Menu
blogid : 5736 postid : 1816

रेशमी आवाज का जादू

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

करीब पांच साल पहले अखबार के दफ्तर में सारे साथी जगजीत सिंह का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। वह दफ्तर में एक साक्षात्कार के सिलसिले में आ रहे थे। उनसे सवाल करने से लेकर कुछ सुनने की सभी की दिली ख्वाहिश थी। करीब पांच साल हो गए उस मुलाकात को पर अब भी उसका हर पल याद हैं। थोड़ी देर से आने के बाद उन्होंने इसके लिए हमसे माफी मांगी। हम उनकी विनम्रता देखकर अभिभूत हो गए थे। फिर बात शुरू हुई और उन्होंने बड़ी बेबाकी से जवाब दिए। गंगानगर (राजस्थान) में बिताए बचपन के दिनों से लेकर जालंधर, कुरुक्षेत्र होते हुए मुंबई की यात्रा के तमाम पड़ावों के बारे में उन्होंने बताया। वह बड़े सधे अंदाज में बातें कर रहे थे। पर जब बात उनके पुत्र विवेक की अकाल मृत्यु पर आई तो उनके चेहरे पर दर्द साफ उभर आया। विवेक क्रिकेट खिलाड़ी थे। उनका मुंबई में साल 1990 में एक हादसे में निधन हो गय़ा था। इस हादसे के बाद जगजीत और उनकी पत्नी चित्रा सिंह बुरी तरह टूट गए थे। यहां तक कि उन्होंने गाना भी छोड़ दिया था। लेकिन गायकी उनकी जिंदगी थी। उन्हीं के शब्दों में-पहले तो लगा कि अब शायद कभी नहीं गा पाऊंगा, फिर लगा कि अगर गाना और रियाज भी बंद कर दिया तो चलती-फिरती लाश ही हो जाऊंगा।


चाशनी में लिपटी आवाज के जादूगर ने उस बातचीत के दौरान इच्छा जताई, मैं 70 साल की उम्र तो गाना चाहता हूं। उसके बाद देखेंगे कि क्या गाने की हिम्मत बची है या नहीं। पर हिम्मत न भी हुई तो भी रियाज तो करेंगे ही, कंसर्ट में भले ही न गाएं। यह कहते हुए जगजीत सिंह मुस्कराने लगे थे। यह अजब इत्तेफाक है कि सत्तर साल की उम्र में ही उनकी आवाज हमेशा के लिए शांत हो गई। तभी किसी ने उनसे आग्रह किया अपनी किसी गजल की चंद लाइनें गुनगुनाने का। आमतौर पर कोई नामचीन गायक गला खराब होने का बहाना बनाकर गाने से कन्नी काटने की कोशिश करता है। पर जगजीत जी ने ऐसा कुछ नहीं किया और शुरू हो गए- तुम इतना जो मुस्करा रहे हो क्या गम है जिसको छुपा रहे हो.. गजल के बाद फिर से सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हो गया।


मुम्बई में संघर्ष के दिनों के बारे में पूछा तो बोले, जिसका कोई गॉडफादर नहीं होता उसे अपने लिए जगह बनाने के लिए संघर्ष तो करना ही पड़ता है। तो क्या आपको वो सबकुछ मिल गया जो आपने मुंबई जाने से पहले सोचा था? इस सवाल का जवाब उन्होंने गालिब का शेर गाकर दिया-हजारों ख्वाहिशें ऐसीं कि हर ख्वाहिश पर दम निकले। बहुत निकले मेरे अरमां फिऱ भी कम निकले.. जगजीत सिंह ने बताया, गजल का चुनाव करते समय मैं देखता हूं कि शायर ने कठिन शब्दों को तो गजल में नहीं ठूंसा है। मैं वहीं कलाम पढ़ता हूं जो मेरे चाहने वालों को फौरन समझ आ जाए। फिर वह वहां मौजूद पत्रकारों को भी सलाह देने लगे कि हो सके तो आप भी सीधी-सरल जुबान में अपनी बात कहें। मुझे मुंबई के कुछ अखबारों से शिकायत है कि वे बहुत कठिन भाषा का इस्तेमाल करते हैं। जगजीत सिंह खाली वक्त में गालिब, फैज अहमद फैज, शहरयार और दूसरे शायरों और कवियों को पढ़ते थे।


उन्होंने बताया कि अगर कोई कंसर्ट न हुआ तो दिन में विश्राम करना पसंद करता हूं। अब पहले की तरह बहुत मारामारी नहीं करता। सुबह-शाम रियाज करता हूं। बीच-बीच में चित्रा भी आ जाती हैं। चित्रा जी का जिक्र आते ही किसी ने जानना चाहा कि क्या वह फिर से गजल गायकी की दुनिया में पहले की तरह से लौटेंगी। जगजीत जी का जवाब था कि अब तो मुश्किल लगता है। सड़क हादसे में विवेक की मौत के बाद चित्रा ने अपने को पूरी दुनिया से अलग-थलग कर लिया। यह कहते -कहते वे अपनी लोकप्रिय गजल-चिट्ठी ना कोई संदेश/जाने वो कौन सा देश/जहां तुम चले गए..गाने लगे। उनकी आवाज में इस गजल को सुनकर वहां पर बैठे सारे लोग भावुक हो गए। एक-दो साथियों की आंखें नम भी हो गईं। खुद जगजीत ने अपने कुर्ते की जेब से रूमाल निकाल कर अपनी आंखों पर उभर आईं आसुओं की बूंदों को पोंछा। अलविदा!


लेखक विवेक शुक्ला स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh