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सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में स्वच्छ पेयजल को नागरिक अधिकारों के दायरे में होना स्वीकार किया है तो संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे मानवाधिकारों की सूची में रखा है। बावजूद इसके स्वच्छ पीने का पानी जनता को मुहैया कराना हमारी सरकारों की प्राथमिकता में नहीं है। बुनियादी सुविधाएं और अधिकारों को पाने की बात तो दूर आज देशवासियों पीने का पानी भी मयस्सर नहीं। हाल ही में एक जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि दिल्लीवासियों को नल के जरिये जो पानी पहुंच रहा है वह प्रदूषित है। पाइप लाइनों में दरारें पड़ने की वजह से उसमें गंदा पानी मिल रहा है और यही प्रदूषित पानी पीने के लिए लोग मजबूर हैं। गौरतलब है कि जांच रिपोर्ट किसी गैर सरकारी सामाजिक संगठन या विदेशी शोधकर्ताओं की नहीं है, बल्कि खुद दिल्ली नगर निगम और जल बोर्ड की है। जांच के क्रम में जिन दो सौ इलाकों का सर्वेक्षण किया गया उनमें 67 मुख्य पाइपलाइनों में दरारें पाई गई हैं। पीने के पानी के नमूनों की जांच में तमाम इलाकों में पानी पीने के काबिल ही नहीं पाया गया।
नगर निगम ने दिल्ली के मध्य जोन में 2125 पानी के नमूनों की जांच की जिनमें से 150 नमूने पीने योग्य नहीं थे। करोल बाग, नजफगढ़ जैसे इलाकों में भी आंकड़े कुछ ऐसे ही हैं। यानी यहां हालात काफी संजीदा हैं। दिल्लीवासियों को स्वच्छ पेयजल मुहैया कराने का दिल्ली जल बोर्ड का दावा पूरी तरह से झूठा निकला है। एक तरफ पीने के पानी में यह गड़बडि़यां हैं तो दूसरी ओर इसमें सुधार के लिए कोई उपाय भी नहीं किए जा रहे हैं। लगातार शिकायतों के बावजूद दिल्ली जल बोर्ड अब तक केवल छह पाइप लाइनों को दुरुस्त कर सका है। इस बात से खुद-ब-खुद अंदाजा लगाया जा सकता है कि बाकी खराब या दरार पड़ चुकी पाइप लाइनों से होकर जो पानी घरों में पहुंच रहा है उसे पीने वाले लोग किस जोखिम से पी रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली में बड़े पैमाने पर घरों में दूषित पानी की खबर आई है। कई दूसरे अविकसित इलाकों के अलावा बसंत कुंज और साउथ एक्सटेंशन जैसे संभ्रांत माने जाने वाले इलाकों में भी घरेलू नलों से गंदा और जहरीला पानी मिलने की शिकायतें मिल चुकी हैं। शायद यही वजह है कि बीते कुछ सालों से दिल्ली में पीलिया, टायफाइड, हैजा और हैपेटाइटिस जैसी जलजनित बीमारियों के मामलों की लगातार बढ़ोतरी हुई है।
वर्ष 2008 में दिल्ली में आंत्रशोध के 53 हजार से ज्यादा मामले सामने आए थे। वहीं 2009 में लगभग 53 हजार, 2010 में 69 हजार मामले सामने आए। पीलिया और टाइफाइड के आंकड़ों पर यदि नजर डालें तो स्थिति काफी गंभीर दिखती है। हर साल जलजनित बीमारियों से पीडि़त होने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। जाहिर है इस साल भी यदि कारगर कदम नहीं उठाए गए तो यह तादाद और बढ़ सकती है। इसकी जिम्मेदारी नगर निगम और जल बोर्ड की होगी। जब भी राजधानी में जलजनित बीमारियों का प्रकोप बढ़ता है निगम यह घोषणा करवा देता है कि लोग साफ पानी पिएं, उबाल कर पिएं और पीने के पानी में क्लोरीन की गोलियां मिला लें। ज्यादा हुआ तो वह पानी की आपूर्ति रोक देता है और अलग से टैंकरों का इंतजाम कर अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाता है, लेकिन यह समस्या का कारगर और स्थायी समाधान नहीं है।
जरूरत बुनियादी बदलाव की है। जब तक बुनियादी बदलाव और ठोस उपाय नहीं किए जाएंगे तब तक व्यवस्था में कोई सुधार नहीं आएगा। दिल्ली के बीचोबीच चांदनी चौक जैसे कुछ इलाकों में तो पाइप लाइनों की उम्र तकरीबन सौ साल हो चुकी है। इतनी पुरानी पाइप लाइन किस हालत में होंगी या उनसे होकर गुजरने वाले पानी का क्या हाल होता होगा इसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है। एक बार पाइप बिछाने और पानी की आपूर्ति शुरू होने के बाद पाइपों की देखभाल और उसकी मरम्मत भी दिल्ली जल बोर्ड की जिम्मेदारी है, लेकिन यह अपनी जिम्मेदारियों से मुंह फेरे रहते हैं। पाइप लाइनों को दुरुस्त करने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं होती।
जाहिद खान स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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