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पानी का बाजार बनाने की तैयारी

जागरण मेहमान कोना
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पिछले दिनों फ्रांस में विश्व जल फोरम का आयोजन किया गया, जहां दुनिया भर के लगभग 150 देशों के 20 हजार से अधिक लोगों ने भाग लिया। सम्मेलन में प्रमुख रूप से पेयजल, स्वच्छता, सिंचाई, कम पानी की खेती, खाद्य सुरक्षा, शहरी इलाकों में पेयजल स्वच्छता और स्वच्छता के अधिकार पर व्यापक चर्चा की गई। इन सबके चिंतन केंद्र में हाशिए पर पडे़ कमजोर, सामाजिक रूप से बहिष्कृत समुदाय, महिलाएं और बच्चे रहे। इस सम्मेलन में विश्व में लगातार बढ़ रही गरीबी और विषमताओं का असर सीधे तौर पर दिखाई दिया। सम्मेलन में व्यापक सहमति बनी कि पानी लाभ के लिए नहीं है। यह एक प्राकृतिक संपत्ति है। इस पर सभी का बराबरी का अधिकार है। सम्मेलन में जहां सामाजिक कार्यकर्ता पानी के व्यापार का विरोध कर रहे थे वहीं दूसरी तरफ पानी के कारोबार में अपना मुनाफा खोज रही कंपनियां पानी के व्यवसायीकरण की वकालत भी कर रही थीं। ये कंपनियां जल संकट के समाधान के नाम पर बाजार खड़ा करने की योजना बना रही हैं। आने वाले समय में पानी का कारोबार दुनिया का सबसे मुनाफे का कारोबार साबित होगा। वैसे अभी भी दुनिया में पानी का सालाना कारोबार एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का है, जो लगातार बढ़ता ही जा रहा है। पानी का कारोबार करने वाली कंपनियां अपने लाभ व व्यापार के लिए प्राकृतिक संसाधनों जैसे नदियों, झीलों व झरनों को (पहाड़ों) को अपने कब्जे में ले रही हैं।


तो बस आंखों में ही रह जाएगा पानी


भारतीय संदर्भ में देखें तो एक लीटर पानी की एक बोतल पर कंपनी लगभग 10 रुपये का मुनाफा कमाती है। यानी पानी का कारोबार 70 प्रतिशत लाभ का कारोबार है। इसलिए अभी से सभी की निगाहें इस ओर लगी हैं। कंपनी अपने बाजार को स्थापित करने में समाज का हित घोषित करने वाली संस्थाओं को भी अपने साथ जोड़ने का प्रयास कर रही हैं ताकि आम आदमी तक उनकी पहुंच आसानी से हो सके। एक तरफ तो भारत के योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया का कहना है कि 28 रुपये प्रतिदिन खर्च कर सकने वाला व्यक्ति गरीबी रेखा के ऊपर है दूसरी तरफ पानी की दो बोतल 30 रुपये में मिल रही हैं। यदि पानी के खर्चे को आदमी की आमदनी से जोड़ा जाएगा तो निश्चित रूप से मोंटेक सिंह को गरीबी की नई परिभाषा तय करनी होगी। पानी के कारोबार के चलते प्राकृतिक संसाधनों के अस्तित्व के ऊपर खतरा मंडराने लगा है। भूगर्भीय जल का अत्यधिक दोहन होने के कारण एक बड़ी आबादी की शुद्ध पेयजल से पहंुच दूर होती जा रही है। पानी के आवश्यक व लाभकारी मिनरल्स नीचे जा रहे हैं और उपलब्ध पानी की गुणवत्ता खराब होती जा रही है।


पानी की प्राचीन व्यवस्था में यह सुनिश्चित किया गया था कि सबको बिना किसी भेदभाव के पानी मिल सके। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी पानी को कर से मुक्त रखा गया था। कुछ वर्ष पहले संयुक्त राष्ट्र संघ पेयजल और स्वच्छता को मानवीय परिभाषाओं में शामिल किया है। मौलिक अधिकारों के प्रति सरकार की जबावदेही बनती है, लेकिन मौलिक अधिकारों को निजी क्षेत्र में सौपने का फायदा उठाकर वैश्विक स्तर पर पानी का कारोबार लगातार बढ़ रहा है। इसके लिए कुछ सामाजिक संस्थाएं अपना हित और फायदा देखते हुए इन कंपनियों के साथ खड़ी होती दिखाई दे रही है-भले ही भविष्य में आम आदमी को इन कंपनियों की मुनाफाखोरी के चलते अपने अधिकारों का नुकसान उठाना पड़े। इसका अंदाजा इस बात से लगता है कि फ्रांस जैसे औद्योगिक देश में व्यापारी पानी में व्यापार की व्यापक संभावनाएं तलाश रहे हैं। सरकारें अपनी जवाबदेही से बचने के लिए पीने के पानी की समस्या का समाधान निजी क्षेत्र को सौंपने के लिए उतावली दिखाई दे रही हैं। वहीं नागरिक समाज अपने अधिकारों को पूरा करने के लिए सरकारी जवाबदेही तय करने की दिशा में आंदोलनरत है। हम सब सरकार की जवाबदेही तय करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। वहीं सरकार हमारे ऊपर पीपीपी मॉडल थोप रही है। भारतीय लोक परंपरा में पानी पिलाने का काम पुण्य का काम माना जाता है। इसलिए ज्यादातर लोग जरूरतमंदों को पानी उपलब्ध कराने के लिए कई तरह के इंतजाम करते आए हैं, लेकिन धीरे-धीरे ये प्रयास कमजोर हो रहे हैं।


पर्यावरण प्रदूषण से पानी भी प्रदूषित तथा विषाक्त होता जा रहा है। निजी क्षेत्र इस अवसर का फायदा उठाना चाहता है। आधुनिक जीवनशैली और जलवायु परिवर्तन का सीधा असर पेयजल पर पड़ रहा है, जिस कारण पानी की खपत बढ़ रही है। वहीं पानी के भंडारण में कमी आती जा रही है। भूगर्भीय जलस्तर नीचे जा रहा है। कृषि में पानी की उपयोगिता लगातार बढ़ती जा रही है। इसे तत्काल कम करने की आवश्यकता है। छठे विश्व जल सम्मेलन में पानी के बाजार के विरोध में आवाज उठी और सामूहिक रूप से माना गया कि प्रकृति के नि:शुल्क उपहार पानी का व्यापार नहीं होना चाहिए। फ्रांस में इस सम्मेलन स्थल में 20 हजार लोगों ने मार्च निकालकर बताया कि पानी व्यापार के लिए नहीं है। पानी के व्यापार का असर पूरी मानव सभ्यता पर पड़ रहा है। सम्मेलन नेपानी के व्यवसायीकरणको जल के वैश्विक संकट का कारण बताया। समय बताएगा कि आने वाले दिनों में यह वैश्विक सामूहिकता क्या असर दिखाती है?


संजय सिंह सामाजिक कार्यकर्ता हैं


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