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जनलोकपाल आंदोलन के संदर्भ में सामने आ रहे विवादों को लेकर जागरण के सवालों का जवाब दे रहे हैं अरविंद केजरीवाल
जनलोकपाल बिल को ले कर शुरू हुआ ऐतिहासिक आंदोलन पिछले कुछ दिनों से लगातार कई तरह के विवादों के साये में है, लेकिन आंदोलन के आधार स्तंभ रहे अरविंद केजरीवाल का कहना है कि ये विवाद जानबूझकर मूल मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए पैदा किए जा रहे हैं। हमारे विशेष संवाददाता मुकेश केजरीवाल के साथ बातचीत में उन्होंने इन आरोपों के संदर्भ में विस्तृत बातचीत की। पेश हैं, उसके प्रमुख अंश-
आपके भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को इतना समर्थन मिला, क्योंकि यह राजनीति से दूर था। लेकिन आप भी हराने-जिताने की राजनीति करने लगे।
भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई आंदोलन गैर राजनीतिक नहीं हो सकता। भ्रष्टाचार तो पूरी तरह से राजनीतिक मुद्दा है। हमारा आंदोलनपार्टी और सत्ता की राजनीति से ऊपर था, है और रहेगा। हिसार में हमने कहा कि कांग्रेस को वोट मत दो, क्योंकि केंद्र में कांग्रेस-यूपीए की सरकार है। जनलोकपाल के लिए अन्ना दो बार अनशन पर बैठे, लेकिन इस सरकार ने राजनीति के सिवा कुछ नहीं किया। अब हमें दबाव केंद्र सरकार पर डालना है। यह जनता की राजनीति है। हम अपनी पार्टी नहीं खड़ी कर रहे, न उम्मीदवार उतार रहे हैं। हम खुद भी चुनाव में नहीं लड़ रहे।
आप कह रहे हैं कि चुनाव लड़ नहीं रहे, लेकिन आप प्रचार तो कर रहे थे।
यह तो नागरिक होने के नाते हक है हमारा। मान लीजिए आपके इलाके की सड़क नहीं बन रही। आप दर्जनों बार अपने जनप्रतिनिधि के पास गए। लेकिन उसने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। ऐसे में चुनाव के दौरान आप घूम-घूम कर यही कहेंगे न कि इसे दोबारा चुन कर न भेजें। यही काम हमने किया। क्या इससे हम चुनावी राजनीति का हिस्सा हो गए?
लेकिन इसका फायदा गैर-कांग्रेसी पार्टियों को मिला। चुनाव आयोग से शिकायत की जा रही है कि आपके प्रचार का खर्च विपक्षी पार्टियों के खाते में जोड़ा जाए?
यह तो आयोग तय करेगा, लेकिन हम किसी पार्टी का समर्थन नहीं कर रहे थे। अन्ना का कहना था कि हिसार में चालीस उम्मीदवार हैं, इनमें से बस एक को वोट नहीं दो। बाकी में से सबसे बढि़या उम्मीदवार को चुनो।
लेकिन प्रचार का खर्च किसके खाते में जुड़ना चाहिए?
यह जनता का आंदोलन था। किसी के प्रचार का नहीं।
सैद्धांतिक रूप से यह ठीक है। लेकिन व्यवहारिक नतीजा यह रहा कि सबसे भ्रष्ट उम्मीदवारों को फायदा मिला।
अपनी व्यापक लड़ाई में हमने हिसार चुनाव के दौरान एक खास रणनीति बनाई। लोकसभा उपचुनाव में एक सीट पर किसी की हार-जीत से हमारा कोई ताल्लुक नहीं था। हमारा मकसद था कि इस चुनाव में वही जीते जो अपनी पार्टी हाईकमान से जनलोकपाल के समर्थन का लिखित आश्वासन चुनाव से पहले अपने वोटर को दे।
आप लोग उत्तार प्रदेश गए। लेकिन वहां की भ्रष्ट सरकार के खिलाफ ऐसा अभियान नहीं चलाया?
