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कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने फूलपुर की चुनावी रैली में कही बातों को एक बार फिर से दोहराते हुए साफ कह दिया है कि उत्तर प्रदेश के लोग दूसरे राज्यों में जाकर भीख मांगते हैं। राहुल गांधी का कहना है कि मैं भीख मांगने वालों से पूछता हूं कि कहां के हो, तो वे बताते हैं कि उत्तर प्रदेश का हूं। राहुल गांधी का कहना है कि सूबे के ये हालात पिछले बीस सालों से बने हैं। राहुल ने यह भी कहा कि हमारे नेता मुंबई में ही नहीं, दिल्ली में भी गाडि़यों के शीशे उतारकर देखें, ज्यादातर भिखारी उत्तर प्रदेश के नजर आएंगे। इससे पहले फूलपुर में राहुल गांधी ने कहा था कि कब तक आप लोग दिल्ली और महाराष्ट्र जाकर भीख मांगोगे? उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी की राजनीतिक जमीन को मजबूत करने में जुटे राहुल गांधी को अपने इन बयानों से कितना फायदा मिलेगा, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन यह तय है कि राहुल गांधी के इन बयानों से देश में क्षेत्रवाद की भावना पनपेगी।
सबसे बड़ा सवाल है कि वोट बैंक के नाम पर बाल ठाकरे और राज ठाकरे की राजनीति पर क्या अब देश के राष्ट्रीय राजनीतिक दल भी उतर आए हैं? देश में कांग्रेस की अगुवाई में संप्रग सरकार चल रही है और इसी कांग्रेस पार्टी के महासचिव का यह कहना कि देश में दिल्ली हो या महाराष्ट्र, सबसे ज्यादा भिखारी उत्तर प्रदेश के ही मिल जाएंगे, क्या साबित करता है? उत्तर भारतीयों के रोजगार को लेकर अगर राहुल गांधी वाकई चिंतित हैं तो उन्हें यह सोचना चाहिए कि संप्रग-1 और संप्रग-2 में केंद्र सरकार ने इस दिशा में क्या कदम उठाए? उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की वजह से कांग्रेस को आज जिन मुद्दों की चिंता सता रही है, उनके बारे में पहले क्यों नहीं सोचा गया? कांग्रेस के युवा नेता को यह समझना होगा कि देश की जनता राजनीतिक तौर पर अब और भी ज्यादा परिपक्व हो गई है और उसे राजनीतिक दलों की नीति और नीयत दोनों ही समझ में आने लगी है। कुछ साल पहले गोवा में कांग्रेस के नेता रवि नाइक ने पटना से पणजी तक एक नई रेलगाड़ी चलाने को लेकर यह बयान दे डाला था कि बिहार से बहुत सारे भिखारी आ जाएंगे।
उत्तर प्रदेश के सांसद होने के नाते और देश की सबसे बड़ी पार्टी के महासचिव राहुल गांधी की प्रदेश में बेरोजगारी की स्थिति को लेकर चिंता जायज हो सकती है, लेकिन राहुल गांधी या कांग्रेस के दूसरे नेताओं का उत्तर प्रदेश और बिहार की जनता को भिखारी बताना केवल यही साबित करता है कि पार्टी के नेताओं को भारतीयों के स्वाभिमान की समझ नहीं है और न ही उन्हें जमीन से जुड़े उत्तर भारतीयों की जमीनी हकीकत और उनके मेहनतकश इतिहास के बारे में ही कुछ पता है। हर भारतीय अपनी जमीन और जड़ों से जुड़ा रहता है। यही वजह है कि केरल से निकला एक नौजवान अगर रोजगार के लिए खाड़ी देश में जाकर काम करता है तो महीने के आखिरी में मिलने वाली पगार का एक बड़ा हिस्सा अपने गांव भेजता है। बिहार और उत्तर प्रदेश से कोई नौजवान भीख मांगने के लिए नहीं, बल्कि रोजगार की तलाश और मेहनत मजदूरी करने के लिए दूसरे राज्यों में जाता है। राहुल गांधी को यह फर्क समझना होगा कि दिल्ली या कोलकाता की सड़कों पर पसीना बहाकर साइकिल रिक्शा चलाने वाले उत्तर भारतीय भिखारी नहीं, देश के स्वाभिमानी नागरिक हैं। देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बड़े उपक्रमों से लेकर निजी क्षेत्र की बड़ी इकाइयों में काम करने वाले ज्यादातर लोग उत्तर भारतीय हैं, जो भीख नहीं मांगते, देश के विकास में अपना योगदान देते हैं। अगर सारे उत्तर भारतीय इन कामों को छोड़ दें तो देश का औद्योगिक उत्पादन ठप हो सकता है।
