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प्रधानमंत्री की जवाबदेही

जागरण मेहमान कोना
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Pradeep Singhमंत्रिमंडल और उसके मुखिया की कार्यशैली को संप्रग सरकार के संकट का कारण बता रहे है प्रदीप सिंह


केंद्र की सयुक्त प्रगतिशील गठबधन की सरकार का सकट गहराता जा रहा है। सकट 2जी घोटाले और उसकी खुलती नई-नई परतों की वजह से उतना नहीं है, जितना मत्रिमडल और उसके मुखिया की कार्यशैली के कारण है। क्या एक गैरराजनीतिक व्यक्ति को प्रधानमत्री बनाने का प्रयोग विफल हो रहा है? सप्रग-1 के नायक डॉ. मनमोहन सिह सप्रग-2 के खलनायक जैसे क्यों नजर आने लगे हैं? क्या यह विपक्ष के भ्रामक प्रचार का नतीजा है या मीडिया का इस सरकार से मोहभग का? क्या काग्रेस के अंदर ही ऐसे लोग हैं जो इस सरकार और मनमोहन सिह को कामयाब नहीं होने देना चाहते? क्या मनमोहन सिह के पहले कार्यकाल में काग्रेस का दबा हुआ अंदरूनी सघर्ष अब खुलकर सामने आने लगा है? क्या प्रधानमत्री की सरकार पर और काग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाधी की पार्टी पर पकड़ ढीली पड़ती जा रही है? ये ऐसे सवाल हैं जिनका जवाब हर कोई जानना चाहता है। सवाल दिन ब दिन बढ़ रहे हैं पर जवाब देने वाला कोई नजर नहीं आ रहा।


2जी घोटाले की आच अब पी चिदंबरम तक पहुंच गई है। सीबीआइ और केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि इस मामले में चिदंबरम की भूमिका की जाच करने की कोई जरूरत नहीं है। चिदंबरम के मामले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने वाले सुब्रमण्यम स्वामी का कहना है कि नए तथ्यों की रोशनी में जाच कराने में हर्ज क्या है। नया तथ्य वित्त मत्रालय का वह नोट है जो प्रधानमत्री के लिए तैयार किया गया था। इस नोट को तैयार करने में कई मत्रालय और कैबिनेट सचिव भी शामिल थे। प्रधानमत्री इस पूरे मामले का तथ्यात्मक ब्यौरा चाहते थे। इस नोट में कहा गया है कि तत्कालीन वित्तमत्री पी चिदंबरम ने कोशिश की होती तो घोटाले को रोका जा सकता था। अब यह किसी से छिपा नहीं है कि मनमोहन सरकार के दोनों वरिष्ठ मत्रियों प्रणब मुखर्जी और चिदंबरम आपस में बातचीत भी नहीं करते। इसलिए इस पूरे मामले को दोनों के आपसी झगड़े का नतीजा बताया जा रहा है। दोनों की सोनिया गाधी के दरबार में पेशी हो चुकी है। अब सोनिया गाधी और मनमोहन सिह की मुलाकात के बाद कोई अंतिम फैसला होगा। दोनों की नजर सुप्रीम कोर्ट के रुख पर है। लेकिन प्रधानमत्री ने मगलवार को विदेश से लौटते समय हवाई जहाज में मीडिया से कहा कि सरकार में सब ठीक-ठाक है। उन्होंने विपक्ष पर आरोप लगाया कि वह समय से पहले चुनाव के लिए बेचैन है और राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहा है। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा का कहना है कि यह काग्रेस का अंदरूनी मामला नहीं है जिसे पार्टी के नेता मिल बैठकर सुलझा लेंगे। यह जनता के पैसे का सवाल है।


