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अत्यंत दुखद खबर है कि हरिद्वार स्थित गायत्री परिवार के मुख्यालय पर आयोजित धार्मिक आयोजन के दौरान हुए हादसे में तकरीबन दो दर्जन श्रद्धालुओं की दर्दनाक मौत हो गई। इससे भी ज्यादा कष्टकारी यह है कि भविष्य में इस तरह के हादसे न हों, इसके लिए समुचित उपाय करने के बजाय आयोजकों और शासन-प्रशासन द्वारा यह दलील देने की कोशिश की जा रही है कि किसकी गलती से यह हादसा हुआ। एक पक्ष इसे भगदड़ के कारण हुआ हादसा करार देने में लगा है तो दूसरा पक्ष घुटन की वजह से लोगों की मौत की बात कह रहा है। हालांकि भक्ति में भगदड़ या अन्य कारणों से होने वाली मौतों की यह कोई पहली घटना नहीं है, लेकिन अफसोस कि इस तरह की घटनाओं से राज्यों का शासन-प्रशासन और स्थानीय तंत्र सीख नहीं लेता। अगर पुरानी घटनाओं के कारकों को ढूंढ़कर भविष्य में इस तरह की घटनाएं नहीं होने देने के प्रति निष्ठा दिखाई जाती तो शायद यह मनहूस घड़ी दोबारा नहीं आती, लेकिन यहां हादसों के कुछ दिनों तक सक्रियता दिखाकर फिर शांत हो जाया जाता है। नतीजतन हादसे-दर-हादसे होते रहते हैं और तंत्र सिर्फ अफसोस जताकर अपनी जिम्मेदारियों की इतिश्री कर लेता है। ताजा घटनाक्रम में अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक पं. श्रीराम शर्मा की जन्मशती के मौके पर हरिद्वार में आयोजित वृहद यज्ञ के दौरान 20 श्रद्धालुओं की मौत हो गई। इस मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं। हरिद्वार का प्रशासन इस हादसे में 16 लोगों की मौत की बात स्वीकार रहा है, जबकि अनौपचारिक सूचनाएं 24 लोगों की मौत की बातें कह रही हैं।
हरिद्वार के डीएम सैंथिल पांडियन ने घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं। इस घटना के बाद गायत्री परिवार के प्रमुख प्रणव पंड्या ने घटना की नैतिक जिम्मेदारी स्वीकार की है और अगले सभी कार्यक्रमों को रद्द करने की घोषणा भी कर दी। उन्होंने मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख का मुआवजा देने की घोषणा की है। उत्तराखंड सरकार ने भी मृतकों के परिजनों को दो-दो लाख का मुआवजा देने की घोषणा की है। गायत्री परिवार ने अपने संस्थापक पं. श्रीराम शर्मा की जन्मशताब्दी के अवसर पर छह नवंबर से यज्ञ सहित कई कार्यक्रम आयोजित किया और इसमें भाग लेने के लिए देश के कई हिस्सों से लाखों लोग हरिद्वार पहुंचे थे। बताते हैं कि अचानक मची भगदड़ के दौरान लोग एक दूसरे पर गिरते और दबते गए। शुरुआती जानकारी के अनुसार यज्ञशाला में आने और जाने का एक ही रास्ता था और धुआं भी बहुत ज्यादा था। इस वजह से वहां कुछ देख पाना संभव नहीं था। कुछ लोगों का कहना है कि उसी समय हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमकुमार धूमल का काफिला वहां से गुजर रहा था। इसी बीच व्यवस्था बनाने के लिए सुरक्षाकर्मियों ने लाठीचार्ज कर दिया, जिससे बचने के लिए लोग भागने लगे थे और हादसा हुआ। हालांकि कार्यक्रम के आयोजकों द्वारा दावा किया जा रहा है कि कार्यक्रम बेहद अनुशासित ढंग से चल रहा था और सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए गए थे।
पुलिस-प्रशासन के अलावा गायत्री परिवार के स्वयंसेवक भी भारी संख्या में मुस्तैदी से लोगों की सेवा में जुटे हुए थे। लेकिन यह बात भी सुनने में आ रही है कि सुरक्षा का फोकस कार्यक्रम में शामिल हुए भक्तजनों और श्रद्धालुओं से कहीं अधिक माननीयों पर केंद्रित था। बताया यह भी जा रहा है कि उस दिन धूमल के अलावा भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी भी आए थे। अब सवाल यह है कि जब पहले भी देश के विभिन्न हिस्सों में इस तरह के हादसे होते रहे हैं तो उनसे सीख लेकर स्थानीय पुलिस प्रशासन और आयोजकों ने तैयारियां क्यों नहीं की? जबकि गायत्री परिवार और सरकारी अमला, सबको पता था कि यहां इस बार भीड़ अनियंत्रित होने वाली है। फिर श्रद्धालुओं के आने-जाने, रहने-ठहरने की