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धार्मिक यात्राओं पर सब्सिडी का औचित्य

जागरण मेहमान कोना
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Firoz Photoतीर्थ यात्रियों को कभी पंडे लूटते हैं तो कभी मौलवी, तो कभी सरकारी अफसर। खासतौर से हज जैसी पावन यात्रा पर हाजियों के साथ जो दु‌र्व्यवहार होता है या जिस प्रकार से उन्हें हर मोड़ पर लूटा जाता है, वह एक अति वेदना का विषय है। एक गरीब मुसलमान की यह महत्वाकांक्षा होती है कि जीवन में एक बार अवश्य वह हज करे और जब पूर्व जीवन की गाढ़ी कमाई जोड़ वह हज पर जाता है तो सरकारी एजेंसियां और भारतीय हज कमेटी सभी गरीब हाजियों का शोषण करते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है? हर वर्ष वही समस्या। वैसे तो भारतीय संविधान ने अल्पसंख्यकों को अनेक सुविधाएं प्रदान की हैं, मगर उनका ठीक प्रकार से प्रयोग नहीं होता। भारतीय हाजियों की सुविधाओं के लिए 1959 में हज एक्ट लागू किया गया। इसकी सहायता से हज पर हाजियों को बहुत कम खर्च करना पड़ता है। इसके लिए मुतवल्ली (अभिभावक) बनाया गया सेंट्रल हज कमेटी को। आजकल एक हाजी को लगभग 70,000 रुपये हज कमेटी में इस तीर्थ यात्रा के लिए जमा कराने होते हैं। बदले में बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, जिनका बकौल शायर वही हाल होता है कि वह वायदा क्या, जो वफा हुआ! कहा जाता है कि हरम शरीफ (मक्का) के निकट हाजियों को ठहराया जाएगा, उच्च चिकित्सा और दवाएं प्रदान की जाएंगी।


वातानकूलित बसों में यात्रा कराई जाएगी आदि। कहां जाती है करोड़ों की सब्सिडी सऊदी अरब जाने से पहले ही हाजियों की समस्याएं शुरू हो जाती हैं। हर बड़े शहर में हज गृह होते हैं, जिनका संचालन राज्य हज कमेटियां करती हैं। फ्लाइट से पहले आस-पास के गांव-कस्बों से हाजी इन्हीं हज गृहों में रहते हैं, जहां न तो उनके लिए और न ही उनके साथ छोड़ने आए अतिथियों के लिए कोई विशेष व्यवस्था है। यों तो केंद्रीय हज कमेटी एक हज डेलिगेशन भी भेजती है, जिसकी जिम्मेदारी भारतीय हाजियों की समस्याओं का समाधान करना है, मगर होता इसका उलटा है। गरीब हाजियों को तो सुविधाएं उपलब्ध होती नहीं। हां, यह अवश्य होता है कि कुछ लोग उन पर हाथ मार लेते हैं। हज यात्रा के घपले वास्तविक हज के समय से बहुत पहले से ही शुरू हो जाते हैं। अनेक लोग सऊदी अरब में सुविधाओं व इंतजाम की चौकसी के नाम पर चार से छह यात्राएं कर लेते हैं और कई बार एक-एक महीने तक रुक कर आते हैं। पूरे 137 करोड़ की सब्सिडी भारतीय सरकार हाजियों को प्रदान करती है। वह कहां जाती है? इसका कोई हिसाब-किताब नहीं होता। 137 करोड़ की सब्सिडी के असल हकदार वे हाजी होते हैं, जो भारतीय हज कमेटी द्वारा हज करते हैं।


लिहाजा, हज कराने वाली प्राइवेट टूर कंपनियां भी अपने ग्राहकों को हज कमेटी के मार्फत ही भेजती हैं, मगर उनके ठहरने का बंदोबस्त अलग से करती हैं। ये कंपनियां अपने हाजियों को अलग इमारतों में पहले से तयशुदा ब्लैक के दामों में ठहराती हैं। इसमें होता यह है कि रकम तो हाजी देता है ए-कैटेगरी की, मगर उसे ठहराया जाता है सी-कैटेगरी के मकानों में। जो पैसा चला गया, वह फिर कहां वापस मिलता है। अब इससे होता यह है कि सरकारी छूट के वास्तविक हकदारों की संख्या कुछ कम हो जाती है। फिरअंत में निजी टूर कंपनियों की मदद लेने वाले हाजियों को भी हज कमेटी की सूची में शामिल कर लिया जाता है। यह एक ऐसी तकनीकी दरार है, जिससे गरीब हाजियों का अरसे से शोषण होता चला आया है। हज यात्रा के नाम पर धांधलियों का सिलसिला बड़ा लंबा है। हाजियों के लिए सरकार द्वारा दिए गए अनुदानों के बदले में मुसलमानों को प्राय: सुनना पड़ता है कि संप्रदाय विशेष को ही यह संतुष्टिकरण क्यों? इसी प्रकार से सिखों, ईसाइयों, यहूदियों और हिंदुओं को भी उनकी तीर्थ यात्राओं के लिए विशेष अनुदान मिलना चाहिए। मुसलमानों को दिए जाने वाले इस अनुदान को हड़पने के लिए तरकीबों की कमी नहीं है। इसकी शिकायतें समय-समय पर की जाती रही हैं, मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात! हज कमेटी हज यात्रा पर जाने वालों से कई माह पहले ही अर्जियां ले लेती है और प्रति अर्जी के साथ में लगभग 6,000 रुपया बजरिया ड्राफ्ट या चैक वसूल लिए जाते हैं, जिनमें लगभग 300 रुपये पंजीकरण और हज कमेटी के दान खाते के होते हैं।


