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पिछले पांच अप्रैल को अन्ना हजारे जंतर-मंतर पर अनशन के लिए बैठे तो सोशल मीडिया पर उन्हें जबरदस्त समर्थन मिला। यह सोशल मीडिया की ही ताकत थी कि उनके समर्थन के लिए एक साथ कई जगहों पर प्रदर्शन हुए, लेकिन इस बार साइबर दुनिया में अन्ना का आंदोलन एक कदम और आगे निकल गया। भारतीय सोशल मीडिया की दुनिया पूरी तरह अन्नामय हो गई। चुटकुले, गीत, कविता, नारे और सीधे-सपाट कमेंट के रूप में अभिव्यक्ति के तमाम रंग दिखाई दिए। सोशल मीडिया के तमाम मंच अभिव्यक्ति के इन अलग रंगों से गुलजार रहे। कुछ बानगी देखिए। पूर्व बैंक कर्मचारी प्रकाश मोहन पांडे ने फेसबुक खाते पर लिखा-अन्ना अन्ना करती है तो अन्ना से क्यूं डरती है। अपना सुंदर जन-लक्कू है तो भ्रष्ट लक्कू पर क्यूं मरती है? (जन-लक्कू यानी जनलोकपाल)।
मोबाइल फोन के लिए कंटेंट व अप्लीकेशंस बनाने वाली अग्रणी कंपनी बुओनजीओरनो के क्रिएटिव हेड अरविंद जोशी ने अन्ना नाम से कविता लिखी। उनकी कविता की शुरुआती पंक्तियां हैं-सत्य राजनैतिक नहीं होता/ सिर्फ नैतिक होता है/ वह गांधी टोपी पहने/ लोगों में गांधी बोता है/ सत्य अजर होता है/ उसकी धमनियों में/ रक्त/ युवा दौड़ता है। फेसबुक पर एक तुकबंदी इस रुप में दिखायी दी-रामदेव पर पुलिस थी क्रूर/अन्ना ने देखा लेकिन घूर/सरकार का दर्प हुआ चूर/हेकड़ी उड़ी मानो हो कपूर/अपने बेगाने होके हुए दूर/चमचे-चांटे हो गए काफूर/विपक्षियों के चेहरे पर नूर/शामिल रईस भी मजदूर/सब समर्थकों का मन मयूर/अब सरकार को सब मंजूर/अंगूर मिले नहीं बने लंगूर/मीडिया को मिला कंटेंट भरपूर/ऐसा तो न था पहले दस्तूर/झटके में टीम हुई मशहूर/लगे ऐसे मिल गया कोहनूर/आप क्या कहते हैं हुजूर/अपन तो बोलें चश्मेबद्दूद। दिलचस्प है कि अन्ना हजारे के आंदोलन के बीच कई लोगों का आक्रोश प्रधानमंत्री को लेकर दिखता है। प्रधानमंत्री की छवि अपने आप में ईमानदार होने के बावजूद अब लोगों का गुस्सा उन्हें लेकर दिखता है। यह बात कम से कम सोशल मीडिया पर प्रसारित चुटकुलों और नारों के संदर्भ में कही जा सकती है। मसलन एक चुटकुला है-एक बार एक आम आदमी जोर जोर से चिल्ला रहा था। प्रधानमंत्री निकम्मा है।
पुलिस के एक सिपाही ने सुना और उसकी गर्दन पकड़ के दो रसीद किए और बोला चल थाने प्रधानमंत्री की बेइज्जती करता है। वो बोला साहब मैं तो कह रहा था फ्रांस का प्रधानमंत्री निकम्मा है। ये सुनकर सिपाही ने दो और लगाए और बोला बदमाश बेवकूफ बनाता है! क्या हमें नहीं पता कहां का प्रधानमंत्री निकम्मा है? फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब और तमाम दूसरे सोशल मीडिया के मंच अन्नामय हैं। माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर लगातार कई दिनों से ट्रेंडिंग टॉपिक में अन्ना, जनलोकपाल किरन बेदी और इनसे जुड़े शब्द आ रहे हैं यानी लोग भारत में इन विषयों पर लगातार ट्वीट कर रहे हैं। खास बात यह कि इस बार अन्ना के समर्थन में ज्यादा सेलेब्रिटी नहीं दिखाई दिए हैं। अमूमन होता यह है कि सेलेब्रिटी ट्वीट करते हैं और लोग उन्हें रीट्वीट यानी आगे भेजने का काम करते हैं। इस बार ऐसा नहीं है। दूसरी तरफ ट्विटर-फेसबुक पर लाइव रिपोर्टिग हो रही है।
अन्ना के तिहाड़ जेल से बाहर निकलने के वक्त टेलीविजन चैनलों से मुकाबला करते हुए तस्वीरें सोशल मीडिया के मंचों पर दिखाई दीं। इतना ही नहीं, जनलोकपाल से जुड़े मुद्दों को लोग अपने मोबाइल पर जान सकें इसके लिए बाकायदा कई मोबाइल अप्लीकेशन बन गए हैं। वैसे ऐसा कतई नहीं है कि अन्ना के अनशन के विरोध में स्वर सोशल मीडिया पर दिखाई नहीं देते। युवा कवि अशोक कुमार पांडे का एक स्टेटस इसकी बानगी है। वह लिखते हैं अगर आपने मोमबत्ती नहीं जलाई तो आप गद्दार हैं, भ्रष्ट हैं। इन दिनों क्रांतिकारी वही है जिसके हाथों में मोमबत्तियां है। सोशल मीडिया के मंचों की यह खूबसूरती भी है कि यहां हर तरह के विचार के लिए जगह है, लेकिन सवाल सिर्फ अन्ना के समर्थन या विरोध का नहीं है। सवाल है सामाजिक सरोकारों से जुड़े मसलों के सोशल मीडिया पर जगह पाने का। सहमति या असहमति लोगों का अपना नजरिया है पर अच्छा संकेत यह है कि लोग अब उन मसलों पर बात कर रहे हैं जिन्हें अभी तक गंभीर मुद्दों की श्रेणी में रखा जाता था।
इस आलेख के लेखक पीयूष पांडेय हैं
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