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देश के अभिन्न अंग जम्मू-कश्मीर के मसले पर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण का यह कहना कि वहां जनमत संग्रह कराया जा सकता है। इससे पता चल जाएगा कि घाटी में कितने लोग भारत के साथ रहना चाहते हैं। यह विशुद्ध रूप से देश को तोड़ने वाला तर्क है। जाहिर है, इस तरह के बयानों से देश के लोगों की भावनाएं भड़केंगी। बुधवार को प्रशांत भूषण पर उनके ही चैंबर में हुआ हमला इसी तरह की भावनाओं का उद्गार है। भूषण पर हमला करने वाले युवाओं का यही कहना है कि उन्होंने लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है। हालांकि इस तरह के कदम को उचित नहीं ठहराया जा सकता, लेकिन क्या प्रशांत भूषण ने कश्मीर को लेकर जिस तरह की बातें कहीं, उन्हें देशहित के नजरिए से वाजिब कहा जा सकता है? इस तरह की बातें देशहित कि लिए खतरनाक हैं। इससे कश्मीर पर नजर गड़ाए पाकिस्तान और अलगाववादियों को बल मिलेगा। आज देश वैसे ही गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है। देश के सीमांत हिस्सों पर गहरा असंतोष है। पूर्वोत्तर में पड़ोसी देश की नजर टेढ़ी है।
भारत के अंदर की बात करें तो कहीं तेलंगाना राज्य की मांग हो रही है तो कहीं वनांचल और बुंदेलखंड। पाकिस्तान और बांग्लादेश को अलग कर हम पहले ही बहुत कुछ खो चुके हैं। इसके प्रतिकूल प्रभावों को हम गहराई तक महसूस कर रहे हैं। अब इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आज किसी भी कीमत पर देश के किसी भाग को अलग करना राष्ट्रहित में नहीं हो सकता। जैसा कि प्रशांत भूषण का मत है, जनमत संग्रह के जरिए हम देश के किस-किस हिस्से को अलग करते रहेंगे। इस तरह तो हमारा पूरा देश बिखर जाएगा। प्रशांत भूषण वरिष्ठ वकील हैं। अन्ना आंदोलन से जुड़ने और उनकी टीम का अहम सदस्य बनने के बाद से तो उन्हें पूरा देश जानने लगा है। ऐसे शख्स को इस तरह का वक्तव्य कदापि नहीं देना चाहिए, जिससे देश की एकता प्रभावित होती हो। देश की अखंडता के खिलाफ उनके बयान से आहत जिन युवकों ने उन पर प्रहार किया, अच्छा नहीं लगा। पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आहत करने वाले बयानों की कहीं न कहीं आहत करने वाली प्रतिक्रियाएं सामने आती हैं।
देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार सभी को मिला है। अपनी राय देने का अधिकार सभी को है। पर ऐसी राय या सोच को सार्वजनिक करना, जिससे देश की अस्मिता-अखंडता पर आंच आए, उसे कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है। देश तोड़ने वाली बात किसी भी रूप में नहीं होनी चाहिए। प्रशांत भूषण के मन में देश को अलग करने की बात भले न हो, लेकिन उनके बयान से कहीं न कहीं ऐसा जरूर लग रहा है कि उनका ऐसा बयान घाटी में सक्रिय अलगाववादियों का मनोबल बढ़ाएगा। ऐसे में देश प्रेम की भावना से ओत-प्रोत युवा मन का आक्रोशित होना स्वाभाविक है। इस तरह के परिवेश से उभरी भावना को समझने का प्रयास करना चाहिए। प्रशांत भूषण ने देशवासियों के बीच जो प्रतिष्ठा अन्ना आंदोलन के बाद हासिल की है, उसे उनके कश्मीर से जुड़े हल्के और तुच्छ विचार ने क्षण भर में धूमिल-सा कर दिया है। प्रशांत भूषण के इस बयान ने अन्ना आंदोलन से जुड़े अन्य लोगों पर भी सवालिया निशान लगा दिया था। वह तो भला हुआ कि खुद अन्ना हजारे और उनकी टीम के दूसरे सदस्यों ने कश्मीर मसले पर अपना पक्ष रखा।
अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल ने कश्मीर पर दिए प्रशांत भूषण के बयान को उनका निजी विचार मानकर अपना पिंड छुड़ा लिया है। वैसे बेहतर तो यह होता कि खुद प्रशांत भूषण अपने बेतुके और देश तोड़ने वाले बयान पर खेद प्रकट करते, लेकिन अब तक तो उनका कोई ऐसा बयान सामने नहीं आया है। कश्मीर पर प्रशांत भूषण के बयान से जो हालात सामने आए हैं, अब उसे तवज्जो न देकर यहीं खत्म करना होगा। हां, यह तभी संभव है जब खुद प्रशांत भूषण अपने बयान पर खेद प्रकट करें और देश की जनता से माफी मांगे। हो सकता है, इससे स्थितियां फिर सामान्य हो जाएं। अन्ना हजारे को भी चाहिए कि वह इसके लिए प्रशांत भूषण से बात करें। भ्रष्टाचार के खिलाफ मौजूदा जंग में कामयाबी के लिए यह जरूरी है।
लेखक भरत मिश्र प्राची स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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