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कुछ दिन पहले भारत के रक्षा मंत्री एके एंटनी भारत-मालदीव रक्षा समझौते को मजबूती प्रदान करने के लिए मालदीव के दौरे पर थे। कहने को तो वह वहां भारतीय सेना के सहयोग से निर्मित एक सैन्य अस्पताल का उद्घाटन करने गए थे, किंतु उनके दौरे का असल मंतव्य यह सुनिश्चित करना था कि माले में नई सरकार के आने से दोनों देशों के बीच संबंध प्रभावित न हों। एंटनी ने कहा कि मालदीव के साथ संबंधों को भारत बेहद खास मानता है। मालदीव या भारत में सरकारों के बदलने से दोनों देशों के बीच अटूट दोस्ती पर आंच नहीं आएगी और द्विपक्षीय संबंधों में लगातार सुधार आता जाएगा। इस साल फरवरी में जब मालदीव के पहले निर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद सरकार को सेना ने तख्तापलट कर बेदखल कर दिया था तो भारत ने किसी भी पक्ष की तरफदारी नहीं की थी।
इसके बाद से भारत नए राष्ट्रपति मोहम्मद वहीद को आश्वस्त करता आ रहा है कि उन्हें भारत का सहयोग मिलता रहेगा। इसका कारण बिल्कुल साफ है। चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण भारत माले में सरकार से दूर होने की स्थिति में नहीं है। पिछले दिनों मालदीव के राष्ट्रपति चीन में थे। इस मौके पर बीजिंग ने माले को आर्थिक सहायता के तौर पर 50 करोड़ डॉलर देने की घोषणा की। हिंद महासागर में उभरते सामरिक परिदृश्य में नई दिल्ली मालदीव को केंद्रीय भूमिका में देख रही है, क्योंकि मालदीव के क्षेत्र से पूर्वी एशिया को मध्य एशिया से मिलाने वाली संचार लाइनें गुजरती हैं। भारतीय रक्षा मंत्री की हालिया यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने रक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए कई समझौते किए।
इनमें भारतीय रक्षा अधिकारी की माले में तैनाती, एएलएच ध्रुव हेलीकॉप्टर की लीज दो और साल के लिए बढ़ाना, मालदीव की वायु सेना और नौसेना को प्रशिक्षण देना तथा इकोनामिक जोन की निगरानी के लिए सहायता प्रदान करना शामिल हैं। नई दिल्ली और माले ने आतंकवाद तथा राष्ट्र विरोधी तत्वों के खिलाफ संयुक्त मोर्चे के रूप में इन उपायों की महत्ता रेखांकित की। यह छोटा सा द्वीप अचानक ही दो उभरती हुई शक्तियों-चीन और भारत के बीच अखाड़ा बन गया है। हिंद महासागर में सुरक्षा के मद्देनजर भारत हमेशा से मालदीव की अहमियत समझता रहा है, लेकिन हाल ही में चीन द्वारा मालदीव में पैर फैलाने से इस क्षेत्र में भारत का बहुत कुछ दांव पर लग गया है। चीन भारत के करीबी अनेक द्वीपीय देशों के साथ विशेष संबंध स्थापित कर रहा है, इनमें श्रीलंका, मालदीव, सेशल्स और मॉरीशस आदि शामिल हैं।
हिंद महासागर में पैर जमाने के चीन के प्रयास तब रंग लाए जब पिछले साल खबर आई कि हिंद महासागर में स्थित एक और राष्ट्र सेशल्स ने चीन की नौसेना को पुनर्आपूर्ति की सुविधा प्रदान करके बड़ी राहत दी। यद्यपि इस खबर का चीन ने तुरंत ही खंडन कर दिया, फिर भी यह हिंद महासागर में बदलते शक्ति संतुलन को रेखांकित करती है। परंपरागत रूप से भारत सेशल्स का मुख्य रक्षा आपूर्तिकर्ता है। भारत हथियारों की आपूर्ति के साथ-साथ सेशल्स पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज (एसपीडीएफ) को प्रशिक्षण भी देता है। इस साल के शुरू में सामरिक संबंधों को मजबूती प्रदान करने के लिए भारत ने मालदीव को पांच करोड़ डॉलर का ऋण तथा ढाई करोड़ डॉलर की सहायता प्रदान की, किंतु चीन तब से सेशल्स को लुभाने की कोशिशों में लगा है, जब से (2007 में) चीनी राष्ट्रपति हू जिंताओ ने इस द्वीप का दौरा किया था।
भारत की चिंता इस बात से और बढ़ गई है कि अब बीजिंग एसपीडीएफ को प्रशिक्षण दे रहा है तथा सैन्य साजोसामान मुहैया करा रहा है। इसके अलावा चीन ने सेशल्स के साथ सैन्य सहयोग में विस्तार किया है। बीजिंग आर्थिक जोन को नौसैनिक निगरानी प्रदान करने के साथ-साथ इस द्वीप को दो हवाई जहाज भी उपलब्ध करा रहा है। पिछले दिनों चीनी रक्षा मंत्री ने श्रीलंका का भी दौरा किया तथा इसके उत्तरी व पूर्वी क्षेत्रों में विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के लिए 10 करोड़ डॉलर की सहायता की पेशकश की। एक ऐसे समय में जब घरेलू राजनीतिक मजबूरियों के चलते नई दिल्ली को कोलंबो के करीब आने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, बीजिंग इस शून्य को बड़ी तत्परता से भरने का प्रयास कर रहा है। यहां तक कि मॉरिशस भी (जिसकी सुरक्षा भारतीय नौसेना की मौजूदगी के कारण सुनिश्चित है) बीजिंग के प्रलोभनों से बच नहीं पा रहा है।
भारत और चीन की सैन्य क्षमताओं में उभार के साथ-साथ दोनों देश एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चेबंदी का मौका नहीं चूक रहे हैं। जहां चीन हिंद महासागर में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है, वहीं भारत पूर्वी और दक्षिणपूर्वी एशिया में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है। हाल ही में अमेरिका में भारतीय राजदूत ने कहा था कि दक्षिण चीन सागर हिंद महासागर का प्रवेश द्वार हो सकता है। भारत इस क्षेत्र में मुक्त व्यापार, निर्बाध परिवहन और मानवीय आपदा राहत में सहयोग के लिए प्रतिबद्ध है। चीन और भारत के बीच सुरक्षा दुविधा वास्तविक है और लगातार बढ़ रही है। ऐसे में सवाल यह उभरता है कि क्या इस प्रतिस्पर्धी गति को दोनों देश ऐसी दिशा में मोड़ सकते हैं कि खुले टकराव की नौबत न आए। नई दिल्ली की इस घोषणा के बावजूद कि वह किसी गुट में शामिल नहीं है, हिंद महासागर में चीन की बढ़ती सामरिक शक्ति से निपटने के लिए अमेरिका-भारत नौसैनिक सहयोग के अलावा कोई और उपाय नहीं है।हिंद महासागर क्षेत्र में तेजी से बदलते शक्ति संतुलन को देखते हुए नई दिल्ली और वाशिंगटन को सहयोग के लिए कदम बढ़ाने होंगे।
लेखक हर्ष वी.पंत किंग्स कॉलेज, लंदन में प्रोफेसर हैं
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