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सचिन के सम्मान पर सियासत

जागरण मेहमान कोना
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Niranjan Kumarसचिन तेंदुलकर को राज्यसभा सदस्य के रूप में मनोनीत करने की सिफारिश की गई है और बताया गया है कि उनके नाम को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई है, लेकिन इसी के साथ क्रिकेट की दुनिया में बुलंदियां छू चुके क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले 39 वर्षीय तेंदुलकर को लेकर कुछ विवाद भी उठ खड़े हुए हैं, खास तौर से इलेक्ट्रानिक मीडिया में इस पर खासी बहस चल रही है। हालांकि जाने-अनजाने मीडिया ने इस पूरे प्रकरण के एक सांविधानिक पहलू की नितांत अनदेखी कर दी। संविधान के अनुसार साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में विशेष ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव रखने वालों को राज्यसभा के सदस्य के रूप में मनोनीत करने का प्रावधान है। राष्ट्रपति यह मनोयन केंद्र सरकार की सिफारिश पर करते हैं, लेकिन यहां ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि यह मनोनयन साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में किया जाता है। खेल को इससे बाहर रखा गया है। ठीक उसी तरह जैसे भारत रत्न का सम्मान भी हाल तक साहित्य, विज्ञान, कला और सामाजिक सेवाओं के क्षेत्र में ही देने का प्रावधान था। हालांकि पिछले वर्ष नवंबर मे सरकार ने इस नियम को संशोधित करते हुए एक आदेश जारी कर इस सूची में खेल को भी शामिल कर लिया है और अब खेल के क्षेत्र में भी विशिष्ट योगदान करने वाले महान भारतीय सपूतों को यह सम्मान दिया जा सकता है। यहां यह बताते चलें कि यह संशोधन भी दरअसल सचिन के लिए भारत रत्न सम्मान देने की मांग उठने के बाद ही हुआ।


सचिन को राज्यसभा पहुंचाकर क्या साबित करना चाहती है सरकार !!


राज्यसभा में मनोनयन के लिए इसी तरह संविधान में संशोधन करने की जरूरत होगी, क्योंकि तकनीकी आधार पर खेल के क्षेत्र में विशेष ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव रखने वालों को मनोनीत करने का प्रावधान संविधान के अनुरूप नहीं है। हमारे राज्यसभा के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब किसी खिलाड़ी को मनोनीत किया जा रहा हो। इससे पहले दारा सिंह को जरूर मनोनीत किया गया था, लेकिन उनका मनोनयन भी खिलाड़ी के रूप में न होकर कला (फिल्म) के क्षेत्र में उनके योगदान के आधार पर किया गया था। वैसे तकनीकी अर्हता को छोड़ दें तो सचिन तेंदुलकर का कद इतना बड़ा है कि वह किसी राज्यसभा सदस्यता के मोहताज नहीं हैं। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 100 शतकों का रिकार्ड और सबसे ज्यादा रन बनाने के अतिरिक्त कई विश्व रिकार्ड कायम करने वाले इस महान भारतीय खिलाड़ी ने पूरे विश्व में देश का नाम ऊंचा किया है। इसके साथ ही एक शालीन और अच्छे इंसान के रूप में जाने जाने वाले इस व्यक्ति में भारतीयता और राष्ट्रीय भावना भी कूट-कूट कर भरी हुई है। तभी शिवसेना को आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने कहा था कि महाराष्ट्र केवल मराठियों का नहीं, बल्कि सभी भारतीयों का है। इस देश में विभिन्न विघटनकारी ताकतों के बीच क्रिकेट अपनी सीमाओं के बावजूद एक मजबूत एकताकारी संघटक के रूप में मौजूद है और इसके प्रतीक के रूप में सचिन निश्चित रूप से हर बड़े सम्मान के हकदार हैं, बल्कि अधिकांश भारतीयों को यह उम्मीद थी कि भारत रत्न के नियमों में परिवर्तन के बाद सचिन को यह सम्मान दिया जाएगा। जल्दी ही उन्हें इस सम्मान से शायद नवाजा भी जाए।


