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अनर्गल आरोपों का सिलसिला

जागरण मेहमान कोना
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अन्ना हजारे ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध सख्त लोकपाल के गठन हेतु सरकार सहित कांग्रेस को चुनौती क्या दी, उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एजेंट साबित करने की होड़-सी लग गई है। उनके रामलीला मैदान पर हुए अनशन को भी संघ की सोची-समझी रणनीति कहा गया और अब नए बयानवीर की भूमिका में रमते जा रहे बेनी प्रसाद वर्मा ने भी अन्ना को संघ का एजेंट बताया है। बेनी प्रसाद वर्मा यहीं नहीं रुके, उन्होंने राजनीति की सभी मर्यादाएं लांघते हुए अन्ना को 1965 के भारत-पाक युद्ध का भगौड़ा कहा है। गौरतलब है कि अन्ना को भगौड़ा साबित करने की बातें पहले भी कांग्रेस की ओर से उठी थीं, जिसके बाद सेना ने साफ किया था कि अन्ना की सेना में नौकरी पूरी तरह बेदाग रही है और सेना में उनकी सेवाओं के लिए कई पदक भी मिले हैं। बेनी बाबू को अन्ना को भगौड़ा कहने से पहले खुद के दामन में झांक लेना चाहिए था। बेनी प्रसाद के इस बयान कि सर्वत्र निंदा हो रही है। बेनी पहले भी अन्ना को लेकर मर्यादा की सीमाएं लांघ चुके हैं, जिससे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का नुकसान होना तय है। दूसरी ओर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह भी अन्ना को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।


पिछले दिनों जारी हुई एक तस्वीर जिसमें नानाजी देशमुख और अन्ना हजारे एक साथ दिख रहे हैं, उसी के आधार पर दिग्विजय सिंह ने कहना शुरू कर दिया है कि मैं तो पहले से ही कह रहा था कि अन्ना संघ के आदमी हैं। दरअसल, नानाजी देशमुख ने राजनीति से संन्यास लेने के बाद समाजसेवा को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था। अपने विचारों और कार्यो को मूर्त रूप देने के लिए उन्होंने ग्राम विश्व नामक संस्था के अध्यक्ष पद का दायित्व निभाया था। यह संस्था समाजसेवा के क्षेत्र में काम करने वाले संगठनों ने मिल कर बनाई थी। अन्ना हजारे इसी संस्था में मंत्री थे। वर्ष 1983 में संस्था के कार्यो से जुड़ी एक अहम बैठक दीनदयाल शोध संस्थान में हुई थी, जिसमें नानाजी और अन्ना ने शिरकत की थी। उस समय की तस्वीर को अब जारी कर मीडिया ने कांग्रेस को अन्ना पर हमले का एक और मौका दे दिया है। एक ओर अन्ना सख्त लोकपाल की मांग को लेकर मंगलवार से मुंबई में अनशन कर रहे हैं तो दूसरी ओर कांग्रेस के नेता अन्ना-संघ कनेक्शन का राग अलाप कर अल्पसंख्यक समुदाय का अपने पक्ष में समर्थन पाना चाहते हैं। संघ को शुरू से ही सांप्रदायिक संगठन बताते आ रहे कांग्रेसी इस पैंतरे से अन्ना के आंदोलन को कमजोर करना चाहते हैं।


नानाजी और अन्ना की इस तस्वीर पर दिग्विजय सिंह ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वे शुरू से अन्ना को संघी बताते आए हैं और आज उनकी बात सही साबित हो गई है। कांग्रेस ने तो अन्ना को संघ का एजेंट साबित कर दिया, मगर क्या दिग्विजय सिंह संघी नहीं रहे हैं? क्या राजनीतिक लाभ लेने के लिए उन्होंने पाला नहीं बदल लिया है? दरअसल, टीम अन्ना ने एक तस्वीर जारी की है, जिसमें दिग्विजय सिंह नानाजी देशमुख के साथ बैठे हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए दिग्विजय सिंह ने अन्ना को राज्य शासन की एक योजना का हिस्सा बनाया था। तो क्या समझा जाए? क्या दिग्विजय सिंह के भी संघ से रिश्ते रहे हैं? यदि ऐसा है तो यह कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है और राहुल को तो अब अधिक सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि जितना खतरा बाहरी लोगों से नहीं होता, उससे ज्यादा खतरा घर के भेदी से होता है।


काश, दिग्विजय सिंह कहने से पहले एक बार सोचते कि क्या किसी के साथ उठने-बैठने या उसके अच्छे विचारों से प्रभावित होने से कोई व्यक्ति सांप्रदायिक हो जाता है? क्या किसी के अच्छे कार्यो की प्रशंसा करना और उसे अपनाना सांप्रदायिकता की श्रेणी में आता हैं? क्या किसी के साथ मंच साझा करने मात्र से ही व्यक्ति अपनी विचारधारा भुला दूसरे की विचारधारा को अपना लेता है? हालिया विवाद से निश्चित रूप से दिग्विजय सिंह काफी विचलित हुए होंगे। अगर अन्ना और नानाजी की तस्वीर एक साथ में होने मात्र से वह अन्ना को संघ का स्वयंसेवक साबित करने पर तुले हुए हैं तो अपनी और नानाजी की तस्वीर पर उनका क्या रुख होगा? कांग्रेस और सरकार को चाहिए की वह बेमतलब की बयानबाजी से इतर देशहित में कदम उठाए ताकि पूरे वर्ष उसकी जो दुर्गति हुई है, वह आगे न हो। दिग्विजय सिंह जैसे बयानवीर अन्ना और संघ को जितना कोसेंगे, वे उतना ही मजबूत होंगे। और यह कांग्रेस कभी नहीं चाहेगी। अत: बेवजह की बयानबाजी बंद हो और देशहित में कुछ काम कर लिया जाए।


लेखक सिद्धार्थशंकर गौतम स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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