समुचित व्यवस्था क्यों नहीं की गई? इस तरह के सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है। इससे स्पष्ट होता है कि उत्तराखंड का शासन, प्रशासन और गायत्री परिवार की व्यवस्था पूरी तरह निरंकुश है। वरना, यह जानते हुए भी कि यहां अनुयायियों की भारी भीड़ जमा होगी और उस भीड़ को उसके हाल पर छोड़ दिया गया। इसकी परिणति आज इस हादसे के रूप में देखने को मिली है। अगर भगदड़ में हुई मौतों के सिलसिले पर नजर डालें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि हरिद्वार ही असंवेदनशील नहीं है, देश के अन्य राज्य भी मानवाधिकारों का खुलेआम हनन कर रहे हैं। बीते वर्ष केरल के सबरीमाला में हुई भगदड़ में 102 लोगों की मौत हो गई थी। कुछ साल पहले बिहार के बांका जिले के एक मंदिर में मची भगदड़ में नौ लोग मारे गए। बीते वर्ष मार्च में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कृपालु महाराज के आश्रम में मची भगदड़ में 60 लोगों की जान चली गई थी।
जनवरी 2010 में कोलकाता के पास गंगासागर मेले में मची भगदड़ में सात तीर्थयात्री मारे गए। वर्ष 2008 में भगदड़ की दो बड़ी दुर्घटनाएं हुई। राजस्थान के चामुंडा मंदिर में मची भगदड़ में 224 लोगों की मौत हुई और हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भगदड़ से 145 लोग मारे गए। दिसंबर 2009 में गुजरात में धौराजी के श्रीनाथजी मंदिर में भगदड़ मचने से नौ लोगों की मौत हो गई। नवंबर 2006 में उड़ीसा के पुरी में जगन्नाथ मंदिर में भगदड़ से चार लोगों की मौत हो गई और 18 घायल हो गए। उस दौरान बताया गया कि अधिकारियों ने मंदिर का दरवाजा खोलने में देर कर दी, जिसके कारण भगदड़ हुई और भयानाक हादसा हुआ। जनवरी 2005 में महाराष्ट्र के दूरवर्ती मंढारा देवी मंदिर में भगदड़ मचने से 265 लोग मारे गए। संकरा रास्ता होने के कारण यह हादसा हुआ। अगस्त 2003 में नासिक में कुंभ मेले के दौरान मची भगदड़ में 30 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। वर्ष 1986 में हरिद्वार में एक धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ में 50 लोगों की मौत हो गई। वर्ष 1954 में इलाहाबाद में कुंभ मेले के दौरान भगदड़ का भयानक मंजर देखने को मिला था। इसमें लगभग 800 लोगों की जानें गई। भारत से इतर अगर दूसरे देशों की बात करें तो कंबोडिया की राजधानी नॉम पेन्ह में वॉटर फेस्टिवल में मची भगदड़ में 339 से अधिक लोग मारे गए। यह भगदड़ एक पुल पर मची थी, जो एक द्वीप तक ले जाता है। बताया गया कि पूरा किस्सा तब शुरू हुआ, जब भीड़ में मौजूद 10 लोग बेहोश हो गए। वहां हर तरफ से धक्का-मुक्की हो रही थी, जिस कारण बीच में खड़े लोग जमीन पर गिर गए और कुचले गए।
वाटर फेस्टिवल में कंबोडिया के ग्रामीण इलाकों से करीब 20 लाख लोग आते हैं, जहां तीन दिनों तक नौका रेस, संगीत और नृत्य का कार्यक्रम चलता है। कई दशकों तक चले युद्ध के बाद वर्ष 1990 में इस उत्सव को दोबारा शुरू किया गया था। खैर, भक्ति में भगदड़ का सवाल स्वदेश का हो या विदेश का, हालात को देखकर लगता है कि पब्लिक की समस्याओं को ध्यान में रखकर तैयारियां नहीं की जातीं। उन बिंदुओं पर गहनता से अध्ययन नहीं किया जाता, जो हादसे का सबब बनते हैं। अगर उक्त बातों पर गंभीरता से विचार किया जाता तो शायद भगदड़ जैसे हालात पैदा ही नहीं होते। निश्चित रूप से अक्सर सामने आने वाले इस तरह के हादसों से मुक्ति मिलती। अंत में हादसों के लिए कार्यक्रम के आयोजक, प्रायोजक, स्थानीय प्रशासन और पुलिस को ही जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। साथ ही यह अपेक्षा की जाती है कि जांच के उपरांत मामले में दोषी पाए जाने वाले लोगों के विरुद्ध इस तरह की कठोर कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में सरकारी तंत्र हादसों से सबक लेकर तैयारियों को अमली जामा पहनाए।
इस आलेख के लेखक राजीव रंजन तिवारी हैं
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