उत्तार प्रदेश में मुख्य तौर पर चार पार्टियों का प्रभाव है। जब-जब जिसे मौका मिला, उसने जनता को लूटा। हर अगली सरकार पिछली से ज्यादा भ्रष्ट पाई गई। केवल चेहरे या पार्टी बदलने से काम नहीं चलेगा, लेकिन सवाल यह है कि क्या बसपा के चाहने से देश में जनलोकपाल आ सकता है? इसी तरह क्या सपा या भाजपा के चाहने से केंद्र में लोकपाल बिल आ सकता है? हकीकत यही है कि कांग्रेस चाहे तभी यह हो सकता है। इसलिए हमें दबाव कांग्रेस पर डालना होगा। अगर इसने जन लोकपाल ला दिया तो सब के भ्रष्टाचार पर अंकुश लग जाएगा।
यह पूरा प्रचार अरविंद केजरीवाल का था या टीम अन्ना का?
यह गलतफहमी है, क्योंकि मैं फुल टाइम जमीन पर प्रचार करता हूं। इसलिए ज्यादा नजर आता हूं। लेकिन हिसार रणनीति का फैसला सबसे पहले हमारी वर्किग कमेटी में हुआ। इसके बाद हिसार के कार्यकर्ताओं के साथ वर्किग कमेटी और कोर कमेटी के दिल्ली में उपलब्ध सदस्यों की बैठक हुई। इसके बाद तीन अक्टूबर को अन्ना हजारे ने प्रेस कांफ्रेंस कर इस पूरी रणनीति का एलान किया। उसके बाद मैं तो सिर्फ उस पर अमल के लिए गया। इसमें भी मैं अकेला नहीं था।
हिसार के साथ ही तीन और उपचुनाव हुए। बाकी जगह आप क्यों नहीं गए?
विधानसभा उपचुनाव तो कई जगह होते हैं। हर जगह जाकर अभियान चलाना मुमकिन नहीं था, लेकिन अन्ना की अपील का बाकी जगह भी असर हुआ।
रामलीला मैदान के आंदोलन के दौरान अन्ना की जो छवि थी, क्या वह अब धुंधली नहीं हो गई है?
ऐसा आप तब कह सकते थे, जब जनता ने हिसार में अन्ना की अपील को नहीं सुना होता। आप कह सकते हैं कि रामलीला मैदान के आंदोलन की वजह से बड़ी तादाद में लोग साथ आए। लेकिन जब हम अन्ना की बात लेकर हिसार गए, तब लोगों ने अलग से बहुत से जवाल-जवाब किए। लोग सहमत हुए, तभी हमारी बात मानी। नतीजतन कांग्रेस की जमानत जब्त हुई।
क्या साथियों को अनुशासन का पाठ पढ़ाने के लिए अन्ना को मौन करना पड़ा?
हमें अनुशासन का पाठ पढ़ाने के लिए अन्ना को मौन पर जाने की जरूरत नहीं। हम सब उनकी इतनी इज्जत करते हैं कि वे हमसे सीधे कह सकते हैं। अन्ना अक्सर मौन व्रत करते रहे हैं। उनके मौन पर जाने से पहले मेरी उनसे विस्तृत चर्चा हुई थी। यह जरूर है कि उन्हें लग रहा था कि वे जो भी कहते हैं, मीडिया में उसका गलत मतलब निकाला जा रहा है।
टीम पर लगातार आरोप लगे रहे हैं। किरण बेदी की हवाई यात्रा..
हमारा सरकार से कहना है कि अगर किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल, शांति भूषण या प्रशांत भूषण कोई भी गलत है तो उसे दंड दो। जेल भेज दो। फांसी दे दो, लेकिन जनलोकपाल बिल तो लाओ। किरण बेदी ने कुछ गलत किया है तो उन्हें जेल भेज दो। लेकिन आप यह नहीं कह सकते कि वह लोकपाल की मांग नहीं कर सकती। आप हमें भटका नहीं सकते।
आंदोलन की भविष्य की क्या रणनीति रहेगी?
यह इस पर निर्भर करेगा किसरकार क्या करती है। हम लोगों ने शीतकालीन सत्र तक अपना अभियान टाल दिया है। हम कामना करते हैं कि प्रधानमंत्री का आश्वासन पूरा हो।
टीम में लगातार मतभेद की क्या वजह है?
कोर कमेटी में 25 लोग हैं। ये सभी सक्षम व्यक्तित्व और अनुभव वाले व्यक्ति हैं। मशीन की तरह एक साथ जी-हां, जी-हां, नहीं कह सकते। न ही हमारा कोई हाईकमान है, जिसके इशारे पर सारे सर्कस करते नजर आएं। इन लोगों के बीच मतभेद में कोई हर्ज भी नहीं है।
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