इस नोट के आधार पर विपक्ष चिदंबरम का इस्तीफा माग रहा है। सवाल इस बात का नहीं है कि चिदंबरम राजा को रोक सकते थे या नहीं। सवाल इस बात का है कि प्रधानमत्री और उनके मत्रिमडल के सदस्य अपनी ही सरकार की बनाई नीति से सहमत हैं या नहीं। स्पेक्ट्रम आवटन के लिए पहले आओ पहले पाओ की नीति को लागू करने में तत्कालीन सचार मत्री ए राजा ने क्या गड़बड़ की यह एक अलग मामला है। उससे पहले सवाल है कि क्या तत्कालीन वित्तमत्री चिदंबरम और प्रधानमत्री मनमोहन सिह इस नीति से सहमत थे या हैं। आजाद भारत की यह पहली सरकार है जिसका मुखिया सहित हर सदस्य यह साबित करने में लगा है कि जो कुछ हुआ उसके लिए कम से कम वह जिम्मेदार नहीं है। सरकार के एक अहम नीतिगत फैसले की जिम्मेदारी लेने के लिए कोई तैयार नहीं है। किसी टीम का कप्तान टीम की जीत हार या उसके प्रदर्शन से अपने को कैसे अलग रख सकता है? ऐसी हालत में कैबिनेट के सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धात का क्या होगा? अगर सरकार के प्रशासनिक या नीतिगत फैसले की जिम्मेदारी और जवाबदेही से प्रधानमत्री मुक्त हैं तो सरकार में प्रधानमत्री की भूमिका क्या है? क्या प्रधानमत्री को उनकी ही सरकार से अलग करके देखा जा सकता है? प्रधानमत्री और उनके वरिष्ठ सहयोगी अपने इस व्यवहार से एक स्पष्ट सदेश दे रहे हैं कि इस नीतिगत फैसले में कुछ गड़बड़ जरूर है।


मनमोहन सिह सरकार के हर गलत फैसले से अपने को अलग दिखाने में सबसे आगे नजर आते हैं। ऐसे में दूसरे मत्री भी ऐसा ही करें तो क्या गलत है। चिदंबरम अगर आज सकट में है तो उसके लिए प्रणब मुखर्जी से उनकी प्रतिस्पर्धा या प्रधानमत्री बनने की उनकी महत्वाकाक्षा जिम्मेदार नहीं है। चिदंबरम इसलिए सकट में है कि प्रधानमत्री मनमोहन सिह अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं। जब ए राजा स्पेक्ट्रम आवटन की नीति तय कर रहे थे तो प्रधानमत्री क्या कर रहे थे। उन्हें देश को बताना पड़ेगा कि वह अपनी ही सरकार की इस नीति से सहमत थे या नहीं। यदि सहमत थे तो उसके बचाव में खड़े क्यों नहीं हो रहे। और यदि उन्हें इस नीति में खामी नजर आ रही थी तो उसे सुधारने के लिए उन्होंने क्या किया।


प्रधानमत्री चिदंबरम का बचाव तो कर रहे हैं पर अपनी सरकार की नीति का नहीं। उन्हें पता है कि चिदंबरम के जाते ही उनका रक्षा कवच ध्वस्त हो जाएगा। चिदंबरम के जाने के बाद प्रधानमत्री को विपक्ष के हमलों से बचाना कठिन हो जाएगा। सोनिया गाधी के सामने यही कठिनाई है। मनमोहन सिह को बचाने के लिए चिदंबरम को बचाना उनकी मजबूरी है। काग्रेस और सोनिया गाधी की मुश्किल यह है कि पैराशूट होने के बावजूद सरकार लगातार गिरती जा रही है। पैराशूट खुले तभी सरकार सुरक्षित जमीन पर उतर सकती है। वरना सरकार का नीचे जाना तो तय है। सवाल केवल रफ्तार और समय का है। घोटालों का बोझ जितना बढ़ेगा गिरने की रफ्तार उतनी तेज होगी।


विपक्ष और मीडिया को कोसने की बजाय प्रधानमत्री और सोनिया को अपना घर दुरुस्त करने पर ध्यान देना चाहिए क्योंकि मीडिया और विपक्ष जो कह रहा है देश की जनता उस पर अविश्वास नहीं कर रही। सकट प्रधानमत्री मनमोहन सिह के दरवाजे पर आ गया है। घर में आग लगी हो तो पड़ोसी की निदा में समय गवाना समझदारी नहीं मानी जाती। विपक्ष को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करके प्रधानमत्री इस आग पर काबू नहीं पा सकते। इस समय विपक्ष पर हमला आग पर पानी की बजाय पेट्रोल का काम करेगा जो उनकी सरकार ने पहले ही काफी महंगा कर रखा है।


लेखक प्रदीप सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं


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