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संचार क्रांति का नया युग

जागरण मेहमान कोना
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Peeyush Pandeyपिछले हफ्ते सूचना तकनीक से जुड़े दो महत्वपूर्ण सर्वेक्षणों की रिपोर्ट सामने आई। इनकी चर्चा ज्यादा नहीं हुई, लेकिन दोनों रिपोर्ट सूचना तकनीक एवं संचार के क्षेत्र में नए युग के सूत्रपात की तरफ संकेत कर रही हैं। पहला सर्वेक्षण भारत में स्मार्टफोन यूजर्स के बीच किया गया। सरल शब्दों में स्मार्टफोन यानी आधुनिक सुविधाओं से लैस मोबाइल। नील्सन इंडिया और इंफोरमेट मोबाइल इंटीलीजेंस द्वारा किए संयुक्त सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक स्मार्ट फोन ने मोबाइल फोन को इस्तेमाल करने का पूरा तरीका ही बदल दिया है। मोबाइल फोन का उपयोग बात करने और एसएमएस भेजने के लिए किया जाता है, लेकिन स्मार्टफोन दो कदम आगे निकल रहे हैं। सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक स्मार्टफोन के यूजर्स अब बात और एसएमएस करने से ज्यादा मनोरंजन और इंटरनेट पर उपलब्ध कंटेंट पाने के लिए कर रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक स्मार्टफोन यूजर्स औसतन दिन में 2.5 घंटे फोन का इस्तेमाल करते हैं। इसमें 72 फीसदी समय गेम्स खेलने, मनोरंजक कंटेंट पाने, तरह-तरह के एप्लीकेशन इस्तेमाल करने आदि में गुजारते हैं। सिर्फ 28 फीसदी समय वे फोन पर बात करने या एसएमएस भेजने में खर्च करते हैं।


रिपोर्ट के मुताबिक एंड्रॉयड प्लेटफार्म वाले स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने वाले लोग औसतन हर महीने 19 एप्लीकेशन डाउनलोड करते हैं जबकि सिंबियन प्लेटफॉर्म पर सिर्फ 10 एप्लीकेशन डाउनलोड किए जाते हैं। इस रिपोर्ट में कई दूसरी बातें हैं, लेकिन सीधा निष्कर्ष यह है कि नया वक्त स्मार्टफोन का है और अब लोगों के लिए मोबाइल फोन सिर्फ बात करने की सुविधा देने वाला एक उपकरण भर नहीं हैं। स्मार्टफोन की लगातार कम होती कीमत के बीच तय है कि आने वाले वक्त में मोबाइल फोन स्मार्ट ही होंगे। इस बीच सवाल यह है कि क्या इन स्मार्टफोंस के लिए वह कंटेंट और एप्लीकेशंस मौजूद हैं, जिनकी सही मायने में जरूरत है। मसलन ग्रामीण इलाकों के लोगों की जरूरत के मुताबिक अभी एप्लीकेशन मौजूद नहीं हैं। हिंदी में एप्लीकेशन और कंटेंट फिलहाल न के बराबर हैं। ऐसा कतई नहीं है कि एप्लीकेशन का संसार सिर्फ शहरी वर्ग के लिए है। छोटे-मोटे प्रयास हो भी रहे हैं। मसलन ओजस सॉफ्टेक प्राइवेट लि. ने हाल में एंड्रॉयड प्लेटफॉर्म के लिए एक ऐसा एप्लीकेशन बनाया है जिसके जरिये किसान अपनी जमीन के अलग-अलग छोरों पर खड़े होकर सिर्फ बटन दबाएगा और उसे जमीन का पूरा क्षेत्रफल मालूम पड़ जाएगा।


सर्वेक्षण के नतीजे इस तरफ इशारा कर रहे हैं कि अब स्मार्टफोन के लिए कंटेंट और एप्लीकेशन का बड़ा बाजार तैयार हो रहा है जिसे समझा जाना चाहिए। दूसरा सर्वे एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया यानी एसोचैम ने कराया है। इस सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय कंपनियां अब हर साल अपने मार्केटिंग बजट का करीब 30 से 40 फीसदी सोशल मीडिया पर खर्च कर रही हैं। कंपनियों का यह बजट लगभग 1200 करोड़ रुपये का है। 2015 तक ये आंकड़ा बढ़कर 10 हजार करोड़ तक पहुंचने की उम्मीद है। सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब, हाई5 और बिग अड्डा जैसे मंच कंपनियों को खासा लुभा रहे हैं। सोशल मीडिया का प्रभाव किस तेजी से बढ़ रहा है इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि इस सर्वेक्षण में शामिल 75 फीसदी लोगों ने कहा कि उन्होंने इस साल सोशल मीडिया पर अपना मार्केटिंग बजट दोगुना कर दिया है। निश्चित रूप से सोशल मीडिया के तमाम मंचों की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही हैं और कंपनियां इस बात को बखूबी समझ रही हैं।


बड़ी कंपनियां अपने ब्रांड का प्रचार करने से लेकर उत्पादों को बेचने, नए ग्राहक बनाने और ग्राहकों से संवाद बनाने में इनकी भूमिका समझ रही हैं। सवाल छोटी कंपनियों का है। क्या वे भी इस बात को समझ रही हैं। इंटरनेट एक हद तक लोकतांत्रिक माध्यम है और सोशल मीडिया के तमाम मंच बहुत हद तक छोटे-बड़े खिलाडि़यों को खेल की जमीन मुहैया कराते हैं। टेलीविजन पर भले प्राइमटाइम में दस सेकेंड के विज्ञापन की दर दो से चार लाख हो, लिहाजा छोटी कंपनियों के लिए विज्ञापन देना संभव नहीं, लेकिन फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब सभी के लिए खुले हैं। कम से कम एक हद तक।


इस आलेख के लेखक पीयूष पांडे हैं


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