राज्यसभा के मनोनयन के तकनीकी पक्ष के अलावा भी विवाद के कुछ अन्य पहलू भी हैं। एक तो यही कि राज्यसभा में मनोनयन का मकसद यह है कि विशेष ज्ञान अथवा व्यावहारिक अनुभव रखने वाले लोगों को की क्षमताओं का लाभ उठाया जाए, क्योंकि ये चुनाव के माध्यम से राजनीति में नहीं आ सकते या आना नहीं चाहते हों। इन क्षेत्रों से जुड़ी हस्तियों से यह उम्मीद की जाती है कि वे सिर्फ शोभा न बनकर रहें, देशसेवा मे भी जुड़ें, लेकिन पूरे आदर के साथ मैं कहना चाहता हूं कि दुर्भाग्यवश इन महान लोगों में से अनेक का प्रदर्शन उनकी प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं रहा। चाहे सुर साम्राज्ञी लता मगेश्कर हों या अभिनेत्री वैजयंती माला अथवा चित्रकार एमएफ हुसैन हों या दारा सिंह या जया बच्चन हों। इस मामले में शबाना आजमी या जावेद अख्तर जैसे कुछ लोग अवश्य हैं जिन्होंने अपने मनोनयन के साथ पूरा न्याय किया। सुनील दत्त या शत्रुघ्न सिन्हा जैसे लोग भी हैं जिन्होंने पूरी सक्रियता दिखाई। सचिन को देखें तो हर्ष भोगले जैसे विश्लेषकों का कहना सही है कि अपने क्षेत्र में उनका अभूतपूर्व योगदान है, लेकिन यह भी सही है कि उन्हें सामाजिक और राजनीतिक जीवन का कोई खास अनुभव नहीं है। यह बहुत जरूरी है कि पहले वे इस देश के समाज और जीवन से जुड़ें और समझें ताकि वे देश के लिए कुछ ऐसा ही योगदान कर सकें जो उन्होंने क्रिकेट के क्षेत्र में किया। यहां फिल्म जगत से एक उदहारण दिया जा सकता है कि फिल्म की दुनिया में शाहरुख खान और आमिर खान, दोनों ने ही देश का नाम ऊंचा किया है, लेकिन अगर राज्यसभा के मनोनयन की बात की जाए तो आमिर के सामाजिक, सांस्कृतिक कार्यो के सामने शाहरुख कहीं भी नहीं ठहरते।


क्रिकेट के भगवान मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर


विवाद से जुड़ा एक अन्य पहलू राजनीतिक है। कई विश्लेषकों द्वारा कहा जा रहा है कि विभिन्न घोटालों में उलझी और अनेक मोर्चो पर नाकामी झेल रही वर्तमान सरकार और कांग्रेस सचिन के नाम को भुनाकर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश कर सकती है। हालांकि मायावती ने सचिन तेंदुलकर को मनोनीत किए जाने का स्वागत किया, लेकिन साथ ही कांग्रेस की आलोचना करते हुए यह भी कहा कि तेंदुलकर जैसे लोगों को मनोनीत करने के पीछे जनता कांग्रेस की नीयत को अच्छी तरह समझती है। शिवसेना ने नामांकन के समय को लेकर गुगली फेंकी और कहा कि सचिन को राज्यसभा में लाने के बजाय भारत रत्न दिया जाना चाहिए था। उमर अब्दुल्ला ने कहा कि सचिन राज्यसभा के मुकाबले शायद भारत रत्न का सम्मान ज्यादा पसंद करते। कुछ ऐसा ही सुर भाजपा के भी कुछ सदस्यों का था। माकपा के गुरुदास दासगुप्ता ने सौरव गांगुली का नाम उछालकर एक अलग ही बाउंसर फेंका।


डॉ. निरंजन कुमार दिल्ली विवि में प्राध्यापक हैं


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