राहुल गांधी को यह समझना होगा कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के गिरमिटिया मजदूर कौन थे? और ये लोग किसी देश या प्रदेश छोड़कर भीख मांगने के लिए नहीं गए थे। पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, आजमगढ़, गाजीपुर, वाराणसी, जौनपुर समेत तमाम जिलों से निकले ये लोग मॉरीशस, फिजी, गुयाना, त्रिनिदाद और सूरीनाम जैसे देशों में मेहनत-मजदूरी करने गए थे। ये उत्तर भारतीय उन देशों में बोझ नहीं बने, बल्कि उनके राष्ट्र निर्माण में सकारात्मक योगदान दिया। यही नहीं, शिवसागर रामगुलाम, नवीन रामगुलाम, वासुदेव पांडेय जैसे कई लोग इन देशों में राष्ट्राध्यक्ष भी बने। कांग्रेस पार्टी या राहुल गांधी जैसे नेताओं को यह बात समझनी होगी कि हर भारतीय स्वाभिमानी है और वह मेहनत करके अपना पेट पालने में यकीन करता है। यह बात ठीक है कि हर राज्य में फिर चाहे वह बिहार हो या उत्तर प्रदेश, राजस्थान हो या आंध्र प्रदेश, रोजगार के अवसर उपलब्ध होने चाहिए। लेकिन भारतीय संविधान हर नागरिक को इस बात की आजादी देता है कि वह देश के किसी भी हिस्से में जाकर काम कर सके और देश के विकास में अपना योगदान दे सके। बौद्धिक संपदा को किसी एक राज्य विशेष की सीमाओं में बांधकर नहीं रखा जा सकता। आज उत्तर भारतीय हों या दक्षिण भारतीय या फिर उत्तर-पूर्वी राज्यों के लोग, देश के हर कोने में मौजूद हैं। इतना ही नहीं, अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाकर ये लोग राष्ट्रीय एकता की मिसाल भी कायम कर रहे हैं। अब बात भिखारियों को लेकर राहुल गांधी की चिंता की है। इसमें कोई दो मत नहीं कि हर महानगरों और शहरों में आपको लोग सड़कों पर भीख मांगते नजर आएंगे।
सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो देश की राजधानी दिल्ली में 60 हजार से ज्यादा भिखारी हैं और आंकड़े यह बताते हैं कि ये भिखारी किसी एक राज्य के नहीं, बल्कि देश के हर हिस्से से आए हुए लोग हैं। तो फिर किस आधार पर राहुल गांधी यह बयान दे रहे हैं कि दिल्ली और महाराष्ट्र में भीख मांगने वाले लोग उत्तर प्रदेश के हैं? वैसे भी आज भीख मांगना सामाजिक समस्या कम और कानून व्यवस्था की समस्या ज्यादा बन गई है। भीख निरोधक कानून-1959 के तहत भीख मांगना कानूनी अपराध है और यह बात ठीक है कि किसी भी सरकार को इस मामले में संवेदनशीलता से पेश आना चाहिए, लेकिन यह भी उतना ही जरूरी है कि वक्त रहते सरकार जरूरी कदम उठाए। आज देश में भीख मांगना संगठित माफियाओं से जुड़ा धंधा बनता जा रहा है और केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को इस दिशा में कड़े कदम उठाने होंगे। कुछ दिनों पहले दिल्ली हाईकोर्ट ने भी दिल्ली सरकार से कहा था कि देश की राजधानी में भिखारियों की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए सरकार कारगर कदम उठाए।
कांग्रेस पार्टी के महासचिव राहुल गांधी देश के बाकी नेताओं को यह सीख दे रहे हैं कि दिल्ली और महाराष्ट्र में कार के शीशे उतारकर आप भिखारियों से पूछें कि भैया, आप कहां के रहने वाले हो। गरीबी और भुखमरी का न कोई प्रदेश होता है और न ही उसकी कोई जाति होती है, लेकिन देश में लंबे समय तक राजकाज चला चुकी कांग्रेस इस बात से अनभिज्ञ है और अब ऐसा लगता है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में जीत के लिए कांग्रेस राज ठाकरे की क्षेत्रवाद की राजनीति पर उतर आई है। अलगाववाद की राजनीति करने वाला ठाकरे कुनबा खुद बिखर गया है और आज हर दल को यह समझना होगा कि अलगाववाद और क्षेत्रवाद के बीज बोकर उसकी राजनीतिक जमीन कभी उपजाऊ नहीं हो सकती।
लेखक डॉ. शिव कुमार राय वरिष्ठ पत्रकार हैं
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