पांच-साढ़े पांच हजार की मोटी रकम हज यात्रियों की दवा, यात्रा और अरब में उनके ठहरने की व्यवस्था के लिए वसूली जाती है। सवाल यह है कि इस मोटी रकम की क्या जरूरत है? इस संबंध में हज कमेटी का तर्क है कि अरब में इमारतें बुक कराने का कुछ एडवांस भी देना पड़ता है, जिसकी भरपाई के लिए यह रकम ली जाती है। हज यात्रियों की अर्जियां की बड़ी संख्या के कारण यह रकम भी करोड़ों में पहुंचती है। शायद यही कारण है कि हज कमेटी का सदस्य बनने के लिए इतनी मारा-मारी होती है। इस रकम को हज कमेटी बैंक में डाल भारी ब्याज भी ऐंठती है। चूंकि हर राज्य में हज पर जाने वालों का कोटा तय है, इसलिए जो हाजी नहीं जा पाते, उन्हें उनके पैसे लौटा दिए जाते हैं। मजे लूटते माननीय भारतीय हाजियों की यातनाओं को लेकर एक जनहित याचिका उच्च न्यायालय के अधिवक्ता मुहम्मद अत्यब सिद्दीकी ने अदालत में दायर की है, जिसमें केंद्रीय हज कमेटी के विरुद्ध कई मामले इस धांधली के संबंध में उठाए गए हैं। इस याचिका में कहा गया है कि हाजी भारतीय हज कमेटी को संपूर्ण हज यात्रा के लिए पैसा देता है। इसमें दिल्ली/मुंबई/बेंगलूर/मद्रास/कोलकाता से जेद्दा और वापसी का हवाई टिकट तो होता ही है, साथ में वह खर्च भी होता है, जो सऊदी अरब में यातायात और भिन्न स्थानों पर रहने के लिए भी होता है। एक हाजी से वातानकूलित बसों का पूरा पैसा लिया जाता है- जेद्दा में मक्का तक, मक्का से मीना तक, मीना से अराफात तक, अराफात से मुजदलिफा तक और फिर वापस मुजदलिफा से अराफात तक, अराफात से मीना तक, मीना से मक्का तक, मक्का से मदीना तक और मदीना से जेद्दा तक! इस प्रकार पहले चरण में लगभग 1500 किलोमीटर वातानकूलित गाडि़यों की रकम ऐंठ ली जाती है।


वास्तविकता यह होती है कि वातानकूलित तो छोडि़ए, पुरानी और बदहाल बसों में हाजियों को डंगर की भांति ठूंस दिया जाता है। हां, वातानकूलित गाडि़यों में हज डेलिगेशन के माननीय सदस्य यात्रा का मजा लूटते हैं। पाकिस्तान, बांग्लादेश और मलेशिया के हाजियों की सहायता के लिए ये देश अपने विशेष खिदमतगार तैयार रखते हैं, जो झंडे लिए और वर्दी पहने अपने-अपने देशों के हाजियों का मार्गदर्शन करते हैं। इसी प्रकार इनके अपने चिकित्सा दल हैं। दो साल पहले जब मीना के खेमों में आग लगी तो बहुत से बुज़ुर्ग हिंदुस्तानी हाजियों की जानें पाकिस्तानी और बांग्लादेशी हाजियों के डॉक्टरों ने बचाई। अगर बेचारे भारतीय हाजी अपने हज डेलिगेशन और डॉक्टरों के भरोसे रहे तो शायद उनका हज हो ही न पाए! एक अन्य गूढ़ समस्या यह है कि दिल्ली, मुंबई, मद्रास आदि में हाजियों को डिपार्चर (गमन) से दो-तीन रोज पहले बुला लिया जाता है। इसी प्रकार से हज पूर्ण होने पर उन्हें जेद्दा हवाई अड्डे पर 24 घंटे या अधिक समय तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है, जो थकान से चूर-चूर हाजी को बिल्कुल निढाल कर देती है।


लेखक फिरोज बख्त अहमद स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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