत्री और प्रधानमंत्री कार्यालय को तत्कालीन सैन्य प्रमुख कर्नल जेजे सिंह ने यह सूचना भेजी थी, किंतु क्या मुख्यमंत्री के खिलाफ कोई कार्रवाई हुई? नक्सल-माओवाद के प्रति भी सरकार का नजरिया वास्तविकता से कोसों दूर है। पीएलए के सदस्यों से जब्त दस्तावेजों से इस बात की पुन: पुष्टि हुई है कि नक्सलियों-माओवादियों का लक्ष्य हिंसा के बल पर सत्ता को उखाड़ फेंकना है और वे सन 2050 तक इस लक्ष्य को प्राप्त कर लेने का दावा करते हैं, किंतु सरकार इसे महज सामाजिक-आर्थिक समस्या मानती है। जिस सर्वहारा के नाम पर पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से यह हिंसक आंदोलन प्रारंभ हुआ था, वह आज फिरौती और अपहरण का दूसरा नाम है। नक्सली वास्तव में भारत की बहुलतावादी संस्कृति व सनातनी मान्यताओं को ध्वस्त करना चाहते हैं। नेपाल के माओवादियों की तरह नक्सली इस देश की पहचान-परंपराओं को खत्म करना चाहते हैं।
पाकिस्तान का भारत विरोध जिस मानसिकता से प्रेरित है, जब तक उस कड़वे पक्ष को स्वीकार नहीं किया जाता, भारत आतंकवाद के हाथों लहूलुहान होने के लिए अभिशप्त रहेगा। भारत का रक्तरंजित बंटवारा जिस इस्लामी जुनून के कारण संभव हुआ, उसके बीज अभी भी मौजूद हैं। तभी कभी हिजबुल मुजाहिदीन तो कभी लश्करे-तैयबा इस देश में तबाही मचाने में सफल हो पा रहे हैं। पाकिस्तान आतंकवाद के रास्ते भारत की सनातन सभ्यता को मिटाने का प्रयास करता रहता है। पाकिस्तान के जन्म का मूल दर्शन ही उसे तालिबानीकरण की ओर निरंतर खींच रहा है। उसका अंतिम लक्ष्य पाकिस्तान की संपूर्ण व्यवस्था का तालिबानीकरण करना है। सरकार की लचर नीतियों के कारण भारत को लहूलुहान करने में सफल हो रहे अलगाववादी संगठनों के साथ भारत के शत्रुओं का सक्रिय होना स्वाभाविक है। चीन और पाकिस्तान के साथ संबंध कायम करना कूटनीतिक विवशता भले हो, किंतु उनके मूल चरित्र की अनदेखी आत्मघाती ही साबित होगी।
लेखक बलबीर पुंज भाजपा के राज्यसभा सदस्य हैं
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