Menu
blogid : 5736 postid : 5479

बिजलीपुर की औरतें

जागरण मेहमान कोना
जागरण मेहमान कोना
  • 1877 Posts
  • 341 Comments

जनसंख्या के आंकड़ों पर नजर डालें तो पंजाब और हरियाणा पर हमें शर्म आती है। हरित क्रांति की सफलता के कारण समृद्ध हुए इन दोनों प्रदेशों में लिंगानुपात चिंताजनक है। ऐसा लगता है कि इन दोनों राज्यों में लड़की का जन्म किसी परिवार को नहीं चाहिए। 2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब में प्रति हजार पुरुष पर केवल 893 महिलाएं थीं, लेकिन कमल भी कीचड़ में ही खिलता है। शायद यही कारण है कि पंजाब में एक ऐसा गांव भी है जहां औरत होना सजा नहीं है और इसलिए वहां महिलाओं के पक्ष में लिंगानुपात इतना अधिक है कि औरत होने पर गर्व किया जा सकता है। पंजाब के गांव बिजलीपुर में 2002 और 2008 के बीच प्रति हजार पुरुष 1800 महिलाएं थीं। इस आश्चर्यजनक उपलब्धि के कारण ही आजकल कोलकाता से कनाडा तक के टीवी व रेडियो पत्रकार बिजलीपुर का दौरा कर रहे हैं। वह अपने पाठकों व दर्शकों को बताना चाहते हैं कि पंजाब का यह गांव लिंगानुपात में एक ऐसी अनूठी मिसाल प्रस्तुत करता है जिसकी तुलना पश्चिम के विकसित देश भी नहीं कर सकते। बिजलीपुर एक ऐसा गांव है जिसमें किसी दूसरे गांव की महिला अगर ब्याहकर चली जाए तो अपने आपको धन्य माने। उसे महिला होने पर वहां इतना सम्मान मिलता है कि कल्पना नहीं की जा सकती। इसलिए बिजलीपुर की महिलाएं कहती हैं कि जब वह शादी करके दूसरे गांवों या शहरों में जाती हैं तो उन्हें अपने गांव जैसी सुविधाओं की उम्मीद नहीं होती।




बिजलीपुर के लिंगानुपात को बहुत से आलोचक चुनौती भी देते हैं, लेकिन स्थानीय आंगनवाड़ी से उपलब्ध जन्म व मृत्यु के आंकड़े पुष्टि करते हैं कि शेष पंजाब की तुलना में यहां लिंगानुपात लड़कियों के पक्ष में है। अगर 2005 से 2010 के आंकड़े देखें तो बिजलीपुर में 13 लड़कों की तुलना में 22 लड़कियों ने जन्म लिया। केवल 2002 में ही ऐसा हुआ जबकि बिजलीपुर में लड़कियों की तुलना में अधिक लड़के पैदा हुए। दिलचस्प बात है कि 2006-07 में बिजलीपुर में एक भी लड़का पैदा नहीं हुआ, जबकि इस दौरान उनकी जनसंख्या में 7 लड़कियों का इजाफा हुआ। हैरत की बात है कि बिजलीपुर से मात्र एक घंटे के फासले पर लुधियाना है जहां 2011 में बाल लिंगानुपात बहुत ही दयनीय था, यानी प्रति हजार लड़के पर केवल 869 लड़कियां। पटियाला स्थित पंजाब विश्वविद्यालय के समाजशास्त्री डॉ. एचएस भट्टी ने 2009 में अपनी टीम के साथ बिजलीपुर का अध्ययन किया। डॉ. भट्टी ने पाया कि स्कूलों में छात्राओं की संख्या 50 प्रतिशत से अधिक थी। दूसरे शब्दों में बिजलीपुर के ग्रामीण न केवल तुलनात्मक दृष्टि से अधिक लड़कियां पैदा कर रहे हैं, बल्कि उनके साथ कोई भेदभाव भी नहीं कर रहे हैं और लड़कियों को शिक्षा दिलाकर उपयोगी बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अपने देश में पुरुषों के पक्ष में जो बिगड़ा हुआ लिंगानुपात है उसके सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक कारण हैं।


समाज में लड़की को कमजोर व बोझ समझा जाता है। यह मान लिया गया है कि लड़की की वजह से वंश आगे नहीं बढ़ पाती। लड़की को दूसरे घर का कूड़ा समझा जाता है और उसकी परवरिश में वह ध्यान नहीं दिया जाता जो लड़कों की परवरिश में दिया जाता है। लड़की के कारण माता-पिता को सामाजिक बदनामी का भी हर समय डर लगा रहता है। साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है कि लड़की को आर्थिक बोझ समझा जाता है क्योंकि माता-पिता को लगता है कि उसकी शादी करने में मोटा दहेज देना पड़ेगा और बाद में भी उसके ससुराल को भरना पड़ेगा। बहरहाल, लड़की के विरोध में सबसे महत्वपूर्ण कारण धार्मिक हंै। हिंदू विवाह का एक उद्देश्य यह भी है कि पुत्र की उत्पत्ति की जाए ताकि देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण अदा किए जा सकें। इसलिए लगभग हर नवदंपति को पुत्र की इच्छा रहती है। चूंकि आजकल कोई बड़ा परिवार नहीं चाहता, इसलिए कन्या भू्रणों की कोख में ही हत्या कर दी जाती है। पर बिजलीपुर में यह मानसिकता मौजूद नहीं है। इस गांव में किसी भी कारण से लड़की और लड़के में कोई भेदभाव नहीं किया जाता। हद तो यह है कि बहुत से माता-पिता ऐसे हैं जिनके केवल दो लड़कियंा हैं और उन्होंने इसके बाद किसी औलाद की इच्छा नहीं की।


57 वर्षीय जसपाल सिंह के तो चार बेटियंा हैं जिनमें से दो शहर में नौकरी करती हैं और दो अभी गांव में रहकर शिक्षा प्राप्त कर रही है। इस बात का भी स्वागत किया जाना चाहिए कि जसपाल सिंह लगभग हर मंच से लड़की के महत्व का संदेश देने का प्रयास करते हैं। वह जहां भी जाते हैं वहां अपने होस्ट से अनुमति लेकर लड़की के महत्व पर बल देते हैं। उनका कहना है कि आज तक उनका सहयोग करने में किसी ने इन्कार नहीं किया है। बिजलीपुर में 28 वर्षीय सुरेंद्र कौर आंगनवाड़ी की संचालिका हैं। वह इस बारे में कहती हैं कि लोग शिक्षित हैं और अधिकतर के पास तो कॉलेज की डिग्रियां हैं। गांव में तंबाकू और नशीले पदार्थो पर सख्त प्रतिबंध है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि लड़कियों की जन्म से पहले या बाद में हत्या करना पाप समझा जाता है। इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि जिन परिवारों में महिलाएं शिक्षित होती हैं उनके दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन आ जाता है। पैगम्बर मुहम्मद साहब का एक पवित्र कथन है कि एक लड़के को शिक्षित करना केवल एक ही लड़के को शिक्षित करना होता है, जबकि एक लड़की को शिक्षित करना पूरे खानदान को शिक्षित करना होता है। बिजलीपुर में इसी हदीस का पालन देखने को मिलता है।


इस आलेख की लेखिका वीना सुखीजा


Read Hindi News


Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh